22 अक्तूबर 2011

एक झोंका बयार का

शाम को बैंक से निकला ही था कि बड़े भाई साहिब का चंडीगढ़ से फ़ोन  गया.
"विशाल,लिखने को कुछ है तेरे पास. "
डैश बोर्ड टटोला तो एक कलम हाथ लग गयी.
"हाँ जी"
"एक नंबर लिख.987 ........ .'
मैंने गाडी साइड पर लगा कर लिखने लगा.
"किसका नंबर है?"
"तेरा कोई पुराना दोस्त है जंडियाले से.तू फ़ोन कर ले उसे."
एक झटका सा लगा.जंडियाले को छोड़े हुए 26 साल हो चुके हैं.कौन हो सकता है?
"कर लेता हूँ.भाई साहिब ,बच्चे कैसे हैं?"
लेकिन तब तक भाई साहिब फ़ोन काट चुके थे.
नंबर वाले कागज़ को डैश बोर्ड पर रख कर फिर घर की और चल पडा.मौसम बदल रहा था.पहाड़ पर जो थोड़ी बहुत गर्मी पड़ती है वो भी दूर जा चुकी थी .ठंडी हवा कार की खिड़की में से  कर चेहरे को तरोताज़ा बना रही थी.शाम ढल रही थी ,धौलाधार की पर्वत माला से धूप धीरे धीरे ऊपर  की तरफ जा कर आसमान में मिल रही थी.
नज़र फिर डैश बोर्ड पर पड़े कागज़ के टुकड़े पर जा अटकी.कौन हो सकता है  जंडियाले से मुझे याद करने वाला?और वह भी इतने सालों बाद.
जिला जालंधर पंजाब के इस गाँव में पिता जी की नौकरी की वज़ह से कुछ साल गुजारे थे.बहुत अरसा हो गया.मैं कुछ चेहरों को याद करने लगा.लेकिन  काफी देर सोचने के बाद भी मैं अंदाजा नहीं लगा पाया कि कौन हो सकता है.
सोचा फ़ोन ही कर लेता हूँ.
फिर से गाडी साइड पर लगाई
नंबर मिलाया तो थोड़ी देर बाद आवाज़ आयी.
"हाँ जी"
"भाई साहिब ,आपने मुझे याद किया था .”
"अच्छा !विशाल '
उसने पहचान लिया था लेकिन मुझे आवाज़ से भी कोई अंदाजा  हुआ.
"बड़े आदमी कहाँ छोटों को याद रखते हैं."
उसके बात करने लहजे से अब मैं उसे पहचान चुका था.
"वाह , बलजिंदर सिंह ,यार तू कहाँ?"उस नाम ने तो मेरे आगे यादों का पिटारा खोल दिया था.वो  खेत,वो खलिहान,वह स्कूल,कॉलेज .बलजिंदर मेरा क्लास फेलो था .एक किसान का बेटा .पढाई  बीच में ही छोड़ का खेती में लग गया था .
"मैं तो वहीं हूँ यहाँ तू छोड़ के गया था.तू बहुत दूर निकल गयायार.बड़ी मुश्किल से तेरा पता ढूंढा है."
"चलो ढूंढ तो लिया.दिल खुश हो गया बरसों बाद तेरी आवाज़ सुन कर ."
"तुझे पता है पिछले दो साल से तुझे मैं ढूंढ रहा हूँ .तेरा गाँव ,तेरे स्कूल,तेरा कॉलेज सब जगह तलाश किया.मेरी घर वाली तो समझ रही थी मैं किसी लडकी के चक्कर में हूँ. " 
"और तू मेरे चक्कर में था."मैं हंसा.
"सुन तो सही .तब तेरे किसी दूर के रिश्तेदार से तेरे भाई का नंबर मिला.उनसे पता चला कि तू हिमाचल में है."
"बहुत वक़्त गुज़र गया ,यार."
"वक़्त कहाँ गुज़रा,यार हम गुज़र गए.आज भी कॉलेज में जाते हुए बच्चों को देखता हूँ तो सोचता हूँ सब कुछ तो वहीं है बस हम ही नहीं रहे वहां."
"तू भी शायर हो गया हैं,बलजिंदर."
"कौन सी शायरी ,यार.अपनी तो कलम अपना हल है.ज़मीन पर ही लिख देते हैं जो कुछ लिखना हैकविता उगाते हैं हम. "
"वाह ,क्या बात हैपर ढूंढा तूने खूब मुझे.मैं तो गुम हो चुका था."
"दो साल से तो बहुत शिद्दत से ढूंढा तुझे."
"क्योंपहले नहीं ढूँढा."मैंने उसे छेड़ा.
"सच बोलूँ तो नहीं ढूंढा.बस दो साल से  ही तुझे ढूंढ रहा था."
"क्यों क्या हो गया?सब ठीक तो है."
"दो साल पहले वह मिल गयी जालंधर के बाज़ार में."
"वह कौन?"
"तेरी कन्दोले गाँव वाली."वह हंसा.
"अरे छोड़ यार.वह सब तो लड़कपन की बातें थीं.ज़िन्दगी बहुत आगे बढ़ चुकी है अब तो.तू सुना   कितने बच्चे हैं तेरे?और क्या करते हैं?"मैंने बात बदली.
