09 मई 2011

स्वयंनामा -4

जुगनू

दिन के उजाले में
जो जुगनू
तेरी आँखों से
निकल भागे थे
रात के अंधेरों में
मेरा पीछा
किया करते हैं
मुझे सोने नहीं देते 


बरसाती

पिछली बारिशों में
तुम भूल गए थे 
अपनी बरसाती
मेरे पास 
उसे तीखी धूप में भी
ओढ़े रखता हूँ
और होता रहता हूँ
बारिश से तर बतर


पागल नज़्म 

वक़्त की 
क़ब्र में
दफ़न हो गया
मेरे  हिस्से का खुदा तक 
फिर भी 
बैठा हूँ 
इक  लौ जलाए
कयामत के इंतज़ार में 

39 टिप्‍पणियां:

  1. वक़्त की
    क़ब्र में
    दफ़न हो गया
    मेरा हिस्से का खुदा तक
    फिर भी
    बैठा हूँ
    एक लौ जलाए
    कयामत के इंतज़ार में

    बेहतरीन अभिव्यक्ति......... तीनों ही रचनाएँ कमाल की हैं....

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  2. खूबसूरत बिम्बों और प्रतीकों का उत्तम प्रयोग! सारी रचनाएं सीधे दिल पर असर करती हैं।

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  3. ये क्या हुआ ,कब हुआ,कैसे हुआ
    किस की कब्र में आपके हिस्से का खुदा दफन हुआ
    खुदा की खुदाई निराली है
    हिस्से में आपने उससे दोस्ती पाली है
    इसीलिए नाराज हुआ है वो
    और किसी की कब्र में जा दफन हुआ है वो

    आप कमाल ही नहीं धमाल भी कर देते हैं विशाल भाई.

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  4. सॉरी विशाल भाई,मै भूल गया कि आपने उसे वक़्त की कब्र में दफन कर दिया है.

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  5. पिछली बारिशों में
    तुम भूल गए थे
    अपनी बरसाती
    मेरे पास
    उसे तीखी धूप में भी
    ओढ़े रखता हूँ
    और होता रहता हूँ
    बारिश से तर बतर


    उस बरसाती को धुप में ओढ़े रखना आपका उनके प्रति समर्पण के भाव को दर्शाता ...इस भाव को आपने बहुत सहजता से पेश किया है ..!

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  6. विशाल जी ,
    तीनो ही रचनायें कमाल की हैं.... बहुत गहन अभिव्यक्ति... बधाई आपको

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  7. एक से बढ़ कर एक रचनाये

    गहरा समर्पण है इन तीनों कविताओ में

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  8. वक़्त की
    क़ब्र में
    दफ़न हो गया
    मेरा हिस्से का खुदा तक
    फिर भी
    बैठा हूँ
    एक लौ जलाए
    कयामत के इंतज़ार में "

    वाह !कमाल की है तीनो कविताए विशाल जी ...सबसे दिलकश तो आखरी वाली लगी --
    " यह दिल का लगाना ठीक नही
    उसपर दूर जाना ठीक नही "

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  9. दिन के उजाले में
    जो जुगनू
    तेरी आँखों से
    निकल भागे थे
    रात के अंधेरों में
    मेरा पीछा
    किया करते हैं
    मुझे सोने नहीं देते
    kamaal kee prastuti

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  10. त्निनो क्षणिकाएं बहुत अच्छी ...एक से बढ़ कर एक

    पिछली बारिशों में
    तुम भूल गए थे
    अपनी बरसाती
    मेरे पास
    उसे तीखी धूप में भी
    ओढ़े रखता हूँ
    और होता रहता हूँ
    बारिश से तर बतर

    यह बहुत पसंद आई ..

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  11. तीनो क्षणिकायें गज़ब की हैं …………खूबसूरत बिम्ब प्रयोग्………सीधा दिल मे उतरती हैं……………शानदार्।

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  12. तीनो क्षणिकाएं बहुत ही अच्छी हैं ...

    पिछली बारिशों में
    तुम भूल गए थे
    अपनी बरसाती
    मेरे पास
    उसे तीखी धूप में भी
    ओढ़े रखता हूँ
    और होता रहता हूँ
    बारिश से तर बतर

    पर इसका तो जवाब नहीं इन पंक्तियों के भाव बहुत ही गहरे और मर्मस्पर्शी हैं... वाह...समर्पण हो तो ऐसा.....

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  13. तीनों ही रचनाएँ कमाल की हैं|एक से बढ़ कर एक| धन्यवाद|

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  14. तीनों ही रचनाएँ बहुत अच्छा लिखा है आपने बहुत सुन्दर,
    आप ने 'मगन' कर दिया मन को.इन पंक्तियों के भाव बहुत ही गहरे और मर्मस्पर्शी हैं
    बधाई आपको.......

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  15. लाजवाब । बेहद रूहानी...

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  16. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 10 - 05 - 2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  17. वक़्त की
    क़ब्र में
    दफ़न हो गया
    मेरे हिस्से का खुदा तक
    फिर भी
    बैठा हूँ
    इक लौ जलाए
    कयामत के इंतज़ार में.

