{इक दर्द के मुजस्सिम के नाम,जिसे लोग 'हीर' कहा करते हैं.}
खुदाया,
खूब बनाई है तूने,
दर्द की दुकाँ,
खूब सजाई है तूने,
दर्द की दुकाँ,
दर्द की ईंट ,दर्द का गारा,
दर्द के दरवाजे ,खिड़कियाँ,
दर्द का अर्श,दर्द का फर्श,
दर्द का ही,हर मालो सामां,
आह ओ अश्क,रंज ओ गम,
ज़ख्म ,फफोले और सिसकियाँ,
और कोई मौसम यहाँ आता नहीं
हर सिम्त,हर वक़्त ,रहती है खिजाँ,
दर्द ही खुद ताज़िर बना बैठा है,
बिन तोले ही बेचे है सामां,
इक भीड़ लगी रहती है खरीदारों की,
कैसे हैं लोग,हूँ मैं हैरां,
सभी हंस हंस के खुशियाँ लुटा जाते है,
ले जाते हैं दर्द ,भर भर झोलियाँ,
मैं भी थोड़ा दर्द,ओक में भर लूं,
मेरे भी कुछ ज़ख्म, हो गए हैं जवाँ,
गौर से देखूं ,तो ऐसा लगता है,
तू भी छुप के, बैठा है यहाँ,
खुदाया,
खूब बनाई है तूने,
दर्द की दुकाँ,
खूब सजाई है तूने,
दर्द की दुकाँ.
आज जब दर्द में हूँ मैं भी ज़रा देखो विशाल,
जवाब देंहटाएंदर्द इस नज़्म का मैं रूह से पहचानता हूँ!
बहुत ख़ूबसूरत... दर्द का बयान दर्दको महसूस करने पर मजबूर कर देता है..
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंकहा…
जवाब देंहटाएंएक आला शायर का कलाम है,
"इश्क से तबीयत ने, ज़ीस्त का मजा पाया,
इलाजे दर्दे-दिल पाया ओ दर्दे बेदवा पाया"
विशाल जी, मुझे तो वो लोग खुशकिस्मत लगते हैं जो दर्द को महसूस कर पाते हैं। शायद आपका ख्याल भी ऐसा ही है।
बहुत खूब लगी ये दर्द की दुकां।
खुदाया,
जवाब देंहटाएंखूब बनाई है तूने,
दर्द की दुकाँ,
खूब सजाई है तूने,
दर्द की दुकाँ.
bahut hi khoobsurat .
और कोई मौसम यहाँ आता नहीं
जवाब देंहटाएंहर सिम्त,हर वक़्त ,रहती है खिजाँ,
दर्द ही खुद ताज़िर बना बैठा है,
विशाल जी
आपने बहुत सुन्दरता से दर्द कि दुकां को अभिव्यक्त किया है ...हर एक शब्द गहरा अहसास अभिव्यक्त कर गया ..बहुत खूब
kya baat hai....khoobsurat lines.
जवाब देंहटाएंबहुत कम समझ पाती हूँ ...कोई भी गज़ल या नज़्म..
जवाब देंहटाएंपर दर्द...दर्द को दिल से महसूस किया है तो...
हमेशा खुली ही मिली है दर्द की दूकाँ....
विशाल भाई,
जवाब देंहटाएंबहुत खूब. अब दर्द की दुकान भी सजवा दी 'हीर' जी के नाम पर.
भाई ,बड़ा महंगा है दर्द खरीदना.आजकल तो गाँठ में सरमाया नहीं,कुछ कमाई करनी पड़ेगी.वर्ना तो 'पैसा न पास,मेला लगे उदास'
आप अपनी लेखनी को कोई काला टीका-वीका लगवाओ,कहीं नजर न लग जाये किसी की.
" बेचेनियाँ सारे जहां की समेटकर ,
जवाब देंहटाएंजब कुछ न बन सका,तो मेरा दिल बना दिया !"
