30 मार्च 2011

जीने का सुख

राह वो बतला कि

मैं दिल में किसी के घर करूं-2


प्रेम पखरोलवी

चार्ली चैपलिन लिखते हैं कि जीवन की अगर कोई  फिलासफी  है या हो सकती है तो बस यही हो सकती है कि जो अपने सुखों का जितना त्याग करता है,वह उससे सौ गुना ज़्यादा सुख पाता है. यानी पाना है तो तुम्हे अपने को मिटाना होगा.कुदरत ने इस मज़ाक से बढ़कर सुखी जीवन की और कोई कुंजी नहीं है.फारसी जुबां में सूफियों की मणिमाला का एक खूबसूरत शेर है जो सूफी दर्शन का हार माना जाता है-
गुज़स्तम अजसरे मतलब तमाम शुद मतलब 
क्या नफीस बात कही है-मैंने प्राप्ति का एक मोह छोड़ा कि संसार की तमाम प्राप्तियां मेरी झोली में आ गयीं.
लगभग इसी आशय को प्रगटाने वाला एक शेर फ़िराक साहिब ने भी कहा है-
जो ज़हरे हलाहल है,अमृत भी वही नादाँ
मालूम नहीं तुम को, अंदाज़ ही पीने के.
क्या उपदेश है.दरअसल बुजुर्गों की नसीहत के तीर कभी खता नहीं खाते,हाँ चलाने वाले का सर ठिकाने होना चाहिए.
त्याग के बारे  में  वाल्तेअर कहता है कि त्याग कोई  व्यापार तो है नहीं कि देकर तुरंत ही पाने की आशा करो.अरे भाई यह तो घर फूंक तमाशा है.मगर मैंने देखा है कि ईसा भी त्याग करने की बात करता है तो स्वर्ग का लोभ दिखाता है.बस यही ईसा ने त्याग को सूली पर चढ़ा दिया.मुझे उसके सूली पर चढ़ने का शौक कतई नहीं है, मगर त्याग,स्वार्थ त्याग की इस ह्त्या का बड़ा  गम है जो ईसा के हाथों हुई.
उर्दू-फारसी के बहुत बड़े दार्शनिक शायर इकबाल ने इसी  मुद्दे को एक शेर में यों बयान किया है-
वायज कमाले तर्क से मिलती है यां मुराद
दुनिया जो छोड़ दी उक्बा भी छोड़ दे.
शायर नसीहत करता है,धर्मोपदेशक जी,सुख किंवा मोक्ष की मुराद यहाँ त्याग के गुण के तुफैल से हासिल होती है.अब ,जब तुमने दुनिया के सुखों को छोड़ दिया तो कृपया परलोक का मोह क्यों पाले हुए हो,जब लोक छोड़ा है,तो उसके पुण्य के इवज़ाने में परलोक की साध क्यों रखते हो?उसे भी त्याग दो.तभी त्याग भावना निज उत्कर्ष पर पहुंचेगी.
इस सन्दर्भ में लाओत्ज़े की सलाह भी कुछ कम महत्वपूर्ण नहीं लगती.वह कहता है-अरे इंसान ,ज़मीन पर बने घरों से तो तेरा दुःख ही बढेगा,क्यों वे दृष्टि में भेद का धतूरा उड़ेलते हैं.तुझे तेरे पड़ोसी से दूर हटा कर वैर की धार पर छोड़ देते हैं.अरे मूर्ख, घर बनाने के लिए नींव खोदनी हो तो जो भी तुझे मिल जाए उसके भीतर खोद.
और अंत में आयें रसास्वादन  करें मीर तक़ी मीर के इस शेर का और दाद दें .उनकी काव्यानुभूति की, जो इस कद्र सादा और सरल शब्दों में अपनी बात कहने में सफल है-
काबे जाने से नहीं कुछ शेख,मुझ को इतना शौक़ 
राह वो बतला कि मैं दिल में किसी के घर करूं.
और वो राह, मार्ग, प्यार की सुनहरी पगडंडी के अलावा दूसरी कौन हो सकती है जो नज़रों से सीधे गुज़र कर सीधे  दिल तक जाती है.आयें हम सब इसी राह पर अग्रसर होकर व्यक्ति और समाज की कुछ सेवा करलें.    


