13 अप्रैल 2011

जग और हम


{आदरणीया दर्शन कौर धनोए जी के नाम..
वैसे तो दर्शन जी कहती हैं कि अध्यात्मिक चिंतन उनके एक किलोमीटर ऊपर से गुजर जाता है.
लेकिन लगता है रब उनके आस पास ही है.उनके सरल हृदय को सलाम.}

जग चलता उलटा उलटा जी ,
हम चलते सीधा सीधा जी,
हमें सीधे  चलते रब मिलता 
जग कहता सीधा सीधा जी.

जग रहता ऊंचा ऊंचा जी,
हम रहते नीचा नीचा जी,
हमें नीचे रहते रब मिलता 
जग कहता नीचा नीचा जी.

जग ऊंचा ऊंचा बोले जी,
हम अपना मूंह न खोलें जी ,
हमें चुप रहने में रब मिलता 
जग गूंगा बहरा बोले जी,

हम बोले सच्चा सच्चा जी,
जग बोले झूठा झूठा जी,
हमें सच कहने में रब मिलता,
जग रहता हम से रूठा जी.

जग आगे आगे दौड़े जी,
हम पीछे को मूंह मोडें जी,
हमें पीछे रहते रब मिलता,
जग चाहे पीछे छोड़े जी.

हम ले लो ले लो कहते जी ,
जग दे दो दे दो कहता जी,
हमें देने में भी रब मिलता ,
जग पाकर खाली रहता जी.

जग बेचे मोल मुहब्बत को,
हम प्रेम खरीदें बढ़ बढ़ जी,
हमें लुट जाने में रब मिलता ,
जग पावे कंकर पत्थर जी.

जग कहता  तुझमें ख़म है जी                                    

हर वक्त क्यों हम हम है जी,
हमें हम कहने में रब मिलता,
क्यों हम में भी हमदम है जी.

       
********* 
{ख़म-नुक्स,अकड़ ,पेंच, बल }        


                                                                                                                                                                              

                              

     

44 टिप्‍पणियां:

  1. विशाल जी ,
    सुबह गुलज़ार हुई इस रचना को पढ़ कर ..बेहद सरल शब्दों में आपने आध्यात्मिक यात्रा के अनुभवों को प्रस्तुत कर दिया.. दिल की बात दिल तक पहुंची ..खास तौर पर आपकी इन पंक्तियों पर आपको दाद देना चाहूंगी ..

    जग ऊंचा ऊंचा बोले जी,
    हम अपना मूंह न खोलें जी ,
    हमें चुप रहने में रब मिलता
    जग गूंगा बहरा बोले जी,

    और

    जग बेचे मोल मुहब्बत को,
    हम प्रेम खरीदें बढ़ बढ़ जी,
    हमें लुट जाने में रब मिलता ,
    जग पावे कंकर पत्थर जी.

    बहुत बधाई इस सार्थक और उत्कृष्ट सृजन के लिए

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  2. जग बेचे मोल मुहब्बत को,
    हम प्रेम खरीदें बढ़ बढ़ जी,
    हमें लुट जाने में रब मिलता ,
    जग पावे कंकर पत्थर जी.....

    इस रचना का सूफ़ियाना रंग लाजवाब है।
    गहन अनुभूतियों और दर्शन से परिपूर्ण इस रचना के लिए बधाई।

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  3. जग रहता ऊंचा ऊंचा जी,
    हम रहते नीचा नीचा जी,
    हमें नीचे रहते रब मिलता
    जग कहता नीचा नीचा जी.
    bahut badhiyaa

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  4. जग बेचे मोल मुहब्बत को,
    हम प्रेम खरीदें बढ़ बढ़ जी,
    हमें लुट जाने में रब मिलता ,
    जग पावे कंकर पत्थर जी.

    बहुत सुन्दर ....

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  5. बहुत बढिया कहा विशाल जी ! खरगोश और कच्छुए की कहानी की भी याद आ गयी !
    साथ ही स्वामी राम तीर्थ का कथन याद आ गया :
    " हमें पागल ही रहने दो कि हम पागल ही अच्छे हैं ,
    इन्ही बिगड़े दिमागों में भरे खुशियों के लच्छे हैं....."

