हुस्न की हम पर इनायत हो गयी,
क़त्ल होने की इजाज़त हो गयी,
हमने तो इक बार सजदा था किया,
उनके कूचे में बग़ावत हो गयी,
हमको उनसे शिकायत क्यों नहीं,
अपनी शराफ़त भी शिकायत हो गयी,
एक आगे तो दो कदम पीछे रखूँ,
उनकी गली जैसे विलायत हो गयी,
देख उसको मुस्कराना छोड़ दो
रक़ीब से काफ़ी रियायत हो गयी.
जब सर पर स्नेहिल हाथ की ज़रूरत हो तो अनेक शब्द भी कुछ नहीं कर पाते और अगर ख़ामोशी हो तो कई सोच धराशाई हो जाती है ...bahut khoob
जवाब देंहटाएंहमने तो इक बार सजदा था किया,
जवाब देंहटाएंउनके कूचे में बग़ावत हो गयी,
खूबसूरत गज़ल
आदरणीया रश्मि प्रभा जी,
जवाब देंहटाएंआपकी स्नेह भरी टिप्पणी के लिए आभार.
पर लगता है,टिप्पणी कहीं और पहुँच गयी है.
एक आगे तो दो कदम पीछे रखूँ,
जवाब देंहटाएंउनकी गली जैसे विलायत हो गयी,
बहुत खूब, वाह
बहुत सुन्दर गज़ल्।
जवाब देंहटाएंbahut hee khoobsoorat gazal
जवाब देंहटाएंएक आगे तो दो कदम पीछे रखूँ,
जवाब देंहटाएंउनकी गली जैसे विलायत हो गयी,..
वाह विशाल जी ... बरबस मुस्कान आ गई इस शेर को पढ़ कर ... प्रेम की अभिव्यक्ति है इन शेरों एमिन ... लाजवाब .,,,
एक आगे तो दो कदम पीछे रखूँ,
जवाब देंहटाएंउनकी गली जैसे विलायत हो गयी,
लगता है अब हमारा यहाँ क्या काम.
आपको बुलाएँ तो आप आते नही,और हम बिन बुलाए ही चले आते हैं.
बिन बुलाए मेहमान की तरह बार बार आना अच्छा तो नही.
भले ही विलायत क्यूँ न हो.
एक आगे तो दो कदम पीछे रखूँ,
जवाब देंहटाएंउनकी गली जैसे विलायत हो गयी,
बहुत खूब....
बहुत खूबसूरत ,बधाई.
जवाब देंहटाएंwaha bahut khub....
जवाब देंहटाएंvaah..bahut umdaa ghazal.
जवाब देंहटाएंउम्दा गज़ल विशाल जी...
जवाब देंहटाएंसादर बधाई...
आपका पोस्ट अच्छा लगा । मेर नए पोस्ट पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंअच्छे अशार,उम्दा गजल ।
जवाब देंहटाएंएक आगे तो दो कदम पीछे रखूँ,
जवाब देंहटाएंउनकी गली जैसे विलायत हो गयी,
.....
bahut khoobsurat gazhal hai!!
हुस्न की खुबसूरत सजा ही है जो कत्ल होने में मज़ा देती है..विशाल जी , बेहद खुबसूरत लिखा है . और वो शून्य पर जो लिखा है ..मेरी रचना मुझे विपरीत सी लगने लगी. बहुत अच्छी लगी...शून्य में तुम..
जवाब देंहटाएंसुभानाल्लाह..........हर शेर पर वाह निकलता है..........बहुत ही खूबसूरत शेर हैं|
जवाब देंहटाएंबहुत खूब, विशाल भाई। महकती सी गज़ल बहुत अच्छी लगी।
जवाब देंहटाएंहमने तो इक बार सजदा था किया,
जवाब देंहटाएंउनके कूचे में बग़ावत हो गयी,
बहुत खूबसूरत.
हुस्न की हम पर इनायत हो गयी,
जवाब देंहटाएंक़त्ल होने की इजाज़त हो गयी,
मेरे ब्लॉग पर आपका आना मुझे निहाल कर देता है,विशाल भाई.
आपके आँसूं मेरे लिए अनमोल मोती हैं.
अब तो आप क़त्ल भी कीजियेगा,तो कोई उज्र नही जी.
बहुत खूबसूरत रचना|
जवाब देंहटाएंaafareen
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत ,
जवाब देंहटाएंविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
क्या बात है...बेहतरीन!
जवाब देंहटाएंbehat khubsurat rachna...
जवाब देंहटाएंaap meri post par aaye apka hardik dhanyvaad..
एक आगे तो दो कदम पीछे रखूँ,
जवाब देंहटाएंउनकी गली जैसे विलायत हो गयी,..बहुत खूबसूरत शब्द पिरोये है..
एक आगे तो दो कदम पीछे रखूँ,
जवाब देंहटाएंउनकी गली जैसे विलायत हो गयी
बहुत खूब!
हमको उनसे शिकायत क्यों नहीं,
जवाब देंहटाएंअपनी शराफ़त भी शिकायत हो गयी,
बहुत खूब...!!
बहुत खूब विशाल जी
जवाब देंहटाएंदेख उसको मुस्कराना छोड़ दो
रक़ीब से काफ़ी रियायत हो गयी.
:)
bahut behtarin post hai....
जवाब देंहटाएंहमने तो इक बार सजदा था किया,
जवाब देंहटाएंउनके कूचे में बग़ावत हो गयी,
vishal bhai ji ...bahut bahut shukriyais sundar gazal ke liye!