  

41 टिप्‍पणियां:

  1. जो अपने सुखों का जितना त्याग करता है,वह उससे सौ गुना ज़्यादा सुख पाता है.

    अपने सुखों का त्याग करना कोई आसन बात नहीं. लेकिन जब कोई व्यक्ति उद्दात भाव से ऐसा कर पाने में सक्षम हो जाता है तो उसके लिए फिर सुख क्या दुःख क्या सब एक सामान हो जाते हैं और ऐसा व्यक्ति जीवन में अनुकरणीय हो जाता है ...आपका आभार

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  2. मैंने प्राप्ति का एक मोह छोड़ा कि संसार की तमाम प्राप्तियां मेरी झोली में आ गयीं.


    बहुत सुन्दर विचार है --जानकर ख़ुशी हुई --

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  3. काबे जाने से नहीं कुछ शेख,मुझ को इतना शौक़
    राह वो बतला कि मैं दिल में किसी के घर करूं.
    विशालजी शानदार प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार.
    पोस्ट को बार बार पढ़ने का मन करता है.

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  4. विशाल जी

    -मैंने प्राप्ति का एक मोह छोड़ा कि संसार की तमाम प्राप्तियां मेरी झोली में आ गयीं.

    जीवन का रहस्य है यह.. सुख को पाने का पहला कदम ... लेकिन यह मोह ही तो छूट नहीं पाता ....इंसानी फितरत है कि इस पंक्ति को पढ़ के.. प्राप्ति की लालसा में उद्घोषणा करेंगे कि मोह छोड़ दिया.. और अंतःकरण में उम्मीद रहेगी कि अब मोह छोड़ दिया अब मिलना चाहिए :) :) ....

    प्रेरणादायी पोस्ट के लिए बधाई

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  5. बहुत सही और सटीक बातें बताई हैं आपने .....प्रशंसनीय |

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  6. बहुत सही और सटीक बातें |
    शानदार प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार|

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  7. गुज़स्तम अजसरे मतलब तमाम शुद मतलब
    क्या नफीस बात कही है-मैंने प्राप्ति का एक मोह छोड़ा कि संसार की तमाम प्राप्तियां मेरी झोली में आ गयीं.

    सोचने पर मजबूर करता है उक्त उदाहरण ....
    क्या सच में ऐसा होता है ...?
    या केवल राम जी की यह उक्ति कि '' जब कोई व्यक्ति उद्दात भाव से ऐसा कर पाने में सक्षम हो जाता है तो उसके लिए फिर सुख क्या दुःख क्या ?''

    जो ज़हरे हलाहल है,अमृत भी वही नादाँ
    मालूम नहीं तुम को, अंदाज़ ही पीने के.

    वाह .....बहुत ही सटीक उदाहरण .....

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  8. विशाल भाई..
    हिन्दू धर्म में इसे एक ही शब्द में कहा गया है..
    "संतोषम परम सुखम"

    कृपया इसको भी सम्मलित करते तो अति सुन्दर होता..
    जीवन दर्शन की अमूल्य रचना...आपकी अगली रचना का बेसब्री से इंतजार रहेगा..

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  9. प्रेम का घर खाला का घर नहीं, बडी मश्शकत करनी पड़ती है ... जिसे प्रेम का प्याला मिल जाए उससे बढकर हाला की तमन्ना कौन करें :)

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  10. मैंने प्राप्ति का एक मोह छोड़ा कि संसार की तमाम प्राप्तियां मेरी झोली में आ गयीं.


    बहुत सुंदर सार्थक और प्रभावित करता विचार...... आभार इस प्रेरणादायी पोस्ट के लिए....

