27 मार्च 2011

एक ललित निबंध -श्री प्रेम पखरोलवी

राह वो बतला कि
मैं दिल में किसी के घर करूं

प्रेम पखरोलवी
(पूर्व विधायक एवं पूर्व लोक संपर्क अधिकारी,हिमाचल प्रदेश,
ललित निबंध की चार पुस्तकें प्रकाशित,
विभिन्न राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित,
अध्यन ,समाज सेवा,संगीत,कविता एवं पर्यटन
 तथा स्वतंत्र रूप से लेखन कार्य) 
संस्कृत में एक सूक्ति प्रचलित है जो  प्रसंगवश यहाँ वहां अक्सर दुहराई  जाती है-

             ‘यस्मिन जीवति जीवन्ति बहवः  सतु जीवति,
             काकोअपि किं कुरुते चंच्बा  सोदर पूर्णम.’

भाव यह कि जिसके जीने से अनेकों (दूसरेलोग भी जीवनयापन में सुगमता और सुख का अनुभव करें, उसी का जीना,असल में सार्थक जीना है.अपने लिए तो सभी जीते हैं.एक कौवा भी चौंच मार कर निज  उदरपूर्ति कर लेता है.
बात जितनी सरल है उतनी ही गंभीर  भी है.मनुष्य पैदा स्वार्थी होता है,मगर                        अच्छे संस्कारों एवं फराखदिली के तुफैल परमार्थी होकर जीना चाहता है.
महात्मा बुद्ध ने कहा है कि स्वार्थ के खेत में दरिद्रता ही  उगती है,समृद्धि  नहीं.
कहते हैंमूसा ने अपने अनुयाईयों को एक दिन अपने बिस्तर पास बुलाकर                   रुग्णावस्था में कहा-'बहुत बताया है तुमको मैंने,आज एक बात बताकर लम्बी यात्रा पर निकलना      चाहता हूँ.दिल की पोटली  बनाकर मेरी बात को उसमे सहेज कर रखलो.वह बात यह है कि 
स्वार्थ का सांप कुनबे को भी खा जाता है,उसे कभी पास फटकने दो.जिसने स्वार्थ के सर्प को 
मार डाला,उसने स्वर्ग का वैभव वहीं हासिल कर लिया.स्वार्थ की प्यास समुद्र से भी नहीं बुझती.स्वार्थ की भूख आदमी को खाती है.दूसरों की खुशी को छीनकर स्वार्थी इंसान खुद भी दुःख के गर्त में गिरता पड़ता रहता है.
गेटे कहता है कि स्वार्थ का भूत  जब सर पर सवार हो जाता है तो धर्म भी पाप के यहाँ भीख माँगने पहुँच जाता है.मांगने से बड़ी दरिद्रता हमें खोजने से भी नहीं मिलेगी.शेख सादी का ख्याल है कि मांगने से ताज मिल जाता है पर सर कट जाता है.रही बात नाक की है सो वह  पहले ही कटी होती है.
              लीं यूतांग  की सूक्ति मशहूर है कि सवार्थी से बढ़कर दिवालिया अगर उन्हें कोई दिखा दे तो वह चुल्लू भर पानी में डूब मरेंगे.महाकवि तुलसीदास  ने इस पंक्तियों में दुःख सुख का मर्म निचोड़ कर रख दिया है-

        ‘सेवक सुख चह मान भिखारी,व्यसनी धन सुभ गति विभिचारी ,
        लोभी कहासु जह चार गुमानी,नभ दुही दूध चाहत प्रानी.’

