[रूप शर्मा 'निर्दोष' एक सेवानिवृत प्रधानाचार्य हैं.बचपन से ही साहित्य और संस्कृति से जुड़े हैं.सन १९७१ से आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर उनकी रचनाएँ प्रसारित होती रहती हैं.राष्ट्रीय पत्र पत्रकाओं में,खासकर नेशनल बुक ट्रस्ट दिल्ली के संकलनों में प्रकाशित.]
सुन मेरी माँ
सुन मेरी माँ
(मेरी ये पन्क्तियां भीड़ को निराशावादी लगेंगी.परन्तु निराशा और उदासी के गर्भ में ही सत्य छिपा होता है.आशा कहाँ सत्य को ढूंढती है.वह तो अपने आप में ही मस्त होती है........निर्दोष )
माँ के गर्भ में पल रही कन्या ने
अपनी माँ के गर्भपात न कराने पर
और सिसक सिसक कर रोने पर
आवाज़ लगा कर कहा
तूं क्यों उदास है माँ
क्यों रोती है
मेरे पापा को दादा दादी को
लडकी नहीं लड़का चाहिए
तू हिम्मत करके पूछ न मेरे पापा को
तुमने क्या दे दिया अपने माँ बाप को
जो तुम अपने लिए लड़का मांगते हो
मेरी अच्छी प्यारी माँ
गर्भ में ही मेरी ह्त्या हो जाने दे
जन्म लेने से पहले ही मेरा अस्तित्व मिट जाने दे
यह मुझ पर जुल्म नहीं
उपकार होगा माँ
अगर तूने हिम्मत न दिखाई तो
यह तेरी ममता का तिरस्कार होगा माँ
मैं नहीं आना चाहती
तेरी गंदी और निष्ठुर दुनिया में
यहाँ नारी पर ज़ुल्म ढा ढा कर
तिल तिल जलाया जाता हो
दहेज़ कम लाने पर
उसे बेदर्दी से जलाया जाता हो
कदम कदम पर बेरहमी से
हवस का शिकार बनाया जाता हो
जिस समाज में लड़के और लडकी में
भेद पाया जाता हो
माँ,तू ही बता
तेरे ससुराल वालों ने भी
तुझे पल पल नहीं जलाया है
तू ही बता
नारी बन कर तूने भी क्या पाया है
क्या करूंगी ऐसे समाज में आकर
क्या कोठे पर नाचने वाली
मुझ जैसी कन्या नहीं
वैश्यालय में दरिंदों से अपना शरीर नुचवाने वाली
मुझ जैसी कन्या नहीं
तेरे समाज में पैसे की बोलियाँ दे दे कर
बिकने वाली भी कन्या नहीं
क्या मिल गया उन्हें इस नरक में आकर
भ्रूण कन्याओं के टुकड़ों में काट काट कर
कूड़े के ढेर में फैंकने वाला डाक्टर भी
इस समाज का अंग नहीं
केवल धन की खातिर ही यह दुष्कर्म नहीं
नारी लक्ष्मी ,पार्वती , सरस्वती रूपा है
जिस घर में नारी की पूजा हो
वहां देवता लोग निवास करते हैं
कहाँ दफन हो गया यह शास्त्रों का ज्ञान
कहाँ खो गये ये प्रवचन
कहाँ हैं वो वास करने वाले देवता
कहाँ मर गए हैं
धर्म और समाज के ठेकेदार
यहाँ नारी के हाथों नारी का उत्पीडन हो
नारी ही नारी की वैरी हो
क्या करूंगी ऐसी नारी बन कर
तू हिम्मत कर माँ
भ्रूण रूप में ही मेरी हत्या हो जाने दे
मुझे बचा ले ओ माँ
पल पल जल जाने से.
***************
तू हिम्मत कर माँ
जवाब देंहटाएंभ्रूण रूप में ही मेरी हत्या हो जाने दे
मुझे बचा ले ओ माँ
पल पल जल जाने से.