    ये क्षणिकाएं तो खुद ही क़यामत लेन में सक्षम है. तीनों ही ही एक से बढ़कर एक. शुभकामनाएँ.

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  18. बेनामी10 मई, 2011 09:38

    बहुत खुबसूरत........शानदार मुक्तक.......सारे बढ़िया....आखिरी वाला सबसे अच्छा लगा......प्रशंसनीय|

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  19. तीनों नज़मों में कमाल है ... और पागल नज़्म ... सच में पागल कर गयी ... लाजवाब ...

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  20. वक़्त की
    क़ब्र में
    दफ़न हो गया
    मेरे हिस्से का खुदा तक
    फिर भी
    बैठा हूँ
    इक लौ जलाए
    कयामत के इंतज़ार में

    बहुत मर्मस्पर्शी...तीनों रचनाएँ लाज़वाब..

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  21. विशाल भाई!!
    अगम और अतल है भाव इन छोटी नज्मों का.. कमाल!!

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  22. उसे तीखी धूप में भी
    ओढ़े रखता हूँ
    और होता रहता हूँ
    बारिश से तर बतर...
    फिर भी लौ जलाये बैठा हूँ इन्तजार में ..
    और आँखों के जुगनू ..
    तीनों क्षणिकाओं ने मोह लिया !

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  23. तीनों क्षणिकाओं ने दिल में घर कर लिया, बहुत बेहतरीन बधाई !

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  24. तीनों ही रचनाएँ कमाल की

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  25. न जाने कई जन्मों से उस क़यामत का इंतजार है .भूले से जो आता मेरा खुदा...मुझे मिल जाता .बेहतरीन ...आमीन ....

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  26. क्या बात है..... विशाल जी कमाल की रचनाएं हैं....

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  27. bahut sunder swayamnama hai, gehan soch aur sunder shabdon ka chayan.

    shubhkamnayen

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  28. बेहतरीन मुक्तक सरीखी कविताये बधाई

    जवाब देंहटाएं
  29. वक़्त की
    क़ब्र में
    दफ़न हो गया
    मेरे हिस्से का खुदा तक
    फिर भी
    बैठा हूँ
    इक लौ जलाए
    कयामत के इंतज़ार में

    कम शब्दों में बहुत गहन अर्थों को प्रकट करती सुंदर कविताएं।
    तीनों कविताएं बेजोड़ हैं।

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  30. वाह - वा !!
    काव्य रूप में लिखी गयी
    तीनों क्षणिकाएं लाजवाब हैं ........
    "बरसाती" को बहुत बेहतर ढंग से
    इस्तेमाल किया है ... !!

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  31. यादों और बरसाती की सौगात आपके पास है- हाँ , बकौल आपके जुगनू आपको सोने नहीं देते , गरज़ यह के तंग करते हैं. जो कोई बड़ी बात नहीं , फिर भी क़यामत तक इंतज़ार करने की बजाए क़यामत का इंतज़ार !
    बहुत खूब, विशाल जी, दाद देनी पड़ेगी !

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  32. विशाल भाई ,
    मैं आपके 'उनसे' मिलकर आ रहा हूँ.
    मैंने उनको कहा कि 'जी' जरा अपने आँखों के जुगुनुओं
    को संभाल के रखें आप,जो दिन के उजाले में निकल भागे हैं
    और हमारे विशाल भाई का रात में पीछा करके उन्हें सोने
    नहीं दे रहें हैं.फिर आप अपनी बरसाती भी विशाल भाई के पास
    पिछली बरसात में भूल आयें हैं,उसे भी ले आयें.वर्ना तीखी
    दुपहरी में हमारे विशाल भाई बरसात से तरबतर होते रहेंगें.
    उन्होंने मुझ से वादा तो किया है.अब देखिये क्या होता है.

    परन्तु,आप भी तो एक वादा कर के आये थे विशाल भाई,मेरी पोस्ट पर.
    याद है न आपको ?

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  33. ये फैसला नहीं है पर अभी का सच यही है कि‍ ये पगली कवि‍ताएं हकीकत से सटी हुई हैं।

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  34. बढ़िया कवित ...

    सुन्दर तथा गहरे भाव !

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  35. तीनो क्षणिकाएं बहुत ही अच्छी .

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  36. Thanx a lot Vishal aapke comment ke madhyam se aapke blog tak pahuchi.bahut achchi rachnaayen padhi aapki.aap shayad shayeri from my heart community se jude hain yesa lagta hai.is it??main bhi usse judi hoon.par ab apne blog ki vyastata ke kaaran usme bahut kum access karti hoon.

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  37. दिन के उजाले में
    जो जुगनू
    तेरी आँखों से
    निकल भागे थे
    रात के अंधेरों में
    मेरा पीछा
    किया करते हैं
    मुझे सोने नहीं देते
    khoobsurat si rachna

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मंजिल न दे ,चिराग न दे , हौसला तो दे.
तिनके का ही सही, मगर आसरा तो दे.
मैंने ये कब कहा कि मेरे हक में हो जबाब
लेकिन खामोश क्यों है कोई फैसला तो दे.