22 मार्च 2011

आईना


दिल करता है आज मेरा,
कुछ न लिखूं,
बस आईने के पास जाकर,
अपना चेहरा देखूं.

क्या मेरे अक्स में,
मेरे गीत नज़र आते हैं,
या मेक-अप  की तरह ,
मेरे चेहरे से उतर जाते हैं,
क्या मेरे अल्फाज़ में,
खिज़ाब की रोशनाई है,
या मेरे अध् पके  बालों से,
उनमें  ये चमक आयी है,
क्या मेरे अशआर,मेरे 
नम्बरी चश्मे से गहराते हैं,
या मेरी आँख की पुतली के,
तलातल में पाए जाते हैं,
मेरी नज़्म की लकीरें,
माथे की लकीरों सी नज़र आती हैं,
या सपाट शिकन की फिसलन से,
कागज़ पर फिसल जाती हैं,
जैसा दिखता  हूँ मैं,
क्या वैसा ही लिखा  करता हूँ,
या बे वजह ही,
अल्फाज़ की तरतीब बदला करता हूँ,

दिल करता है आज मेरा,
कुछ न लिखूं,
बस आईने के पास जाकर,
अपना चेहरा देखूं.

46 टिप्‍पणियां:

  1. नाम का नकाब खोल दिया है सगेबोब जी अब चेहरा क्या माने है ! अब तो हम चेहरा देखने को तरस रहे है --

    "तेरी सूरत से नही मिलती किसी की सूरत
    हम जहां में तेरी तस्वीर लिए फिरते है !"

    क्या गाना है रफी साहेब का ? मै तो उनकी दीवानी हु...
    बुरा न मानना मेरे विचार में इंसान का दिल अच्छा होना चाहिए -चेहरा केसा भी हो इंसान का दिल अच्छा हो तो आधी दुनिया जीत ली समझो --

    और न लिखने की कसम न खाना जी हम इतनी अच्छी कविताओ से महरूम हो जाएगे विशाल जी !

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  2. एक उम्दा शायरी के लिए बधाई ! अपनी पोस्ट पर आपकी टिपण्णी देखि और नाम देखा तो सोचा की कोई और है पर मन नही माना तो 'विशाल' का प्रोफाइल देखा --अरे ! यह तो आप है --?

    आईने में जो शक्ल है टेडी है,तिरछी है या आधी है !
    यकीं मानो वो रब की एक बेमिसाल क्रति है !!

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  3. धर्मशाला आउंगी तो पह्चानुगी केसे --? कोई और आकर ले गया तो --? बड़ा धर्म संकट है भाई ..

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  4. बहुत बड़ी तक़लीफ है आईने की ये...बेहतरीन नज़्म...

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  5. जैसा दिखता हूँ मैं,
    क्या वैसा ही लिखा करता हूँ,
    या बे वजह ही,
    अल्फाज़ की तरतीब बदला करता हूँ,बेहतरीन नज़्म...

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  6. आईने के सामने मन की खुलती परतें ...अच्छी प्रस्तुति

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  7. पर कभी कभी आइना भी सच नहीं कहता और हमें वही दिखाता है जो हम देखना चाहते है , अच्छी रचना |

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  8. विशाल जी, अपने ही व्यक्तित्व व कृतित्व पर ये चर्चा या फिर अकारण ही विरोधाभास ढूढने की कोशिश कैसी ! anti - narcissist होना भी तो कोई अच्छी बात नहीं. फिर चेहरा और घर तो अपना ही दिखाया जाता है न . आप तो लफ़्ज़ों के बादशाह हैं जी ! अपनी इस दुविधा को भी सुंदर कविता का रूप देने में सक्षम !
    शुभकामनायें !

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  9. बहुत खुबसूरत लगी ये पोस्ट.....मन के अंतर्द्वंध को बखूबी शब्दों में पिरोया है आपने....प्रशंसनीय......आपका इतना अच्छा नाम है फिर क्यों वो अजीब सा रखा था....

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  10. विशाल भाई,
    कवी को भय सता रहा है उम्र ढलने का ...आप आईने के पास चेहरा मत देखें आप उस समय में लेखन करें..
    चेहरे पर लकीरे चलेंगी मगर लेखन में नहीं...वैसे कवी की पहचान लेखन से होती है वो तो सुन्दर ही होता जाएगा समय बीतने के साथ साथ आप के जैसा ...