बहुत संवेदनशील और प्रभावी अभिव्यक्ति ........रूप शर्मा जी की सार्थक रचना को साझा करने का आभार .....
bhut hi dardniy or kathor ye succhai, hai
जवाब देंहटाएंjise maine tumne humsabne banai hai,
kaash ke humari janni itni behal na hoti,
to aurton ki duniya me aesi mishal na hoti...
bhut khubsurat darniya rachna hai aapki....;;;artijha07.blogspot.com'''
गर्भ में ही मेरी ह्त्या हो जाने दे
जवाब देंहटाएंजन्म लेने से पहले ही मेरा अस्तित्व मिट जाने दे...
भावनाओं में गुथी एक सशक्त रचना --क्या सच मुच बेटी होना इतना पाप है --? सोचकर ही सिहर जाती हु...
माफ़ करे सगेबोब जी आपने 'लक्ष्मी' की जगह मक्ष्मी छाप दिया है ठीक कर ले ... धन्यवाद |
निर्दोष जी से परिचय कराने का शुक्रिया......बहुत जानदार लिखा है उन्होंने....मेरा सलाम उनको...
जवाब देंहटाएंthanks, darshan kaur jee,
जवाब देंहटाएंi have changed the word.
तू हिम्मत कर माँ
जवाब देंहटाएंभ्रूण रूप में ही मेरी हत्या हो जाने दे
मुझे बचा ले ओ माँ
पल पल जल जाने से.....
बहुत ही संदेशपरक और संवेदनशील रचना.
निर्दोष जी से परिचय कराने का आभार...
समाज का घिनौना सत्य इस कविता के माध्यम से सामने आया है ... गर्भ में पल रही एक कन्या का यह संवाद ..हमारे समाज के लिए आईना है ...कवि ने जिस संवेदना के साथ इस कविता को प्रस्तुत किया है निश्चित रूप से सच को सामने लाया है ..आपका आभार इस सार्थक और संवेदनशील कविता को हम सब से साँझा करने के लिए ..!
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना !
जवाब देंहटाएंगर्भस्थ बच्ची के माध्यम से नारी के साथ होने वाले अत्याचारों का जो यथार्थ चित्रण आपने अपनी कविता में किया है , रोंगटे खड़े कर देता है | यह नंगा सच आज हम सब के सामने है | हमें बच्ची की मर्मान्तक पीड़ा को समझना होगा और उसे दूर करने के लिए संकल्पवद्ध होना पड़ेगा |
जवाब देंहटाएंजिस घर में नारी की पूजा हो
जवाब देंहटाएंवहां देवता लोग निवास करते हैं
कहाँ दफन हो गया यह शास्त्रों का ज्ञान...
तू हिम्मत कर माँ
भ्रूण रूप में ही मेरी हत्या हो जाने दे
मुझे बचा ले ओ माँ
पल पल जल जाने से.....
भावुक अहसासों से संवेदनशील अभिव्यक्ति.. सच ऐसा लगा यही कहती होगी माँ के गर्भ में पल रही कन्या की दुखी आत्मा...आपका आभार इस सार्थक और संवेदनशील कविता को हम सब से साझा करने के लिए ..!
बहुत संवेदनशील और प्रभावी अभिव्यक्ति|धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंनिराशावादी तो है । लेकिन एक कडवी सच्चाई भी ।
जवाब देंहटाएंइसी का आशावादी रूप भी लिखा जा सकता है ।
शुभकामनायें ।
संवेदना से भरी मार्मिक रचना।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको हार्दिक बधाई।
बहुत ही मार्मिक और संवेदनशील प्रस्तुति। सच को बेहतर तरीके से चित्रित किया है। आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत ही संवेदनपूर्ण रचना...
जवाब देंहटाएंहर नारी के जीवन में कभी न कभी ऐसा वक़्त
ज़रूर आता है जब वह इन भावों को जीती है...
चाहे मायका हो या ससुराल...उसे अशक्त होने का
एहसास बराबर दिलाया जाता है किसी न किसी रूप में !!
