मेरे स्वर्गीय पिता जी श्री नसीब चेतन जी की पुस्तक "कोरे कागज़" (1973) में से एक नज़्म पेशे खिदमत है.मेरे अज़ीज़ दोस्त डॉक्टर सतनाम सिंह जी ने मेरे अनुरोध पर इस पुस्तक की एक प्रति पंजाबी university ,पटियाला के पुस्तकालय से मुझे उपलब्ध करवाई है.मेरे पिता जी की यह तस्वीर इमरोज़ जी द्वारा बनाई गयी है.
कांच के शरीर ..........श्री नसीब चेतन
कांच के शरीर ..........श्री नसीब चेतन
मैं तो हूँ एक परवाना
किसी मद्धिम सी लौ में
मैं जलना चाहूँ
मगर जिस घर जाऊं
लौ नहीं मिलती
जलते हैं बस
तेज़ रौशनी के बल्ब
जिनके कांच के शरीरों के साथ
मैं टकरा तो सकता हूँ
पर जल नहीं सकता
जी नहीं सकता
मर नहीं सकता
विशाल जी, उत्सुकता का सैलाब उमड़ आया है , पूज्य पिता जी के विषय में और जानने के लिए. इतना अच्छा लिखा करते थे वो.
जवाब देंहटाएंयह कांच बल्ब........ क्या बिम्ब है ...एक पूरा जीवन दर्शन समाहित कर दिया ...शुक्रिया आपका इस उत्तम रचना को साँझा करने के लिए .....!
जवाब देंहटाएंकविता सुन्दरतम है बधाई
जवाब देंहटाएंkya baat hai....sunadr
जवाब देंहटाएंजिनके कांच के शरीरों के साथ
जवाब देंहटाएंमैं टकरा तो सकता हूँ
पर जल नहीं सकता.....
वाह!! क्या ही बिम्ब है और कितना गहरा संकेत.... वाह!!
बहुत ही गहरी रचना....
आदरणीय विशाल जी आद.पिताजी की रचनाओं को साहित्य प्रेमी पाठकों के लिये निरंतर प्रकाशित करने का उद्द्यम करें मित्र.... अच्छा होगा...
सादर...
Bahut Khoob.
जवाब देंहटाएंजीवन के बदलाव को ... भावनाओं के साथ मिला कर ... गहरी बात कह डी है चंद शब्दों में ...
जवाब देंहटाएंउनकी और कृतियों को भी यहाँ लिखेंगे तो बहुत अच्छा लगेगा ...
कम शब्दों में समय के बदलाव को कहती बेहद सुंदर रचना ...समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना ..
जवाब देंहटाएंविशाल जी अद्भुत रचना है यह.. और इसे पढ़ने के बाद समझ सकता हूँ कि आपकी कविताओं में वो कशिश कहाँ से आती होगी.. निश्चय ही यह उनके आशीष का परिणाम है!! पूज्य पिताजी के चरणों में सादर नमन!!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंऔर क्या कहू सब कुछ तो सलिल जी ने कह ही दिया है
आभार
अद्भुत रचना!
जवाब देंहटाएंWhere is my comment Vishal Ji?
जवाब देंहटाएंसुभानाल्लाह.......बेहतरीन........बदलते हुए परिवेश में लिखी गयी ये नज़्म शानदार है......आपके पिता जी बेहतरीन फनकार हैं ......हमारा सलाम उनको ||
जवाब देंहटाएंIMRAN ANSARI
जलते हैं बस
जवाब देंहटाएंतेज़ रौशनी के बल्ब
जिनके कांच के शरीरों के साथ
मैं टकरा तो सकता हूँ
khoobsoorat.....
....POONAM....
विशाल भाई,
जवाब देंहटाएंऔर भी नज्में डालिये ब्लॉग पर, बहुत कशिश है इन शब्दों में।
Now I know, shayari or poetry runs in the blood. Shall be waiting for more such valuable nuggets !
जवाब देंहटाएंbahut sundar rachana hai...
जवाब देंहटाएंपिता श्री को सादर नमन.
जवाब देंहटाएंबहुत प्रसन्नता मिली उनकी इस सुन्दर रचना को पढकर.
अनुपम भावों से यह प्रस्तुति चेतन हो गई है.
देरी से टिपण्णी देने के लिए क्षमा कीजियेगा,विशाल भाई.
Itana drd har lafz men ....bahut khub ..
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