26 नवंबर 2011

बात बेचारी


               श्री नसीब चेतन                
             
हवा की तरह बात उड़ी 
उड़ती रही
कानों से जीभों तलक
जीभों से कानों तक
चलती रही
जूठन बनी कई जीभों का
कई कानों का उतार
कुडती  रही

कुछ कानों ने घोला नाम
कुछ जीभों ने खाकर लिया चाट
भाव शब्दों के  बदले
अर्थ लंगडा  कर चले
उतरों की कैनवस पर
विषैले साँपों जैसे 
प्रश्नों ने कुछ रंग भरे
सच का उड़ा मज़ाक
झूठ की चमक मरी
कर्मों मारी
बात बेचारी
हंसी में से फिसलती
तल्खियों से गुज़रती
भावों में से छलकती
महफ़िलों को करती रंगीन
रास्तों से शर्माती हुई
चुप में चिल्लाती हुई
सोच की दलदल को करके पार
बिगड़े अंगो को संभाल
आसमान पर
जा बैठी

हवा की तरह बात उड़ी 
उड़ती रही

28 टिप्‍पणियां:

  1. सब कुछ करती रही बात बेचारी .....!

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  2. हवा की तरह बात उड़ी
    उड़ती रही
    बहुत खूब ।

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  3. पूज्य पिताजी की रचनाओं से सहज जुड़ाव होता जा रहा है .उनको पढ़ना सुखद है .

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  4. सुभानाल्लाह.......तिल का ताड़ वाली मसल जो बुजुर्गो ने दी वाकई सच है.........बहुत ही खुबसूरत लगी पोस्ट.............हैट्स ऑफ इसके लिए|

    imran ansari.

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  5. चमत्कृत करने वाले शब्द हैं.. और उतने ही गहरे भाव... समय से आगे की सोच थी उनकी.. बल्कि ऐसे रचनाकार के लिए तो "थे" शब्द का प्रयोग भी अन्याय है.. वे हैं और हमसे बातें कर रहे हैं.. आई सैल्यूट यू!!!

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  6. चकित करते हैं उड़ते उड़ते आसमां पर बैठे शब्द...
    अद्भुत भाव/शब्द संयोजन है रचना में
    सादर

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  7. hawa ki tarah baat udi.....kai jeebhon ka joothan bani bahut acche

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  8. kuch ajib se shabd..kuch ajib se khyalat...or sunne ki ichha ho rahi hei vishalji .....

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  9. हवा की तरह बात उड़ी
    उड़ती रही

    वाह! क्या बात है.
    बात का यह 'नसीब' बहुत अच्छा लगा.
    उड़ते उड़ते बात भी 'विशाल'हो गई

    आदरणीय नसीब जी की बात की 'विशाल'जी
    द्वारा यह प्रस्तुति लाजबाब है.

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  10. bahut hi sundar ...baat bechari apne har sab me gahrai liye adbhud rachana

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  11. पिता की सुन्दर कृति को पढवाने का शुक्रिया

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  12. हवा की तरह बात उडी । बहुत सुंदर ...

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  13. वाह अफवाहों की अंतर्कथा की एक अद्भुत काव्यात्मक कथा यात्रा

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  14. हवा की तरह बात उड़ती रही और
    रूप बदलती रही...
    इस सुन्दर रचना को पढ़वाने के लिए आभार|

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  15. बेहतरीन रचना. आपका आभार.

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  16. कुछ कानों ने घोला नाम
    कुछ जीभों ने खाकर लिया चाट
    भाव शब्दों के बदले
    अर्थ लंगडा कर चले
    उतरों की कैनवस पर
    विषैले साँपों जैसे
    प्रश्नों ने कुछ रंग भरे
    सच का उड़ा मज़ाक
    झूठ की चमक मरी
    कर्मों मारी
    बात बेचारी
    हंसी में से फिसलती
    तल्खियों से गुज़रती
    भावों में से छलकती

    और बात कहाँ से कहाँ तक पहुँच गयी...

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  17. लाजबाब सुंदर पोस्ट,अच्छी लगी,..
    मेरे पोस्ट 'शब्द'में आपका इंतजार है,..

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  18. बातों की यही तो खासियत है कि ये कहाँ से चल कर कहाँ पहुँच जाती हैं बस जहाँ पहुँचना चाहिये वहीं नहीं पहुँचती ......

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  19. सुंदर प्रस्तुति विशाल जी , ठीक ही तो है, " बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी ! आपके पूज्य पिता जी को नमन !

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  20. बहुत ही सुन्दर रचना.... ....

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  21. भावों में से छलकती
    महफ़िलों को करती रंगीन
    रास्तों से शर्माती हुई
    चुप में चिल्लाती हुई
    सोच की दलदल को करके पार
    बिगड़े अंगो को संभाल
    आसमान पर
    जा बैठी

    क्या बात है ।

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मंजिल न दे ,चिराग न दे , हौसला तो दे.
तिनके का ही सही, मगर आसरा तो दे.
मैंने ये कब कहा कि मेरे हक में हो जबाब
लेकिन खामोश क्यों है कोई फैसला तो दे.