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  11. दिल करता है आज मेरा,
    कुछ न लिखूं,
    बस आईने के पास जाकर,
    अपना चेहरा देखूं......

    खूबसूरत रचना .....

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  12. आईना हर नकाब उतार देता है………प्रशंसनीय रचना।

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  13. विशालजी.....
    सच में मन करता है....
    कभी-कभी ऐसे भी.....

    "दिल करता है आज मेरा,
    कुछ न लिखूं,
    बस आईने के पास जाकर,
    अपना चेहरा देखूं."

    और सोंचूं....
    क्या..??
    पता नहीं....!!

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  14. क्या मेरे अक्स में,
    मेरे गीत नज़र आते हैं,
    या मेक-अप की तरह ,
    मेरे चेहरे से उतर जाते हैं,

    बहुत विचारणीय भाव है हम आईने के सामने खुद को किस तरह पेश करते हैं , और आईने का महत्व क्या है हमारी जिन्दगी में ..खुद को आईने के सामने रखकर हम अपना विश्लेषण किस तरह से करते हैं यह बहुत विचारणीय है ...आपका आभार इस सार्थक प्रस्तुति के लिए

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  15. मेरी नज़्म की लकीरें,
    माथे की लकीरों सी नज़र आती हैं,
    या सपाट शिकन की फिसलन से,
    कागज़ पर फिसल जाती हैं,
    जैसा दिखता हूँ मैं,
    क्या वैसा ही लिखा करता हूँ,
    या बे वजह ही,
    अल्फाज़ की तरतीब बदला करता हूँ,

    आईने का क्या है, बस चेहरा ही दिखा सकता है..
    पर आपकी रचनाओं में आपका सुन्दर मन और व्यक्तित्व नज़र आता है..
    तो मेरा ख्याल है, की इन्सान जैसा दिखता है उसका मन उससे कहीं अधिक सुन्दर होता है.. और आपकी रचनाएँ भी बहुत सुन्दर हैं... आभार इस सार्थक पोस्ट के लिए...

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  16. या बे वजह ही,
    अल्फाज़ की तरतीब बदला करता हूँ

    एक रचनाकार की भावनाओं
    और मन की शक्ति को
    बहुत सुन्दर अलफ़ाज़ दिए हैं आपने
    कवि की कृति
    उसका आस-पास ही तो है
    वाह !!

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  17. आत्म मंथन दर्शाती अति सुन्दर अभिव्यक्ति.क्या खूब शब्द दिए हैं
    'sagebob'ji नहीं नहीं विशालजी
    "जैसा दिखता हूँ मैं,
    क्या वैसा ही लिखा करता हूँ,
    या बे वजह ही,
    अल्फाज़ की तरतीब बदला करता हूँ,"
    खूबसूरत रचना के लिए बहुत बहुत आभार.

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  18. क्या मेरे अक्स में,
    मेरे गीत नज़र आते हैं,
    या मेक-अप की तरह ,
    मेरे चेहरे से उतर जाते हैं,

    सही में एक शायर की झलक नज़र आ रही है । बहुत सुन्दर ।

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  19. दिल करता है आज मेरा,
    कुछ न लिखूं,
    बस आईने के पास जाकर,
    अपना चेहरा देखूं

    बहुत सुंदर ... ..... कमाल की अभिव्यक्ति.....
    हकीकत से रूबरू कराती रचना ....

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  20. विशाल जी नाम प्रकट किया तो रूप के दर्शन भी कराइए न.चाहे
    आईने वाला रूप ही सही.

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  21. वह भाई बहुत खूब! नहीं नहीं करते करते भी बहुत कुछ लिख गए आप.
    चलिए देर से ही सही कुछ तो दीदार हुआ आपसे.
    जो बाकि है आगे फिर कभी हो जायेगा .
    सुन्दर रचना !

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  22. दिल करता है आज मेरा,
    कुछ न लिखूं,
    बस आईने के पास जाकर,
    अपना चेहरा देखूं.

    अति सुन्दर अभिव्यक्ति. खुद को पहचान लेने के बाद फिर कुछ छुपाने जैसा रहेगा ही नहीं.

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  23. बहुत कम लोग हैं इस दुनिया में जो आईने के सामने जाकर उसकी आँखों में आँखें डालकर देखने का हौसला रखते हैं. कितने बेशर्मी से आँख मिलाकर कहते हैं की देख तुझसे नज़रें नहीं चुराता मैं.. आपकी कविता एक सचाई बयान कराती है और एक बार आगाह कराती है हर किसी को आईने के सामने जाने से पहले दिल को टटोलने पर!!

