अहं की
अभिव्यक्ति
मैं से शुरू
मैं से इति
मैं बेहतर
तू कमतर
मैं आकाश
तू थलचर
मैं रसना
मैं श्रुति
मैं दृष्टा
मैं श्रृष्टि
तू आलोचक
मैं कृति
सब पराये
मेरा दुर्योधन
मैं स्वीकृति
मैं अनुमोदन
मैं ही प्रश्न
मैं ही उत्तर
मैं ही सत्य
तू निरुत्तर
मोह की हवा
फूला गुब्बारा
फटा तो
बचा न
मोह न मैं
सुन्दर!!
जवाब देंहटाएंअहं का अंत होना ही था...
माँ सरस्वती की कृपा आप पर बनी रहे..
बहुत सुन्दर,सार्थक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंऋतुराज वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।
Ant aate aate moh aur aham khatm ho jaata hai ...
जवाब देंहटाएंsubdar abhivyakti ...
अहम की संतुष्ठी और 'मैं' का प्रहार ..शब्दलोक से निकले जोरदार शब्दों की जोरदार अभिव्यक्ति ..बधाई विशाल ...तुम्हारी कलम दिनबदिन पैनी होती जा रही हैं ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भाव और शब्द संयोजन... वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ...
जवाब देंहटाएंगुब्बारा फूटने पर न मोह बचा न मैं ... सटीक भाव .. अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंअर्थात -
जवाब देंहटाएंमम किंचन न ( मेरा कुछ भी नहीं )
शाश्वत सत्य..
''मैं '' से मैं का सुन्दर परिचय
जवाब देंहटाएंसुन्दर और संवेदनशील.....
जवाब देंहटाएंअगर हम समझ सकें तो....
अहं की
अभिव्यक्ति
मैं से शुरू
मैं से इति
मैं बेहतर
तू कमतर
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मैं रसना
मैं श्रुति
मैं दृष्टा
मैं श्रृष्टि
तू आलोचक
मैं कृति
सब पराये
........
.......
मैं स्वीकृति
मैं अनुमोदन
मैं ही प्रश्न
मैं ही उत्तर
मैं ही सत्य
तू निरुत्तर
........
........
अब इस "मैं"से कोई छुट्टी दिलाये तो....
जो कहता है उसे तो इसका ज़रा भी
एहसास ही नहीं रहता की वो क्या कह रहा है...
गुब्बारा भी फूटता है तो उसमें से भी मैं ही निकलता है.....!!
काश......इतना आसान हो पाता
थोडा तो मोह भंग हो पाता...!!
और कमाल यह कि यह "मैं" है कौन, यही नहीं मालूम... मैं शरीर हूँ, मैं मन हूँ, मैं आत्मा हूँ.. कौन हूँ मैं!!
जवाब देंहटाएंइस ’मैं’ के ही रोने हैं विशाल भाई, हमरी न मानो तो चचा गालिब से पूछो जिसने लिख दीन्हा कि ’डुबोया मुझको होने ने, न होता मैं तो क्या होता’
जवाब देंहटाएंमोह की हवा
जवाब देंहटाएंफूला गुब्बारा
फटा तो
बचा न
मोह न मैं
बहुत बेहतरीन सटीक अभिव्यक्ति ..
गुब्बारा फटता है तो कुछ नहीं बचता सच है...
जवाब देंहटाएंमैं नहीं तो मोह भी नहीं ।
जवाब देंहटाएंवाह, भावपूर्ण अच्छी कविता।
where is my comment Vishal Ji?
जवाब देंहटाएंमैं हूँ तो मोह भी है..
जवाब देंहटाएंbahot achche.....
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जवाब देंहटाएं♥
मेरा मुझमें कुछ नहीं … … …
बहुत अच्छी कविता लिखी प्रिय बंधुवर विशाल जी !
मैं से शुरू
मैं से इति
मैं बेहतर
मैं आकाश
मैं रसना
मैं श्रुति
मैं दृष्टा
मैं श्रृष्टि
मैं कृति
मैं स्वीकृति
मैं अनुमोदन
मैं ही प्रश्न
मैं ही उत्तर
मैं ही सत्य
सच, यही भ्रम लिये रहते हैं हम
कविता का समापन 'सत्य' और 'संदेश' समाहित किए हुए है …
फूला गुब्बारा
फटा तो
बचा न
मोह न मैं
सुंदर रचना ! बधाई !
हार्दिक शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
बहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंअहम् टूटा....तभी मैं मिला...
सादर.
बहुत सुन्दर!
जवाब देंहटाएंसादर शुभकानाएँ
knock knock!!
जवाब देंहटाएंkidhar ho Vishal Bhai?
???????
जवाब देंहटाएंbahut sundar
जवाब देंहटाएंvaah! vaah! vaah!
ahm ka gubbaara phoota
aah! aah! aah!
aah! se hi to nikal pada
phir allah! allah! allah!
mai mara to raam ho gaya.
chain mila aaraam ho gaya.
कविता पढ़ते ही दिल -दिमाग उसकी भावाव्यक्ति में ड़ूब गये |सुन्दर सृजन के लिए बधाई है |
जवाब देंहटाएंवाह बहुत खूब लिखा है आपने, मन भाया.
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें
शब्दों की मितव्ययिता की है, पर भावों की नहीं...सुन्दर
जवाब देंहटाएंमंजिल न दे ,चिराग न दे , हौसला तो दे.
जवाब देंहटाएंतिनके का ही सही, मगर आसरा तो दे.
मैंने ये कब कहा कि मेरे हक में हो जबाब
लेकिन खामोश क्यों है कोई फैसला तो दे.
खामोश तो आप हैं विशाल भाई.
इतनी खामोशी भी अच्छी नही जी.
विशाल जी
नमस्कार !
आशा है सपरिवार स्वस्थ सानंद हैं
नई पोस्ट बदले हुए बहुत समय हो गया है …
आपकी प्रतीक्षा है सारे हिंदी ब्लॉगजगत को …
:)
शुभकामनाओं सहित…
राजेन्द्र स्वर्णकार
पधारो महाराज, साल बदलने वाला हो गया अब तो।
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