हीर जी पर यह पंक्तियाँ एकदम फिट बैठती है --
हीर जी को दिया आपका यह तोहफा 'दर्द की दुकाँ' बहुत सुंदर लगा --
बस दुख दर्द को जो अमृत द्समझ कर पी लेता है वही तो जीवन का पूरा आनन्द ले पाता है। रचना बहुत अच्छी लगी और इसी पर अपनी एक गज़ल के दो शेर आपकी खिदमत मे----
जवाब देंहटाएंकसक दुख दर्द बिना ये ज़िन्दगी अच्छी नही लगती
मुझे अब आँसूओं से दुश्मनी अच्छी नही लगती
खुशी की बात पर हसना उसे अच्छा नही लगता
मुझे उसकी यही संज़ीदगी अच्छी नही लगती
दर्द का ताज़महल बना दिया।
जवाब देंहटाएंदर्द की दूकां......जिंदगी का फलसफा
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण रचना ...
वाह विशाल जी! आपने तो सचमुच अहसास की दुकान खोल ली..बहुत खूब!
जवाब देंहटाएं---देवेंद्र गौतम
दर्द की दूकां......
जवाब देंहटाएंभावुक...सुन्दर...मर्मस्पर्शी भावाभिव्यक्ति....
आपकी कविताएं मन को छूने में कामयाब रहती हैं |
बधाई और शुभकामनाएं |
bahut hi badhiyaa
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंदर्द के सौदागर भी कम नहीं है जान कर अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंवैसे बकौल ग़ालिब, " दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना "
दर्द और जज़्बात में डूबी हुई एक बेहतरीन रचना !
हाय ज़ालिम! अभी तक ‘हीर’ ही ने नहीं देखा :(
जवाब देंहटाएंमैं भी थोड़ा दर्द,ओक में भर लूं,
जवाब देंहटाएंमेरे भी कुछ ज़ख्म, हो गए हैं जवाँ,
गौर से देखूं ,तो ऐसा लगता है,
तू भी छुप के, बैठा है यहाँ,
खुदाया,...
..एक सुन्दर रचना विशाल जी बधाई..
अहा रचना में बहुत सारे दर्द पता चले..बहुत सुन्दर ...आनंद आ गया ... बधाई
जवाब देंहटाएंगौर से देखूं ,तो ऐसा लगता है,
जवाब देंहटाएंतू भी छुप के, बैठा है यहाँ,
खुदाया,
खूब बनाई है तूने,
दर्द की दुकाँ,
भावुक...लाजवाब...मर्मस्पर्शी भावाभिव्यक्ति....
दर्द भरे जज़्बात में डूबी सी.....
दर्द में जो दर्द है ..जो दर्द देकर ही दर्द को कम करता है..इस दर्द को पाने के लिए सम्पूर्ण जीवन कम पड़ जाता है..इसलिए दर्द में मीरा भी कह गयी----सूली ऊपर सेज पिया की ,किस विधि सोना होय ..बेहद खुबसूरत ...
जवाब देंहटाएंबिल्कुल दिल को छू लेने वाली अभिव्यक्ति....कई बार पढ़ने को जी चाहा...कई बार पढ़ा भी...
जवाब देंहटाएंविशाल , हीर जी पर दस्ताने दर्द लिखना एक विशालकाय काम है ।
जवाब देंहटाएंआपने कर दिखाया ।
सुन्दर प्रस्तुति ।
लेकिन हीर जी से अनुमति तो ले ली थी ना ।
गहन अभिव्यक्ति.... दर्द का हर रंग शामिल कर लिया...
जवाब देंहटाएंमन को छू गयी प्रस्तुति...
डा . दराल जी, क्षमा करें , ' दस्ताने ' की जगह " दासताने ' अपेक्षित था .
जवाब देंहटाएंवाकई
जवाब देंहटाएंदर्द को बुलन्द दर्जे पर पहुँचा दिया है आपने ।
बहुत खूबसूरती से सजाई है आपने यह दुकान....