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  6. हम ले लो ले लो कहते जी ,
    जग दे दो दे दो कहता जी,
    हमें देने में भी रब मिलता ,
    जग पाकर खाली रहता जी.

    जग बेचे मोल मुहब्बत को,
    हम प्रेम खरीदें बढ़ बढ़ जी,
    हमें लुट जाने में रब मिलता ,
    जग पावे कंकर पत्थर जी.
    निसंदेह लाजबाब ....अब ऐसी भाषा कम होती जा रही है हमरे साहित्य से ..बहुत सुन्दर विशाल जी !
    http://anandkdwivedi.blogspot.com/

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  7. उस परम पिता परमात्मा के बारे में बहुत सुंदर कविता
    लिखी है आपने !
    विशाल जी बोले सच्चा सच्चा जी,
    पढने में लगता कितना अच्छा जी
    हमें तो पढने में रब मिलता,
    जग समझे हमें क्यूँ न कच्चा जी
    आपको हार्दिक शुभ कामनाएं !!

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  8. आदरणीया दर्शन कौर जी के परोपकारी एवं सरल ह्रदय
    को मेरा भी सलाम !
    इस पोस्ट के नाम!!

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  9. जग बेचे मोल मुहब्बत को,
    हम प्रेम खरीदें बढ़ बढ़ जी,
    हमें लुट जाने में रब मिलता ,
    जग पावे कंकर पत्थर जी...

    विशाल जी बहुत सुन्दर सरल भाव में बहुत कुछ कह दिया आपने.. आदरणीया दर्शन कौर जी के परोपकारी एवं कोमल से मन को हमारा भी प्रणाम....

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  10. वंदना जी,

    बहुत गहरा दर्शन है इस साधारण सी लगने वाली पोस्ट में....

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  11. हम तो अभी हैं बच्चे जी,अक्ल के थोड़े कच्चे जी
    इस सुन्दर सुन्दर पोस्ट को पढ़,हमने तो खाये गच्चे जी,
    आपकी सूरत देखे बैगर,सब कहें आप बहुत अच्छे जी
    सदा दिल की कलम से ही लिखते,
    विशाल भाई, अब क्या कहूँ ,
    आप बहुत हैं सच्चे सच्चे जी.

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  12. जग कहता तुझमें ख़म है जी
    हर वक्त क्यों हम हम है जी,
    हमें हम कहने में रब मिलता,
    क्यों हम में भी हमदम है जी.
    bahut badhiya ,itni gahri baat badi sahjata se kah daali .

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  13. जग कहता तुझमें ख़म है जी
    हर वक्त क्यों हम हम है जी,
    हमें हम कहने में रब मिलता,
    क्यों हम में भी हमदम है जी.

    Bhut Badhiya .... sunder bhav smete aapne........Darshnji ko salam

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  14. vishal bhai,
    is kavita ki prashansha sabne kar di hai maaen wahi dohraunga nahi...
    han ye hai aadhyatmik anubhuti sae sarobar karne kae liye aap ko dhnyawad jarur dunga..
    aaj hindi men type nahi ho pa raha hai system men to bideshi bhasha men likh diya..anyatha na len..

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  15. अनमोल रचना...
    बहुत सरल, बहुत सहज, बहुत गहरा....

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  16. विशालजी..
    बहुत ही सुन्दर रचना !!

    "हम सोंचें अपनी तरह जी
    जग सोचे अपनी तरह जी,
    हमको रब मिलता अपने में
    जग खोजे बाहर-बाहर जी...!!"

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  17. जग बेचे मोल मुहब्बत को,
    हम प्रेम खरीदें बढ़ बढ़ जी,
    हमें लुट जाने में रब मिलता ,
    जग पावे कंकर पत्थर जी.

