23 मई 2013


बैरंग 

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तुम लौटे हो,
बरसों बाद,
लंबा सफ़र तय करके,
देखने फिर ,
मेरे पुराने रंग,
अफ़सोस 
मेरे रंग 
बिक गए सारे,
ज़िन्दगी के उधार
 चुकाते चुकाते,
बस बची है,
स्याही और सफेदी,
स्याही भी कम है अब 
सफेदी कुछ ज़्यादा है,
तुम ज़रा देर से पहुंचे,
मुझे मुआफ़ करना,
लौटा रहा  हूँ मैं 
तुम्हे बेरंग, 
बैरंग।.

 

15 टिप्‍पणियां:

  1. देरी की कीमत, दूरी का मूल्य ...

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  2. यह जिन्दगी के रंग .......!!! बदलते रहते हैं .....लेकिन इनके बदलने का अहसास सिर्फ किसी - किसी को हो पाता है ....!!!

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  3. बहुत डीनो बाद लौटे हो और ये क्या सबको बैरंग लौटने को ?

    सुंदर अभिव्यक्ति ।

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  4. समय के साथ साथ सब रंग उड़ गए, रह गए केवल सफ़ेद रंग ........
    अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
    latest post: बादल तू जल्दी आना रे!
    latest postअनुभूति : विविधा

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  5. बैरंग.....बहुत ही सुंदर अहसास...मन को छूने वाला श्‍याम श्‍वेत रंग

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  6. हम तो अपनी पसंद का रंग ले कर ही लौटेंगे , बेरंग नहीं !
    सुंदर अभिव्यक्ति , जीवन का यथार्थ समेटे हुए !

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  7. उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...

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  8. जिंदगी की तल्खियाँ सब रंग चुरा ले गयी !
    भावपूर्ण अभिव्यक्ति!

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  9. आपका लिखा हर शब्द स्मरण योग्य ...khubsurat rachna..

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  10. तो भी कुछ शेष रह जाता है ।

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मंजिल न दे ,चिराग न दे , हौसला तो दे.
तिनके का ही सही, मगर आसरा तो दे.
मैंने ये कब कहा कि मेरे हक में हो जबाब
लेकिन खामोश क्यों है कोई फैसला तो दे.