जवाब देंहटाएंकुछ पंक्तियाँ घुमड़ आईं...
"दर्द की बुनियाद,ज़न्दगी का महल
दर्द यहाँ अमृत, खुशियाँ हैं गरल.
दर्द की ज़मीं और दर्द के बीज
दर्द है दरख्ते मसर्रत का फल."
सादर...
पढ़कर तो खुशी मिली भले हो दर्द की दुकान
जवाब देंहटाएंऔर कोई मौसम यहाँ आता नहीं
जवाब देंहटाएंहर सिम्त,हर वक़्त ,रहती है खिजाँ,
दर्द ही खुद ताज़िर बना बैठा है,
khoobsoorat
"गौर से देखूं ,तो ऐसा लगता है,
जवाब देंहटाएंतू भी छुप के, बैठा है यहाँ,
खुदाया,
खूब बनाई है तूने,
दर्द की दुकाँ,
खूब सजाई है तूने,
दर्द की दुकाँ."
बेहद खूबसूरत...
हर दर्द में जब
"वो" शामिल
तो फिर दर्द कहाँ
ए खुदा तेरी ही है
ये दर्द की दुकान..!!
विशाल भाई,
जवाब देंहटाएंबहुत खूब गहन अभिव्यक्ति...मन को छू गयी प्रस्तुति
विशाल जी,
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट बहुत शानदार है.....ज़बरदस्त लगी....
पर जहाँ तक मुझे लगा ये ब्लॉगजगत में ही किसी को समर्पित की है अगर ऐसा था तो खुल के लिखना चाहिए था.......पर ज़रा ख्याल से यहाँ चेहरे पर चेहरे चढ़े हैं......दर्द के आढ़ में पीछे कहीं गहरी नफरत की दिवार खड़ी कर रखी है लोगों ने........पोस्ट अच्छी लगी आपकी.....
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंले जाते हैं दर्द ,भर भर झोलियाँ,
जवाब देंहटाएंमैं भी थोड़ा दर्द,ओक में भर लूं,
मेरे भी कुछ ज़ख्म, हो गए हैं जवाँ,
गौर से देखूं ,तो ऐसा लगता है,
तू भी छुप के, बैठा है यहाँ,
दर्द को दर्शाता यह दार्शनिक दास्तान दर्द दूर करने वाला है।
राम-राम जी,
जवाब देंहटाएंदर्द, भी किस्मत से ही मिलता है।
Dard ... kitna sukoon deta hai kisi ko aur kisi ko dard ... ye khuda bhi jaise dard ki dukaan pe baitha hai muft mein baantta ... lajawaab rachna hai ...
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति ....शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंविशाल जी ,
जवाब देंहटाएंआपकी भावनाओं को सलाम .....
ये नज़्म मेरी धरोहर है .....
मेरी कमाई है ...
मेरा उपहार है ....
मेरा सम्मान है ....
लिए जा रही हूँ ...
नम आँखों से .....
आप मुझे एक संदेशा दे सकते थे विशाल जी पता ही न चला ....
न किसी और ने बताया ....
@ पर ज़रा ख्याल से यहाँ चेहरे पर चेहरे चढ़े हैं......दर्द के आढ़ में पीछे कहीं गहरी नफरत की दिवार खड़ी कर रखी है लोगों ने..
आद अंसारी जी मैं आज भी आपका उतना ही सम्मान करती हूँ ...
आप एक अच्छे इंसान है ...आपकी सोच आपके विचार आपके चरित्र के परिचायक हैं .....
रोष था तो इस बात का की आप सब ने मुझे गलत समझा ...
खैर किसी के ब्लॉग में इस तरह की टिपण्णी से आपको काफी राहत मिल गई होगी ....
