तआल्लुक
तर्के तआल्लुक के बाद भी
तआल्लुक बचा रहा
तू बेशक बचा रहा
मैं नाहक बचा रहा
रिश्ता
आज खोली है
मैंने
रिश्तों की किताब
हैरां हूँ
किसी भी वर्क पर
तेरा नाम नहीं
लगता है
तू मैं हो गया
अतिक्रमण
सम्बन्ध जब
लांघने लगते हैं
सीमाएं
और गढ़ने
लगते हैं
नयी परिभाषाएं
तो शुरू हो जाता है
रिश्तों का अतिक्रमण
टूट जाती हैं
कच्चे धागों से
बंधी
सब गांठें
या फिर
मिल के बना देती है
इक मजबूत
गाँठ
विशाल की विशालता का अनुमान लगाना मुश्किल ही नही नामुमकिन है.
जवाब देंहटाएंमैं को नाहक बचा के,तू को मैं करदे
फिर रिश्तों का अतिक्रमण कर 'तू' और 'मैं'की
भी मजबूत गाँठ लगा दे.
तीनो ही शानदार्।
जवाब देंहटाएंसम्बन्ध जब
जवाब देंहटाएंलांघने लगते हैं
सीमाएं
और गढ़ने
लगते हैं
नयी परिभाषाएं
तो शुरू हो जाता है
रिश्तों का अतिक्रमण
टूट जाती हैं
कच्चे धागों से
बंधी
सब गांठें
या फिर
मिल के बना देती है
इक मजबूत
गाँठ
वाह बहुत खूब.
किसी भी वर्क में तेरा नाम नहीं
जवाब देंहटाएंलगता है तू मैं हो गया.. बहुत सुन्दर..
आज 03 - 11 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
जवाब देंहटाएं...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
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बहुत उम्दा
जवाब देंहटाएंतीनो ही काबिले दाद....
सादर बधाई...
सुन्दर क्षणिकाएं|
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर, बधाई.
जवाब देंहटाएं.
तो शुरू हो जाता है
जवाब देंहटाएंरिश्तों का अतिक्रमण
टूट जाती हैं
कच्चे धागों से
बंधी
सब गांठें
बहुत गहन .. सुन्दर अभिव्यक्ति
या ऐसा या वैसा ...
जवाब देंहटाएंकिसी भी घटना के दो विपरीत परिणाम होने की सम्भावन को खूबसूरती से व्यक्त किया !
लगता है तू मैं हो गया...
जवाब देंहटाएंरिश्तों का अतिक्रमण
इक मजबूत
गाँठ
वाह... बहुत सुन्दर.. .. सुन्दर रचना
लगता है तू मैं हो गया ...
जवाब देंहटाएंसच है असली रिश्ता तो वही है जब सब फर्क मिट जाए ...
परिभाषा का अतिक्रमण हैरान ही करता है जब मैं और वो समंदर में नमक सा हो जाए..बहुत सुन्दर लिखा है..विशाल जी.
जवाब देंहटाएंतू और मै एक ही हैं तो गांठ किसलिये । सुंदर क्षणिकाएँ ।
जवाब देंहटाएंखूबसूरत और ऊँची और गहरी और जज़्बाती और ....।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर क्षणिकाएं लिखा है आपने....
जवाब देंहटाएंबहुत गहन .. सुन्दर अभिव्यक्ति
आपको मेरी हार्दिक शुभ कामनाएं !!
तीनों कशानिकाएं एक से बढाकर एक है.बहुत संवेदनशील और गहरे और जज्बाती भाव लिये.
जवाब देंहटाएंबधाई.
nice..
जवाब देंहटाएंbeautiful..
excellent...
मज़ा आ गया। समझ न सका कि उलटबांसी कहूँ कि सरल सत्य - शायद दोनों ही।
जवाब देंहटाएंतीनो ही सुंदर क्षणिकाएँ.
जवाब देंहटाएंतआल्लुक बहुत बढ़िया लगी...
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएं♥
प्रिय बंधुवर विशाल जी
सस्नेहाभिवादन !
क्षणिकाएं बहुत बहुत ख़ूबसूरत हैं तीनों … हर बूंद में सागर समाया है जैसे…
बहुत सुंदर !
तू बेशक बचा रहा
मैं नाहक बचा रहा
वाह ! भाव के लिए तो बधाई है ही … अलंकार के लिए अलग से बधाई !
… लगता है
तू मैं हो गया
जवाब नहीं … ख़ूब !!
पिछली पोस्ट्स की ग़ज़लें भी बहुत पसंद आईं …
बधाई और शुभकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
bahut sunder bhaw rache hain.......
जवाब देंहटाएंविशाल जी बहुत खूब बधाई...
जवाब देंहटाएंमेरी पोस्ट-वजूद- में आपका स्वागत है
Teenon rachanayen kamaal kee hain! Pahlee baar aapke blog pe aayee hun....bahut hee achha laga!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर एवं भावपूर्ण रचना !
जवाब देंहटाएंआयें मेर ब्लॉग पे !
सदस्य बन रहा हूँ !
hamko chote chote risto ko bhi ko bhi sahej kar rakhna chahiye
जवाब देंहटाएंAapki rachna parhkar yahi seekha hai hamne
apki kahi tino hi
जवाब देंहटाएंbate bahut acchi hai..
फैसला आपके हक में ही है विशाल जी..इतनी खूबसूरत क्षणिकाएं पढ़ कर दिल खुश हो गया....बेहतरीन भाव और अभिव्यक्ति भी लाजवाब.
जवाब देंहटाएंbahut khub .......
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