03 नवंबर 2011

स्वयंनामा-6

तआल्लुक

तर्के तआल्लुक के बाद भी
तआल्लुक बचा रहा
तू बेशक बचा रहा
मैं नाहक बचा रहा

रिश्ता

आज खोली है
मैंने
रिश्तों की किताब
हैरां हूँ
किसी भी वर्क पर
तेरा नाम नहीं
लगता है
तू मैं हो गया

अतिक्रमण

सम्बन्ध जब
लांघने लगते हैं
सीमाएं
और गढ़ने 
लगते हैं
नयी परिभाषाएं
तो शुरू हो जाता है
रिश्तों का अतिक्रमण
टूट जाती हैं 
कच्चे धागों से
बंधी
सब गांठें
या फिर 
मिल के बना देती है
इक मजबूत
गाँठ 




30 टिप्‍पणियां:

  1. विशाल की विशालता का अनुमान लगाना मुश्किल ही नही नामुमकिन है.
    मैं को नाहक बचा के,तू को मैं करदे
    फिर रिश्तों का अतिक्रमण कर 'तू' और 'मैं'की
    भी मजबूत गाँठ लगा दे.

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  2. सम्बन्ध जब
    लांघने लगते हैं
    सीमाएं
    और गढ़ने
    लगते हैं
    नयी परिभाषाएं
    तो शुरू हो जाता है
    रिश्तों का अतिक्रमण
    टूट जाती हैं
    कच्चे धागों से
    बंधी
    सब गांठें
    या फिर
    मिल के बना देती है
    इक मजबूत
    गाँठ

    वाह बहुत खूब.

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  3. किसी भी वर्क में तेरा नाम नहीं
    लगता है तू मैं हो गया.. बहुत सुन्दर..

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  4. बहुत उम्दा
    तीनो ही काबिले दाद....
    सादर बधाई...

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  5. सुन्दर क्षणिकाएं|

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  6. तो शुरू हो जाता है
    रिश्तों का अतिक्रमण
    टूट जाती हैं
    कच्चे धागों से
    बंधी
    सब गांठें

    बहुत गहन .. सुन्दर अभिव्यक्ति

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  7. या ऐसा या वैसा ...
    किसी भी घटना के दो विपरीत परिणाम होने की सम्भावन को खूबसूरती से व्यक्त किया !

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  8. लगता है तू मैं हो गया...
    रिश्तों का अतिक्रमण
    इक मजबूत
    गाँठ

    वाह... बहुत सुन्दर.. .. सुन्दर रचना

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  9. लगता है तू मैं हो गया ...
    सच है असली रिश्ता तो वही है जब सब फर्क मिट जाए ...

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  10. परिभाषा का अतिक्रमण हैरान ही करता है जब मैं और वो समंदर में नमक सा हो जाए..बहुत सुन्दर लिखा है..विशाल जी.

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  11. तू और मै एक ही हैं तो गांठ किसलिये । सुंदर क्षणिकाएँ ।

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  12. खूबसूरत और ऊँची और गहरी और जज़्बाती और ....।

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  13. बहुत सुन्दर क्षणिकाएं लिखा है आपने....
    बहुत गहन .. सुन्दर अभिव्यक्ति
    आपको मेरी हार्दिक शुभ कामनाएं !!

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  14. तीनों कशानिकाएं एक से बढाकर एक है.बहुत संवेदनशील और गहरे और जज्बाती भाव लिये.

    बधाई.

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  15. मज़ा आ गया। समझ न सका कि उलटबांसी कहूँ कि सरल सत्य - शायद दोनों ही।

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  16. तीनो ही सुंदर क्षणिकाएँ.

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  17. तआल्लुक बहुत बढ़िया लगी...

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  18. प्रिय बंधुवर विशाल जी
    सस्नेहाभिवादन !

    क्षणिकाएं बहुत बहुत ख़ूबसूरत हैं तीनों … हर बूंद में सागर समाया है जैसे…
    बहुत सुंदर !
    तू बेशक बचा रहा
    मैं नाहक बचा रहा

    वाह ! भाव के लिए तो बधाई है ही … अलंकार के लिए अलग से बधाई !
    … लगता है
    तू मैं हो गया

    जवाब नहीं … ख़ूब !!

    पिछली पोस्ट्स की ग़ज़लें भी बहुत पसंद आईं …

    बधाई और शुभकामनाओं सहित…
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  19. विशाल जी बहुत खूब बधाई...
    मेरी पोस्ट-वजूद- में आपका स्वागत है

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  20. Teenon rachanayen kamaal kee hain! Pahlee baar aapke blog pe aayee hun....bahut hee achha laga!

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  21. बहुत सुन्दर एवं भावपूर्ण रचना !
    आयें मेर ब्लॉग पे !
    सदस्य बन रहा हूँ !

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  22. hamko chote chote risto ko bhi ko bhi sahej kar rakhna chahiye
    Aapki rachna parhkar yahi seekha hai hamne

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  23. फैसला आपके हक में ही है विशाल जी..इतनी खूबसूरत क्षणिकाएं पढ़ कर दिल खुश हो गया....बेहतरीन भाव और अभिव्यक्ति भी लाजवाब.

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मंजिल न दे ,चिराग न दे , हौसला तो दे.
तिनके का ही सही, मगर आसरा तो दे.
मैंने ये कब कहा कि मेरे हक में हो जबाब
लेकिन खामोश क्यों है कोई फैसला तो दे.