बैरंग
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तुम लौटे हो,
बरसों बाद,
लंबा सफ़र तय करके,
देखने फिर ,
मेरे पुराने रंग,
अफ़सोस
मेरे रंग
बिक गए सारे,
ज़िन्दगी के उधार
चुकाते चुकाते,
बस बची है,
स्याही और सफेदी,
स्याही भी कम है अब
सफेदी कुछ ज़्यादा है,
तुम ज़रा देर से पहुंचे,
मुझे मुआफ़ करना,
लौटा रहा हूँ मैं
तुम्हे बेरंग,
बैरंग।.
पीढ़ियों का अंतर
पीढ़ियों का अंतर
एक पुल है,
उस पार
रहता है भविष्य
इस पार
आज है
जो सिर्फ
आज को ही देख पाता है,
अगर तुम कल को
देख पाओ तो
पार कर लोगे
यह पुल,
नहीं तो खाईयों
में तुम्हारा
स्वागत है।
अहं की
अभिव्यक्तिमैं से शुरू
मैं से इति
मैं बेहतर
तू कमतर
मैं आकाश
तू थलचर
मैं रसना
मैं श्रुति
मैं दृष्टा
मैं श्रृष्टि
तू आलोचक
मैं कृति
सब पराये
मेरा दुर्योधन
मैं स्वीकृति
मैं अनुमोदन
मैं ही प्रश्न
मैं ही उत्तर
मैं ही सत्य
तू निरुत्तर
मोह की हवा
फूला गुब्बारा
फटा तो
बचा न
मोह न मैं
भाव के गर्भ से
जन्म लेते शब्द
ज़ेर से अटे
नग्न
करते हैं रुदन
पर होते हैं जीवंत
शब्दों से
भाव का निर्माण
मूर्तिकार की रचना
तराशी हुई
सुन्दर
मनमोहक
पर निष्प्राण