कितना भी हम कहे कि-
"जहाँ नारी कि पूजा होती है, देवता वहां वास करते हैं"
"स्त्री देवी का स्वरुप है,दुर्गा,लक्ष्मी,सरस्वती है."...
सब कोरी बातें,केवल पढने के लिए या फिर
व्याख्यानों कि चर्चा का विषय बस...!!ज्यादा दूर न जा कर अपने
घर-परिवार में ही कितने उदाहरण मिल जायेंगे..!!
हाँ,जहाँ नारी ने अपने लिए स्वर उठाया है,वहां उसे न जाने
कितने उपलाम्भों से अपने लोगों के द्वारा ही सजाया जाता रहा है...!
समाज की दोहरी नीति आज से नहीं सदियों से चली आ रही है..
फिर चाहे वो हिमवान की पुत्री "पार्वती" हों या फिर ऋषि पुत्री शकुंतला हो...और तो और पुरुष के कृत्य के लिए जिम्मेदार भी सदैव स्त्री को ही ठहराया जाता रहा है...!
न जाने हमारा सभ्य समाज अपनी मान्यताएं कब बदलेगा.........
तू हिम्मत कर माँ
जवाब देंहटाएंभ्रूण रूप में ही मेरी हत्या हो जाने दे
मुझे बचा ले ओ माँ
पल पल जल जाने से.
बहुत ही मार्मिक रचना..अंतस को छू जाती है..दुःख होता है उनके बारे में सोच कर जो बेटी के निस्वार्थ प्यार से महरूम और अनजान हैं..बहुत सुन्दर
बहुत ही सार्थक रचना है. कवि को बधाई.
जवाब देंहटाएंबहुत मर्मस्पर्शी रचना ...समाज को आईना दिखती हुई ...
जवाब देंहटाएंअब क्या कहें इस रचना के लिए ? नि:शब्द हैं,छोभित है ,
जवाब देंहटाएंनिराश हैं. लेकिन फिर भी ईश्वरीय विधान में आशा है जागृति की ,चेतना की. वर्ना क्यूँ आई होती ये रचना कवि के जेहन में ,और क्यूँ की आपने ये सुंदर प्रस्तुति यहाँ पर .
आपको और सभी ब्लोगर जन को होली की हार्दिक शुभ कामनाएं .
सही ही लिखा है...ज़िन्दा रहकर ही क्या मिल जाना है उसे..
जवाब देंहटाएंसही ही लिखा है...इस जीवन में आकर भी क्या मिल जाना है पल-पल तिलने के अलावा...पल-पल मरने के अलावा..
जवाब देंहटाएंकडवे यथार्थ का इतना सही चित्रण कराती इस सुंदर रचना व्र रचनाकार से परिचय कराने पर आपका आभार !
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंभ्रूण कन्याओं के टुकड़ों में काट काट कर
कूड़े के ढेर में फैंकने वाला डाक्टर भी
इस समाज का अंग नहीं....
इस कविता को पढ़कर आँख में आँसू आ गए । एक अपराधबोध था मन में जो ताज़ा हो गया उक्त पंक्तियों से ।
.
karuna se bhari hui ek gambheer kavita....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर हकीकत बया करती रचना
जवाब देंहटाएंआप सभी को होली की हार्दिक शुभकामनाये
ब्लॉग पर अनियमितता होने के कारण आप से माफ़ी चाहता हूँ .
समाज को आईना दिखाती विचारोत्तेजक रचना के लिया निर्दोष जी का सादर अभिनन्दन...
जवाब देंहटाएंउनकी रचना से परिचय कराने के लिए आपका आभार....
सादर.
सच्चाई को आईना दिखाती बेहद मर्मस्पर्शी कविता !
जवाब देंहटाएंइस सुन्दर कविता के लिए आप और निर्दोष जी, दोनों को शुक्रिया !
होली की रंग भरी शुभकामनाएँ !
aap bahut aacha likhte haa......kabila tareef haa ye rachna.......
जवाब देंहटाएंbitterly true..