    बेहतरीन]

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  18. आपने तो विशाल जी मुझे धरती से उठाकर आकाश पर बेठा दिया -- मै इस स्नेह के काबिल तो नही हूँ --पर एक छोटे भाई की इस प्रेममयी अभिव्यक्ति के लिए ह्यदय से आभारी हूँ--आशीर्वाद और स्नेह का यह अटूट बंधन हमेशा बना रहे --धन्यवाद ! वेसे शुक्रिया बहुत छोटा शब्द है !

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  19. विशाल जी ,सचकित हूँ मैं ,इतनी सचल रचना ,सत्यान्वेषण करती हुई ,हाँ! सत्यकृति ही है . आप औरों को सलाम करें पर मैं आपकी आध्यात्मिक पहुँच को करती हूँ . गोरखनाथ , बामा खेपा, मत्स्यनाथ आदि की परंपरा को पुनर्जीवित किया है आपने .अभी भी गाँव जाती हूँ तो इकतारा लिए हुए ऐसी ही घुन व गीत सुनने को मिलता है .आभार

    जवाब देंहटाएं
  20. जग बेचे मोल मुहब्बत को,
    हम प्रेम खरीदें बढ़ बढ़ जी,
    हमें लुट जाने में रब मिलता ,
    जग पावे कंकर पत्थर जी.
    बहुत गहरे जीवन सूत्र लिये पँक्तियाँ अच्छी लगी। सुन्दर रचना के लिये बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  21. वाह क्या बात है!
    बहुत सशक्त अभिव्यक्ति प्रस्तुत की है आपने!

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  22. जग रहता ऊंचा ऊंचा जी,
    हम रहते नीचा नीचा जी,
    हमें नीचे रहते रब मिलता
    जग कहता नीचा नीचा जी.

    बहुत ही सुन्दर रचना

    जवाब देंहटाएं
  23. इसको पढाने के बाद तो, विशाल जी,कहना पडेगा कि दर्शन कौर जी के लिए किलोमीटर कहीं मिलीमीटर तो नहीं!! आपने बहुत सुन्दर स्केच बनाया है शब्दों से!!

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  24. जग चलता उलटा उलटा जी ,
    हम चलते सीधा सीधा जी,
    हमें सीधे चलते रब मिलता
    जग कहता सीधा सीधा जी.

    बहुत सुन्दर ...बहुत सहज...उतनी ही आत्मीय दर्शन भरी कविता...

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  25. आपकी रचना बड़ी कमाल जी
    हम हम हो गए निहाल जी
    अब कैसे रहेगा यह तेरा - मेरा
    हम खुद भी हो गए "विशाल" जी

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  26. जग बेचे मोल मुहब्बत को,
    हम प्रेम खरीदें बढ़ बढ़ जी,
    हमें लुट जाने में रब मिलता ,
    जग पावे कंकर पत्थर जी.
    xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx

    आदरणीय विशाल जी
    सूफियाना अंदाज में रचित इस रचना में आपने जो ईश्वरीय भाव को समाहित किया है वह ग्रहणीय है .... मुझे सहज जी बुल्लेशाह जी याद आ गए ...आपका आभार इस रचना के लिए ..!

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  27. प्रियवर विशाल भाई
    सस्नेह अभिवादन !

    ख़ूब लिखा है …
    हम ले लो ले लो कहते जी ,
    जग दे दो दे दो कहता जी,
    हमें देने में भी रब मिलता ,
    जग पाकर खाली रहता जी.

    वाह वाह वाह … क्या बात है !

    जग बेचे मोल मुहब्बत को,
    हम प्रेम खरीदें बढ़ बढ़ जी,
    हमें लुट जाने में रब मिलता ,
    जग पावे कंकर पत्थर जी.

    आहाऽऽह !
    आज लगता है किसी ब्लॉग पर नहीं , किसी दरवेश की ख़ानक़ाह में आ गया हूं … सलामत रहे आपका यह अंदाज़ !

    महावीर जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं !
    … जो कल है ।
    *वैशाखी की हार्दिक शुभकामनाएं ! *
    … जो कल थी ।

    यूं आपके लिए हर दिन शुभ हो ! मंगलमय हो !

