बहुत ही सुंदर ...... आखिरी दो पंक्तियाँ तो मन को उद्वेलित करने वाली हैं......
भीड़ का आक्रोश हूँ मैं ....बहुत अच्छे लगे ये भाव !
डॉ॰ मोनिका शर्मा, ZEAL,आपकी टिप्पणियाँ मुझे बहुत प्रोत्साहित कर रही हैं.धन्यवाद .
झूठ के भाषण बहुतइसलिए खामोश हूँ ...रहिये खामोश मगर लिखते रहिये !
क्या बात लिख दी !बहुत अच्छी पंक्तियां !मन को छूती है रचना !
भीड़ का आक्रोश........इस उन्माद को दिशा की आस है.
छोटी सी कविता में बहुत सारी बातें कह दीं आपने....ये दस पंक्तियाँ ख़ामोश मन का विद्रोह बड़े अच्छे से कह जा रही हैं....
"झूठ के भाषण बहुतइस लिए खामोश हूँ"झूठ बोले जोर सेमैं इसलिए खामोश हूँ भलाई भी इसी में है..
मंजिल न दे ,चिराग न दे , हौसला तो दे. तिनके का ही सही, मगर आसरा तो दे.मैंने ये कब कहा कि मेरे हक में हो जबाबलेकिन खामोश क्यों है कोई फैसला तो दे.
बहुत ही सुंदर ...... आखिरी दो पंक्तियाँ तो मन को उद्वेलित करने वाली हैं......
जवाब देंहटाएंभीड़ का आक्रोश हूँ मैं ....बहुत अच्छे लगे ये भाव !
जवाब देंहटाएंडॉ॰ मोनिका शर्मा,
जवाब देंहटाएंZEAL,
आपकी टिप्पणियाँ मुझे बहुत प्रोत्साहित कर रही हैं.धन्यवाद .
झूठ के भाषण बहुत
जवाब देंहटाएंइसलिए खामोश हूँ ...
रहिये खामोश मगर लिखते रहिये !
क्या बात लिख दी !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी पंक्तियां !
मन को छूती है रचना !
भीड़ का आक्रोश........
जवाब देंहटाएंइस उन्माद को दिशा की आस है.
छोटी सी कविता में बहुत सारी बातें कह दीं आपने....ये दस पंक्तियाँ ख़ामोश मन का विद्रोह बड़े अच्छे से कह जा रही हैं....
जवाब देंहटाएं"झूठ के भाषण बहुत
जवाब देंहटाएंइस लिए खामोश हूँ"
झूठ बोले जोर से
मैं इसलिए खामोश हूँ
भलाई भी इसी में है..