ले जाते हैं दर्द ,भर भर झोलियाँ,
जवाब देंहटाएंमैं भी थोड़ा दर्द,ओक में भर लूं,
मेरे भी कुछ ज़ख्म, हो गए हैं जवाँ,
गौर से देखूं ,तो ऐसा लगता है,
तू भी छुप के, बैठा है यहाँ,
अच्छी लगी दर्द कि दूकान.
विशाल जी ने बेमिसाल नज़राना पेश किया है दर्द का ताजमहल बनाकर. और हीर ने भी अपने बड़े ही ख़ूबसूरत अंदाज़ में उसे क़ुबूल किया है. मोहब्बत तो हमें भी है हीर जी के दर्द से पर विशाल जी ! बाज़ी आप मार ले गए ये नज़राना पेश करके. कभी हमने भी लिखी थीं चंद लाइनें उनकी ख़िदमत में मगर आज बड़ी बौनी लग रही हैं.
जवाब देंहटाएं@ इमरान अंसारी जी ! जहां दर्द है वहाँ नफ़रत की कोई दीवार हो ही नहीं सकती. आज पूरी भीड़ में एकदम अकेले नज़र आ रहे हैं आप. और इसे पूरी दुनिया ने देख लिया है. अगर आपके दिल में इज्ज़त नहीं है हीर जी के लिए तो न सही ..पर यूँ सरे आम उनके चाहने वालों का दिल तो न दुखाइये.
वाह क्या बात है दर्द को भी इतनी खूबसूरती से सज़ा दिया कि दर्द का एहसास भी खुबसूरत होने लगा |
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना |
खुदाया,
जवाब देंहटाएंखूब बनाई है तूने,
दर्द की दुकाँ,
खूब सजाई है तूने,
दर्द की दुकाँ.
bahut hi khoobsurat .
'दर्द की दुकां' खोले तो काफी दिन हो गए विशाल भाई.सुना है आजकल 'प्रेम' और 'आनंद' का कारोबार भी बड़े पैमाने पर कर रहें हैं आप . तो फिर एक दुकां और 'प्रेम' और 'आनंद' की ,नाम 'हीर' जी के ही कर दीजियेगा उसे भी .
जवाब देंहटाएंऔर कोई मौसम यहाँ आता नहीं
जवाब देंहटाएंहर सिम्त,हर वक़्त ,रहती है खिजाँ,
दर्द ही खुद ताज़िर बना बैठा है,
बेहद दर्द भरी पंक्तियाँ ...पर ख़ूबसूरत भी
सुन्दर नज़्म
खुदाया,
जवाब देंहटाएंखूब बनाई है तूने,
दर्द की दुकाँ,
खूब सजाई है तूने,
दर्द की दुकाँ...
Awesome !...I'm genuinely liking it.
.
कृपया दर्द की दुकान हटा कर ख़ुशी की दुकान लगायें सारा जीवन ख़ुशी से भर जायेगा !
जवाब देंहटाएंगौर से देखूं ,तो ऐसा लगता है,
जवाब देंहटाएंतू भी छुप के, बैठा है यहाँ,
खुदाया.....
दर्द भरी पंक्तियाँ ...बहुत खूब .
sometimes pain can also be depicted nicely. proved.
जवाब देंहटाएंविशाल जी प्रणाम !
जवाब देंहटाएं"खूब बनाई है तूने,
दर्द की दुकाँ,
खूब सजाई है तूने,
दर्द की दुकाँ."
बहुत खूब कही ....
ये बेहतरीन रचना आपने हीर जी को समर्पित कर के इसका मान और बढ़ा दिया....
विशाल आपने तो दर्द की दुकान ही खोल डाली! उसमे तो ताले भी नही डाले! बहुत खुब!
जवाब देंहटाएंआज फिर एक बार पढ़ा....जितनी भी बार पढ़ती हूँ लगता है पहली बार पढ़ रही हूँ...हर बार नई भावनाएँ, नए अनुभव लिए सामने आती है यह रचना...
जवाब देंहटाएं