जवाब देंहटाएंप्रिय बंधुवर
जवाब देंहटाएंसादर सस्नेहाभिवादन !
सुन मेरी माँ कविता के लिए
रूप शर्मा'निर्दोष'जी को बहुत साधुवाद !
निश्चित रूप से निराशा और उदासी हावी हैं … लेकिन , सोचने पर विवश करने वाली रचना है …
हार्दिक बधाई !
लेकिन अब तो होली आ गई … कुछ मस्त मजेदार पंक्तियां आपकी ओर से मिल जाती बंधु ! :)
♥ होली की शुभकामनाएं ! मंगलकामनाएं !♥
होली ऐसी खेलिए , प्रेम का हो विस्तार !
मरुथल मन में बह उठे शीतल जल की धार !!
- राजेन्द्र स्वर्णकार
बहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ उम्दा प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंआपको और आपके परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनायें!
ktu yatharth ka ankan karti kvita
जवाब देंहटाएंholi mubarik ho
तू हिम्मत कर माँ
जवाब देंहटाएंभ्रूण रूप में ही मेरी हत्या हो जाने दे
मुझे बचा ले ओ माँ
पल पल जल जाने से.
dil bhar aaya rachna padhte samya ,bahut marmik ,holi ki badhai .
प्रशंसनीय.........लेखन के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएं===================
"हर तरफ फागुनी कलेवर हैं।
फूल धरती के नए जेवर हैं॥
कोई कहता है, बाबा बाबा हैं-
कोई कहता है बाबा देवर है॥"
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क्या फागुन की फगुनाई है।
डाली - डाली बौराई है॥
हर ओर सृष्टि मादकता की-
कर रही मुफ़्त सप्लाई है॥
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होली के अवसर पर हार्दिक मंगलकामनाएं।
सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
नारी लक्ष्मी ,पार्वती , सरस्वती रूपा है
जवाब देंहटाएंजिस घर में नारी की पूजा हो
वहां देवता लोग निवास करते हैं
कहाँ दफन हो गया यह शास्त्रों का ज्ञान
कहाँ खो गये ये प्रवचन
कहाँ हैं वो वास करने वाले देवता
कहाँ मर गए हैं
धर्म और समाज के ठेकेदार
निशब्द हूँ इस रचना पर .....
इस रचना को लाने के लिए आपको ढेरों बधाई ....!!
निराशा नहीं कटु सत्य है जो झलक रहा है प्रस्तुत कविता में। ऐसी ही दुनिया के बारे में साहिर ने लिखा था, ’ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है?’
जवाब देंहटाएंरूप शर्मा जैसे शख्सियत से परिचय करवा कर हमें धन्य किया है विशाल जी, शुक्रिया।
होली पर्व की बहुत सी मंगलकामनाये।
आपको सपरिवार होली की हार्दिक शुभकामनायें ..
जवाब देंहटाएंआपको और समस्त परिवार को होली की हार्दिक बधाई और मंगल कामनाएँ ....
जवाब देंहटाएंनेह और अपनेपन के
जवाब देंहटाएंइंद्रधनुषी रंगों से सजी होली
उमंग और उल्लास का गुलाल
हमारे जीवनों मे उंडेल दे.
आप को सपरिवार होली की ढेरों शुभकामनाएं.
सादर
डोरोथी.
मर्मस्पर्शी रचना !
जवाब देंहटाएंआपको और आपके परिवार को होली की शुभकामनायें !
यही इस दोगले समाज की वास्तविकता है..हम नारी उत्थान पर आलेख लिखतें है कांफ्रेंस करते है..नारी दिवस भी मानतें है मगर आज भी ९५% हिन्दुस्थानियों के घर बेटी पैदा होने पर मातम हो जाता है..
जवाब देंहटाएंसामाजिक कुरीतियों की विवशता को दिखाती अर्थपूर्ण रचना .
वास्तविकता का सही चित्रण है आपकी रचना
जवाब देंहटाएंItni sundar aur samvedansheel rachana sajha karne ke liye aapka hardik aabhar...aage bhi prateeksha hai...
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