"मेरे तीन बेटे हैं .सभी कॉलेज में पढ़ते हैं.उसके एक बेटा और  एक बेटी है.वह अपने बेटे की शादी के लिए तो इंडिया आयी हुई थी."उसने फिर वही बात शुरू करदी.
"तू गया होगा शादी में?"
"हाँ,यार .जालंधर में मिलने पर ही उसने ख़ास तौर पर बुलाया थानहीं तो मैं भी कहाँ मिला उससे कॉलेज के बाद."
मैं चुप रहा.समझ में नहीं  रहा था क्या बोलूँ.
"मुझे बुलाना तो बहाना था यार.असल में वह तेरे बारे में जानना चाहती थी.और मुझे तेरे बारे में कुछ पता ही नहीं था.बहुत याद करती है तुझे.अभी भी अखबारों ,रिसालों में तेरा नाम तलाश करती है.आज कल भी लिखता है तू ?"
"लिखना तो तभी छोड़ दिया था मैं ने .एक दो साल पहले दोबारा लिखना शुरू किया है."
"तेरी सारी कवितायें,तेरे सारे ख़त अभी तक उसके पास हैं .संभाल कर रखे हैं उसने.तूने भी कुछ सम्भाला उसका?"
"नहीं यार.मैं तो सब कुछ सतलुज में बहा आया था.तू भी क्या ले बैठा.इतने सालों बाद मिले है.कोई भाभी की बात सुना.तुझे पता है मेरी एक बेटी  है."
"अच्छा.तुझे कभी उसकी याद नहीं आयी?"
"याद करने को बचा ही क्या था."
"यार,बड़ों सालों से दिल को कचोट रहा है एक सवाल.दो साल से तो ज़्यादा ही दुखी कर रहा था.तुम दोनों तो एक जैसे थे.एक से शौक,एक सी समझ,एक सी सोच .फिर मिले क्यों नहीं?"
"मज़हब बीच में  गया थाबलजिंदर.और आज का ज़माना थोड़े ही थाउस समय तो पंजाब में फिरका परस्ती जोरों पर थी.जल रहा था पंजाब."
"यह मज़हब बड़ी घटिया शै है."
"मज़हब तो ठीक है.पर मज़हब के ठेकेदारों ने मज़हब के नाम पर इतनी ऊंची दीवारें खड़ी कर दी हैं कि इंसान से इंसान का मिलना मुश्किल हो गया है."
"तू ठीक कहता है भाई.फिर क्या हुआ?"
"फिर कहानी ख़त्म.हम दोनों ही अपने माँ बाप के विरुद्ध जाने के हक में नहीं थे.बस अपनी मर्जी से अलग हो गए."
"मतलब एक और असफ़ल प्रेम कहानी."वह हंसा.पर मैं उसकी हंसी में दर्द महसूस कर रहा था.
"असफल क्यों ?बिछड़ जाना असफ़लता नहीं.और मिलना हमेशा सफ़लता नहीं होती.जितना सम्बन्ध था सफ़लता पूर्वक निभाया हमने."
"तुझे पता दूं उसका.फ़ोन नंबर भी है.लिख ले."
"क्या फ़ायदा यार.क्या करूंगा.बहुत दूर निकल आया हूँ.अब लौटने का मन नहीं है.हाँ तेरा नंबर मिल गया है.तुझसे मिलने आऊँगा जल्दी ही."
जरूर.अभी फ़ोन रखता हूँ.ख्याल रखना कहीं दुबारा मत खो जाना.बड़ी मुश्किल होता है उस बन्दे को खोजना जो खुद ही गुम होना चाहता हो."वह जोर से हंसा.
"नहीं गुम होता यार.तू भी जल्दी मिलने  मुझे."
उसने फ़ोन रख दिया.मैंने बाहर की और देखा तो शाम रात में बदल चुकी थी.रात के अँधेरे में धौलाधार पर्वत की काली पहाड़ियां डरावनी लग रही थीं.हवा की ठंडक सारे शरीर में कंपकंपी सी पैदा कर रही थी.
चाँद को शायद आज नहीं निकलना था
मेरी रूह का एक हिस्सा मुझसे गुजारिश कर रहा था कि मैं उसी जगह कुछ देर और रुका रहूँ.पर बाकी के हिस्से मुझे घर बुला रहे थेसो मैं घर की और चल पडा.
बरसों पहले सिगरेट छोड़ दी थी मैंने.पर आज बहुत ज़ोर की तलब हो आयी  थी

15 टिप्‍पणियां:

  1. bichdon ke milne ka sukh....:)
    accha laga aapke blog par aakar

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  2. कविता कहते-कहते कब कहानियाँ बनने लगती है पता भी नहीं चलता. समय पर... यादों की..