    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  28. जग बेचे मोल मुहब्बत को,
    हम प्रेम खरीदें बढ़ बढ़ जी,
    हमें लुट जाने में रब मिलता ,
    जग पावे कंकर पत्थर जी.....
    बहुत सुन्दर भाव लिए यह रचना बधाई

    जवाब देंहटाएं
  29. जग बेचे मोल मुहब्बत को,
    हम प्रेम खरीदें बढ़ बढ़ जी,
    हमें लुट जाने में रब मिलता ,
    जग पावे कंकर पत्थर जी..alag andaz ki rachna....wah!....bahut khoob!

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  30. जग बेचे मोल मुहब्बत को,
    हम प्रेम खरीदें बढ़ बढ़ जी,
    हमें लुट जाने में रब मिलता ,
    जग पावे कंकर पत्थर जी.

    कितने सरल शब्दों में इक पावन नज्म तैयार की है आपने ....
    सीधी सच्ची भाषा सीधे दिल में उतरती है ....
    देखिये न राजेन्द्र जी तो जरुर गुनगुना के गए होंगे ....
    बहुत खूब .....!!

    हाँ इक गुजारिश है ....अपनी तस्वीर भी लगाइए इस मोर की जगह ....

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  31. yeh to bahut sufiaani kalaam hai-bol likh diye ab isse sur aur sangeet chahiye !!

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  32. हर वक्त क्यों हम हम है जी,
    हमें हम कहने में रब मिलता,
    क्यों हम में भी हमदम है जी.

    सीधी सच्ची बात. आपको और दर्शन जी दोनों को सलाम सुंदर जज्बातों के लिए.

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  33. हमें देने में भी सब मिलता ...
    जग सब पाकर भी खाली रहता...
    अध्यात्मिक ज्ञान की कविता अच्छी लगी !

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  34. हम ले लो ले लो कहते जी ,
    जग दे दो दे दो कहता जी,
    हमें देने में भी रब मिलता ,
    जग पाकर खाली रहता जी.
    बहुत खुबसूरत अंदाज़ मज़ा आ गया भाव बहुत ही खुबसूरत |

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  35. अंतिम पंक्तियाँ ख़ासतौर पर बेहतरीन हैं...

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  36. जग ऊंचा ऊंचा बोले जी,
    हम अपना मूंह न खोलें जी ,
    हमें चुप रहने में रब मिलता
    जग गूंगा बहरा बोले जी,

    आपकी रचना बहुत अच्छी है जी ...

    बस इतनी सी .....

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  37. विशाल भाई,
    वैसे तो सभी अपंक्तियां बहुत खूबसूरत अहसासों से भरी लगीं, अपने को सबसे ज्यादा मुआफ़िक लगी ये वालीं:
    "जग आगे आगे दौड़े जी,
    हम पीछे को मूंह मोडें जी,
    हमें पीछे रहते रब मिलता,
    जग चाहे पीछे छोड़े जी"
    रब मिले तो जग पीछे छोड़े या बिसरा दे, कोई फ़र्क नहीं।
    बहुत खूब।

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  38. बहुत ही अच्छी कविता.
    आप तो लिखते रहिये ऐसे ऐसे ही जी....
    उत्तमम.

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  39. हम बोले सच्चा सच्चा जी,
    जग बोले झूठा झूठा जी,
    हमें सच कहने में रब मिलता,
    जग रहता हम से रूठा जी.

    Excellent creation ! I am short of words to praise the poem.

    regards,

    .

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  40. सच है रब मिलता है सीधे चलने से और उल्टे चलने .... उल्टे लोग ई मिलते हैं .. सीधी सरल रचना ...

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  41. रचना बहुत अच्छी है. भाव बहुत ही खुबसूरत है.

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मंजिल न दे ,चिराग न दे , हौसला तो दे.
तिनके का ही सही, मगर आसरा तो दे.
मैंने ये कब कहा कि मेरे हक में हो जबाब
लेकिन खामोश क्यों है कोई फैसला तो दे.