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  24. आत्ममथंन की सुन्दर रचना
    शुभकामनाये

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  25. आत्ममथंन की सुन्दर,खूबसूरत रचना के लिए बहुत बहुत आभार.

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  26. मेरी नज़्म की लकीरें
    माथे की लकीरों सी नज़र आती हैं
    या सपाट शिकन की फिसलन से
    कागज़ पर फिसल जाती हैं
    जैसा दिखता हूँ मैं
    क्या वैसा ही लिखा करता हूँ
    या बे वजह ही
    अल्फाज़ की तरतीब बदला करता हूँ।

    वाह,वाह, विशाल जी
    एक सच को उद्घाटित किया है आपने।
    कविता में भाव उच्च स्तर के हैं।

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  27. कमाल के भाव लिए है रचना की पंक्तियाँ .......

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  28. दिल करता है आज मेरा,
    कुछ न लिखूं,
    बस आईने के पास जाकर,
    अपना चेहरा देखूं......very nice....bhut acchha likhte hai aap..mere post ko padhte rehne ke lie..dhanybad...

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  29. मेरी नज़्म की लकीरें,
    माथे की लकीरों सी नज़र आती हैं,
    या सपाट शिकन की फिसलन से,
    कागज़ पर फिसल जाती हैं,
    जैसा दिखता हूँ मैं,
    क्या वैसा ही लिखा करता हूँ,
    या बे वजह ही,
    अल्फाज़ की तरतीब बदला करता हूँ,
    शुरू से आखिर तक सुर लिए हुए लिखी एक खुबसूरत रचना |
    बहुत अच्छा लगा पढ़ कर बहुत सुन्दर रचना |

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  30. 'दिल करता है आज मेरा
    कुछ न लिखूं
    बस आइने के पास जाकर
    अपना चेहरा देखूं '
    ********************
    आत्मसमीक्षा .....कृतित्व और व्यक्तित्व एक हों तभी रचनाधर्म सार्थक होता है ....सुन्दर रचना

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  31. 'दिल करता है आज मेरा
    कुछ न लिखूं
    बस आइने के पास जाकर
    अपना चेहरा देखूं '

    बिलकुल आप ऐसा कर सकते हैं.देखिये न किताब पढ़ना आसान है चेहरा पढ़ना मुश्किल.

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  32. "दिल करता है आज मेरा,
    कुछ लिखूं,
    पर नज़र है कि इस
    खुबसूरत आईने की
    चमक में
    चुन्धियाँ से गयी हैं...
    क्या लिखूं?
    सम्मोहित नज़र
    जागे तो कुछ लिखूं...."

    अभी बस सलाम किये जाता हूँ....

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  33. chehre mein hote hain jane kitne bhaw , aaine me padhker likhna hai... bahut hi badhiyaa

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  34. स्वं का अवलोकन ..यही तो सबसे कठिन है.
    उत्तम रचना.

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  35. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति |बधाई
    मेरे ब्लॉग पर आने के लिए आभार|
    आशा

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  36. गहरे भावों के साथ्ा बेहतरीन पोस्ट..

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  37. आत्म चिंतन के लिए प्रेरित करती रचना।

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  38. Naam ke anurup hi aapki rachanaye samagrata ko samete hoti hai...aapka naam bada sundar hai ....rachanaye to....satya ka aaina hai hi...bahut achchhi lagi ye rachana...shubhkamnaye...drer sara...

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  39. Tere dil ki tahrir tere lafzon mein jhalakti hai
    varna har ik blog pe kahan kisi ki nazar atakti hai ?

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  40. बहुत खूब प्यारी गजल इस के लिए शुभकामनाये

    मेरे ब्लॉग पे आकर मेरा होसला बढ़ने के लिए आप का शुक्रिया

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  41. bahut sunder, par hota hai ye na ki hum kai roop liye rehte hain to vividhta aa hi jati. man bada banwra hota hai aur banwra kab kya soch le, kab kya tasveer uker le.

    acchi rachna.

    shubhkamnayen

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मंजिल न दे ,चिराग न दे , हौसला तो दे.
तिनके का ही सही, मगर आसरा तो दे.
मैंने ये कब कहा कि मेरे हक में हो जबाब
लेकिन खामोश क्यों है कोई फैसला तो दे.