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  3. बहुत अच्छी बात आपने स्वयम के वार्तालाप से कह दी !
    दीवाली कि शुभकामनायें!

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  4. मेरी रूह का एक हिस्सा मुझसे गुजारिश कर रहा था कि मैं उसी जगह कुछ देर और रुका रहूँ.पर बाकी के हिस्से मुझे घर बुला रहे थे.

    "नहीं गुम होता यार.तू भी जल्दी मिलने आ मुझे."

    ""जिंदगी छोड़ना पड़ा, तेरा साथ एक दोराहे पर
    फिर भी मिल जाती है अक्सर ..
    किसी मोड पर तो कभी चौराहे पर..""

    अच्छी प्रस्तुति.. मैं भी अपना मन टटोलने लगा था.
    दीवाली की ढेर सारी शुभकामनायें.

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  5. क्या करें भाई कभी कभी ऐसा मेरे साथ भी होता है ..लेकिन मुझे सिगरेट की तलब नहीं होती ....हा....हा.....हा..!
    विशाल जी अब सच कहता हूँ जिन्दगी का एक बेहद खुबसूरत फलसफा आपने और आपके दोस्त ने पेश किया है जो किसी तारीफ या शब्दों के मोहताज नहीं ....खुदा आपकी दोस्ती को सलामत रखे ......!

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  6. मेरी रूह का एक हिस्सा मुझसे गुजारिश कर रहा था कि मैं उसी जगह कुछ देर और रुका रहूँ.पर बाकी के हिस्से मुझे घर बुला रहे थे.

    पिछली ज़िंदगी कब यूँ आ कर खड़ी हो जाती है ..बहुत अच्छी प्रस्तुति

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  7. बिछड़ जाना असफ़लता नहीं.और मिलना हमेशा सफ़लता नहीं होती
    सच है!

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  8. ओये होए ......
    कौन थी वो .....:))
    कुछ कहानी को और आगे बढाइये यादों के साथ .....
    कैसे मिली ...कहाँ मिली ....क्या क्या हुआ ....
    पढ़ कर एक हुक सी उठती है ....
    सफल लेखन ....
    बहुत खूब ,....

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  9. सुंदर कहानी
    बिछड़ जाना असफ़लता नहीं.और मिलना हमेशा सफ़लता नहीं होती
    बिल्कुल सही कहा आपने

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  10. वो भूली दास्ताँ लो फिर याद आ गयी !

    तलब एक सिगरेट की, तुम्हें ललचा गयी !!

    अच्छी लव स्टोरी ..एक पिक्चर बन सकती है...
    जिसके अंत में हाथ में सिगरेट लिए हुए हीरो
    अपनी गाड़ी का टेक लगा कर ग़मगीन मुद्रा में
    धुंए के छल्ले बनता हुआ नज़र आएगा....!!
    हिट स्टोरी है...एक बार सोचियेगा इस तरफ भी..!!

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  11. बरसों पहले सिगरेट छोड़ दी थी मैंने.पर आज बहुत ज़ोर की तलब हो आयी थी.

    अरे राम राम क्या यह 'अध्यात्म पथ' है.

    'हीर' जी को बहुत फ़िक्र है उसके बारे में जानने की.
    'पूनम' जी तो फिल्म ही डायरक्ट करने को उत्सुक हैं.
    आपके मोर ने भी अपना रंग रूप और अंदाज बदल लिया है.
    सब बदला बदला लग रहा है मुझे.

    अच्छी भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए आभार.

    दीपावली के पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ.

    मेरे ब्लॉग पर आप आये इसके लिए आभार.

    फिर से आईयेगा.

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  12. ख्याल रखना कहीं दुबारा मत खो जाना.बड़ी मुश्किल होता है उस बन्दे को खोजना जो खुद ही गुम होना चाहता हो."वह जोर से हंसा.

    aankh mein aansu beh rahe hain...aur kya likhun

    shubhkamnayen

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  13. bahut sunder shbdon me saji ya ye varta lap el sunder kahani sa
    bahut hi khoob likha hai aapne
    rachana

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मंजिल न दे ,चिराग न दे , हौसला तो दे.
तिनके का ही सही, मगर आसरा तो दे.
मैंने ये कब कहा कि मेरे हक में हो जबाब
लेकिन खामोश क्यों है कोई फैसला तो दे.