30 नवंबर 2011

रिश्ता.............. श्री नसीब चेतन

रिश्तों में बंधी ज़िन्दगी
कच्ची डोर का जाल
रिश्ते मौसम के गुलाम
पानी की तरह बदल लेते हैं रूप 


राखी में महक उठती है हवस
भर लेता खून स्वांग ज़हर का
पंख लग जाते दूध की मिठास को


मगर पत्थर मौसम की क़ैद से आज़ाद हैं
उन पर नहीं पानी का असर
पत्थर है एक रिश्ता काम का


रिश्तों में बंधी ज़िन्दगी
कच्ची डोर का जाल
रिश्ते मौसम के गुलाम
पानी की तरह बदल लेते हैं रूप

23 टिप्‍पणियां:

  1. रिश्तों में बंधी ज़िन्दगी
    कच्ची डोर का जाल
    रिश्ते मौसम के गुलाम
    पानी की तरह बदल लेते हैं रूप

    वाह यह रिश्ते और और इनका पानी की तरह इनका बदलना ......!

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  2. सटीक ||

    बधाई ||

    सुन्दर प्रस्तुति ||

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  3. रिश्तों में बंधी ज़िन्दगी
    कच्ची डोर का जाल
    रिश्ते मौसम के गुलाम
    पानी की तरह बदल लेते हैं रूप

    सुन्दर अभिव्यक्ति !

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  4. पूज्य पिताजी की कवितायें तो ऐसे बाँध लेती हैं कि कुछ कह पाने की स्थिति नहीं रह जाती है!! विशाल भाई, कुछ नहीं, बस मौन स्वीकारें!!

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  5. रिश्ते मौसम के गुलाम
    पानी की तरह बदल लेते हैं रूप !!

    sachchaayee hai... kahin n kahin....!!

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  6. रिश्ते मौसम के गुलाम
    पानी की तरह बदल लेते हैं रूप !!
    सच्ची सार्थक रचना...
    सादर आभार आदरणीय विशाल भाई...
    यह सुन्दर शृंखला अनवरत चलती रहे...
    सादर बधाई...

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  7. रिश्तों में बंधी ज़िन्दगी
    कच्ची डोर का जाल
    रिश्ते मौसम के गुलाम
    पानी की तरह बदल लेते हैं रूप.........waah bahut khub

    par vishwas kii dor bhi jaruri hai har rishte mei ...aabhar

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  8. रिश्ते मौसम के गुलाम
    पानी की तरह बदल लेते हैं रूप..

    खूबसूरत अभिव्यक्ति ...

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  9. रिश्ते भी गीली धुप से होते हैं ..

    खूबसूरत अभिव्यक्ति ...

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  10. रिश्तों में बंधी ज़िन्दगी
    कच्ची डोर का जाल
    रिश्ते मौसम के गुलाम
    पानी की तरह बदल लेते हैं रूप....बहुत ही खुबसूरत......

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  11. बहुत खूबसूरत रचना............
    बधाई स्वीकारें.

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  12. विशाल भाई अच्छी कविता है ये आप के पापा जी की, ऐसी और कवितायें भी पढ़वाना

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  13. पत्थर है एक रिश्ता काम का
    ...
    मुझे भी यही बात जंचती है विशाल भाई !

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  14. रिश्तों में बंधी ज़िन्दगी
    कच्ची डोर का जाल
    रिश्ते मौसम के गुलाम
    पानी की तरह बदल लेते हैं रूप

    बहुत खूबसूरत.....बेहतरीन अभिव्यक्ति है बदलते रिश्तों की|

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  15. बदलता रूप रिश्तों का ...बहुत सुन्दर रचना.

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  16. खूबसूरत प्रस्तुति ! बदलते रिश्तों की फितरत को बहुत ही बेबाकी से उकेरा है ! बधाई !

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  17. रिश्तों में बंधी ज़िन्दगी
    कच्ची डोर का जाल
    रिश्ते मौसम के गुलाम
    पानी की तरह बदल लेते हैं रूप

    ...बहुत सच...रिश्तों की सच्चाई को बखूबी उकेरा है..बहुत सुंदर

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  18. रिश्तों में बंधी ज़िन्दगी
    कच्ची डोर का जाल
    रिश्ते मौसम के गुलाम
    पानी की तरह बदल लेते हैं रूप
    riston ka taanabaana esa hi hai

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  19. रिश्ते को पानी की तरह बदलना बहुत कुछ बयां कर रहा है ..

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  20. रिश्ते पत्थर जो नहीं होते ... मौसम का असर तो होना है .. बहुत उम्दा प्रस्तुति ....

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  21. रिश्तों में बंधी ज़िन्दगी
    कच्ची डोर का जाल
    रिश्ते मौसम के गुलाम
    पानी की तरह बदल लेते हैं रूप...बहुत खूबसूरत प्रस्तुति !

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मंजिल न दे ,चिराग न दे , हौसला तो दे.
तिनके का ही सही, मगर आसरा तो दे.
मैंने ये कब कहा कि मेरे हक में हो जबाब
लेकिन खामोश क्यों है कोई फैसला तो दे.