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  11. इस बात को मैं यूँ कहता और जीवन में प्रयुक्‍त करता हूँ - 'स्‍व' को 'सर्व' में विसर्जिकत कर दे, 'सर्वस्‍व' तेरा हो जाएगा।

    अच्‍छी, जीवन को बेहतर बनाने के लिए प्रेरित करनेवाली पोस्‍ट।

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  12. काबे जाने से नहीं कुछ शेख,मुझ को इतना शौक़
    राह वो बतला कि मैं दिल में किसी के घर करूं.

    इससे बेहतर तरीके से कोई क्या कह सकता है !

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  13. काबे जाने से नहीं कुछ शेख,मुझ को इतना शौक़
    राह वो बतला कि मैं दिल में किसी के घर करूं.

    वह विशाल जी ... क्या खूब लिखा है .. सच है बुज़ुर्ग कुछ ऐसी नसीहतें दे गये हैं ...

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  14. जो ज़हरे हलाहल है,अमृत भी वही नादाँ
    मालूम नहीं तुम को, अंदाज़ ही पीने के.

    सही विवेचना की है।

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  15. काबे जाने से नहीं कुछ शेख,मुझ को इतना शौक़
    राह वो बतला कि मैं दिल में किसी के घर करूं.... waah

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  16. अत्यंत तथ्यपरक
    एवं सारगर्भित लेख के लिये बहुत बहुत आभार !

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  17. और वो राह, मार्ग, प्यार की सुनहरी पगडंडी के अलावा दूसरी कौन हो सकती है जो नज़रों से सीधे गुज़र कर सीधे दिल तक जाती है....

    बहुत सच कहा है...बहुत सटीक पोस्ट..

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  18. .

    जो ज़हरे हलाहल है,अमृत भी वही नादाँ
    मालूम नहीं तुम को, अंदाज़ ही पीने के...

    वाह! ..क्या खूब मोती चुन कर लाये हैं विशाल जी ।

    .

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  19. सार्थक जीवन - दर्शन को समेटे हुए सार गर्भित आलेख.
    लेखक व प्रस्तुतकर्ता दोनों को बधाई के साथ साथ आभार भी प्रकट करना चाहूँगा.

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  20. कबीर ने भी कहा था, ’जिसको कुछ न चाहिये वो ही शहंशाह।’ जब निष्काम भाव से और तटस्थ रहकर आप अपना कर्म करेंगे तो ये सच है कि कुछ भी अप्राप्य नहीं रहता, नीयत बेशक अच्छी रहनी चाहिये।

    विशाल जी, देर से आना हुआ। कुछ मजबूरियाँ थीं, कुछ खुद की कमियाँ। कमी सुधार ली है:) आज ही ये पोस्ट और इसकी पिछली कड़ी भी पढ़ी। जो लोग कहते हैं कि ब्लॉग पर सार्थक लेखन नहीं होता, उनकी अपनी समझ रहती होगी।

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  21. जीवन दर्शन की अमूल्य रचना. जीवन को बेहतर बनाने के लिए प्रेरित करनेवाले सुंदर विचारों से ओतप्रोत बढ़िया आलेख. शुभकामनाएँ.

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  22. काबे जाने से नहीं कुछ शेख,मुझ को इतना शौक़
    राह वो बतला कि मैं दिल में किसी के घर करूं.

    सार्थक जीवन - दर्शन को समेटे हुए सार गर्भित आलेख.

    जवाब देंहटाएं
  23. सुख किंवा मोक्ष की मुराद यहाँ त्याग के गुण के तुफैल से हासिल होती है.अब ,जब तुमने दुनिया के सुखों को छोड़ दिया तो कृपया परलोक का मोह क्यों पाले हुए हो,जब लोक छोड़ा है,तो उसके पुण्य के इवज़ाने में परलोक की साध क्यों रखते हो?उसे भी त्याग दो.तभी त्याग भावना निज उत्कर्ष पर पहुंचेगी...

    जब दुनिया के सुखों का त्याग किया तो परलोक का भी मोह क्यों...उसे भी त्याग दो...
    जीवन दर्शन से भरी प्रस्तुति के लिए आभार...

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  24. "प्यार की सुनहरी पगडंडी"
    वाह , बड़े सलीके से प्यार की बात की है आपने.