नौकर यदि सुख चाहे,भिखारी सम्मान चाहे,जारी या पिअक्कड़  धन चाहे ,व्यभिचारी सुगति चाहे,लोभी यश चाहे और घमंडी चारों पुरुषार्थों ,धर्म,अर्थ काम,मोक्षादि के भोग चाहे तो इनकी आशा आसमान से दूध दुहने वाले व्यक्ति की आशा के सामान हास्यापद प्रयास है.
यह सच है कि गरीबी की पराकाष्ठा धन की कमी नहीं है,मांगने की आदत है.भगवान् शंकर के से बड़ा दरिद्र तीन लोक में  दूसरा कौन होगा ,लंगोटी के सिवा जिनके पास कोई सम्पति नहीं है
मगर फिर भी वे परमेश्वर,देवाधिदेव माने जाते हैं.मांगने वाले से शायद ही कोई स्नेह करता होगा.
(जारी)                   

21 टिप्‍पणियां:

  1. मांगने से ताज मिल जाता है लेकिन सर कट जाता है।
    एकदम सही बात।
    बढ़िया विश्लेषण।

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  2. काफी प्रसिद्ध लेखक का परिचय और उनका निबंध आपने प्रस्तुत किया है ....निबंध अभी जारी है ....तो कुछ कहना अभी जल्द बाजी होगी ..अगले अंक का इन्तजार है ...आपका आभार

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  3. बढ़िया विश्लेषण

    अगले अंक का इन्तजार है
    आभार आपका

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  4. बढ़िया विश्लेषण, बहुत अच्छा प्रयास है आपके
    बधाई हो आपको!

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  5. सार्थक पोस्ट, जानकारी से भरी, स्वागत योग्य

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  6. सेवक सुख चह मान भिखारी,व्यसनी धन सुभ गति विभिचारी ,
    लोभी कहासु जह चार गुमानी,नभ दुही दूध चाहत ए प्रानी.’
    ati uttam .bade pate ki baat kahi hai ,

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  7. Behtreen bhovo ko ...sundar shabdo se ...badi hi kushalta se bataya hai....bahut sundar post...behtreen prayas..aabhar

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  8. बेहतरीन ... सार्थक विवेचन...अगले अंक का इन्तजार है
    आभार आपका

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  9. सुन्दर विवेचना--महापुरुषो की संगति हमेशा अच्छी होती है ! स्वार्थी आदमी इस लोक तो दूर अपना परलोक भी खराब करता है --आपके विचार सुनने को बेकरार ---हु ?

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  10. अत्युत्तम ! अगली किश्त की प्रतीक्षा रहेगी !

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  11. "मनुष्य पैदा स्वार्थी होता है,"---
    ---विशाल जी मुझे लगता है कि यह वाक्य भारतीय दर्शन से मेल नहीं खाता अपितु पाश्चात्य दर्शन से मिलता है..क्योंकि भारतीय दर्शन-भाव में व्यक्ति ( बच्चा) निर्मल मन पैदा होता है,इसीलिये बच्चे निर्मल मन होते हैं... तदुपरान्त संसार के द्वन्द्वों में ( (माया) लिप्त होने से वह स्वार्थी आदि होने लगता है ...इसीलिये हमारे यहां बच्चों को वप्तिस्मा आदि देकर आत्मा को शुद्ध बनाने का चलन नहीं है जो पाश्चात्य धर्मों में है...

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  12. जानकारीपरक ,सार्थक एवं लालित्यपूर्ण पोस्ट.....

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  13. अच्छा चिन्तनयुक्त विश्लेषण....

    अच्छी प्रस्तुति के लिए बधाई तथा शुभकामनाएं !

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  14. pahli baar jaldi jaldi padhi rahi ,isliye aaj phir se samjhkar padhne aai rahi ,bahut achchi post lagi .

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  15. " जिसके जीने से अनेकों (दूसरे) लोग भी जीवनयापन में सुगमता और सुख का अनुभव करें,"
    अति सार गर्भित प्रेरणापूर्ण लेख प्रस्तुत करने के लिए ढेर सा आभार .

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  16. बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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मंजिल न दे ,चिराग न दे , हौसला तो दे.
तिनके का ही सही, मगर आसरा तो दे.
मैंने ये कब कहा कि मेरे हक में हो जबाब
लेकिन खामोश क्यों है कोई फैसला तो दे.