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  25. vishal ji
    aapki post padh kar bas ek hi shab juban se nikli ----Wah
    aapto bahut hi achha likhte hain .mujhe lagata hai ki shyad main bhi aapke blog par pahali baar aai hun.
    par man prashasha se bhar utha
    bahut bahut badhiya
    badhai
    poonam

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  26. जीवन दर्शन ...त्याग और प्रेम पर बहुत अच्छी पोस्ट ।

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  27. जीवनोपयोगी प्रेरक प्रस्तुति ....अति सुन्दर

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  28. काबे जाने से नहीं कुछ शेख,मुझ को इतना शौक़
    राह वो बतला कि मैं दिल में किसी के घर करूं.
    बहुत ही खुबसूरत शेर, दाद का मोहताज नहीं

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  29. जो ज़हरे हलाहल है,अमृत भी वही नादाँ
    मालूम नहीं तुम को, अंदाज़ ही पीने के.
    kya baat hai dil ko chhoo gayi bahut umda post .

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  30. प्रिय बंधुवर विशाल जी
    सस्नेहाभिवादन !

    चार्ली चैपलिन के कथन से शुरू और मीर के शे'र पर समाप्त आपका आलेख जीने का सुख मानसिक खुराक देने के साथ ही जीवन जीने की कला सिखलाने में भी सक्षम-समर्थ है … बधाई और आभार !

    काबे जाने से नहीं कुछ शेख,मुझ को इतना शौक़
    राह वो बतला कि मैं दिल में किसी के घर करूं

    बहुत ख़ूब !

    और हां , क्रिकेट में भारत के विश्वविजेता बनने पर हार्दिक बधाई !


    नव संवत्सर की हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !


    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  31. त्याग मे ही प्राप्ति की सुखद अनुभूति होती है ।

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  32. बड़ी कमाल की पोस्ट लिखी है आपने। अनुकरणीय..संग्रहणीय। कुछ न कुछ असर तो होगा ही इसे पढ़कर। आभार आपका।

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  33. Vishal jee,keval sundar post kahkar nikalna nahi chahungi balki ye kahna chahungi ki parmatma ne sabon ko ek prayogshala rupi jeevan diya hai . agar khud me himmat hai to thora hi kar ke dekho..jab karmo se khushabu uthane lagegi to khud hi chaman khoj loge ...bas karke to dekho.ye jo bari-bari baten hai na dheere-dheere hamari ho jayengi. ye mera anubhut satya hai . aabhar

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  34. काबे जाने से नहीं कुछ शेख,मुझ को इतना शौक़
    राह वो बतला कि मैं दिल में किसी के घर करूं।

    शायर ने कितनी अच्छी बात कही है।
    काश, हम सब भी ऐसा ही कुछ कर पाते।

    आपके आलेख का अंदाज़ पसंद आया।

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  35. नव-संवत्सर और विश्व-कप दोनो की हार्दिक बधाई .

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  36. अच्छी पोस्ट और आपको बधाई
    संवेदनशील ...यथार्थ.... बहुत बढ़िया....

    Vivek Jain vivj2000.blogspot.com

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  37. प्रिय बंधुवर विशाल जी नमस्ते! बहुत अच्छा ज्ञान दिया है आपने दिल खुश कर दिया.
    और वो राह, मार्ग, प्यार की सुनहरी पगडंडी के अलावा दूसरी कौन हो सकती है जो नज़रों से सीधे गुज़र कर सीधे दिल तक जाती है.आयें हम सब इसी राह पर अग्रसर होकर व्यक्ति और समाज की कुछ सेवा करलें.
    इस चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हमारा नव संवत्सर शुरू होता है. इस नव संवत्सर पर आप सभी को हार्दिक शुभ कामनाएं ……

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  38. विशाल जी
    बहुत सही और सटीक बातें बताई हैं आपने

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मंजिल न दे ,चिराग न दे , हौसला तो दे.
तिनके का ही सही, मगर आसरा तो दे.
मैंने ये कब कहा कि मेरे हक में हो जबाब
लेकिन खामोश क्यों है कोई फैसला तो दे.