याद
बसन्ती रातों की सर्दी में
नींद नहीं जब आती है
रात के पिछले पहर में उठ कर
अधखिले चाँद के पीछे
तेरा चेहरा ढूंढता हूँ मैं.
चाह
तूने भेजा है गुलाब
रंगीन कागज़ में लिपटा हुआ
सुनहरी रिबन में बंधा
पर मैं चाहता हूँ
तू मेरे आँगन में
उगा इक फूल,इक पौदा
चाहे कैक्टस ही क्यों न हो
लकीरें
झील में उतर आये
चाँद को
अंजलि में भर लिया था मैंने
पर अधरों तक
पहुँचने से पहले
रिस गया बूँद बूँद
वक्त की रेत में
दफ़न हो गया कहीं
देखता हूँ
मेरे गीले हाथों की लकीरें
और गहरी हो गयी हैं.
तीनों ही क्षणिकाएं बहुत सुंदर ...... 'याद ' खास अच्छी लगी
जवाब देंहटाएंबसंतोत्सव की शुभकामनाये
सगेबोब जी ,तीनो कविताए बेहद खूब सुरत हे --इसी तरह लिखते रहे --हमारी शुभ कामनाए हमेशा आप के साथ रहेगी -'-मेरी प्यारी माँ' पर भी मेरी कविताए पढ़ सकते हो|
जवाब देंहटाएंबसन्ती रातों की सर्दी में
नींद नहीं जब आती है
रात के पिछले पहर में उठ कर
अधखिले चाँद के पीछे
तेरा चेहरा ढूंढता हूँ मैं.
sundar kavita...vichar bhi sundar. badhai.
जवाब देंहटाएंबहुत खुब। सारी क्षणिकाएॅ सुन्दर है पर तीसरी सबसे ज्यादा पसंद आई।
जवाब देंहटाएंक्षणिकाएँ सभी प्यारी हैं पर 'चाह' सबसे अधिक अच्छी लगी...
जवाब देंहटाएंबहुत खुसुरत क्षणिकाएं ! कोमल एहसास पिरोये हैं।
जवाब देंहटाएंझील में उतर आये
जवाब देंहटाएंचाँद को
अंजलि में भर लिया था मैंने
पर अधरों तक
पहुँचने से पहले
रिस गया बूँद बूँद
बहुत सुंदर ..एक से बढ़ कर एक ...आपका आभार
bohot pyaari hain sabhi....beautiful thoughts :)
जवाब देंहटाएं• क्षणिकाएं जीवन के खास संदर्भों को उजागर करने का सयास रूपक है, जीवन के खाली कैनवास पर विरल चित्रांकन!!
जवाब देंहटाएंबिम्बों का उत्तम प्रयोग।
खुबसूरत एहसासों से सजी कविता !
जवाब देंहटाएंखूबसूरत क्षणिकाएं, तीनो ही बेहतरीन हैं !
जवाब देंहटाएंआभार !!
हाथों की गहरी लकीरों में से झांकता तकदीर सा इक चेहरा चांद का.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर एक से बढ़ कर एक| आभार|
जवाब देंहटाएंVery touching !
जवाब देंहटाएंचाँद......
जवाब देंहटाएंरिस गया बूँद बूँद
वक्त की रेत में
दफ़न हो गया कहीं
बहुत खूब,
बधाई और शुभकामनाएँ
yaad,chah aur lakiren ...
जवाब देंहटाएंteeno kshanikayen komal bhavon se saji hui ...
सुन्दर कविता, अपने प्रोफ़ेशन से बिल्कुल अलग सोच.
जवाब देंहटाएंझील में उतर आये
जवाब देंहटाएंचाँद को
अंजलि में भर लिया था मैंने
पर अधरों तक
पहुँचने से पहले
रिस गया बूँद बूँद
वक्त की रेत में
दफ़न हो गया कहीं
देखता हूँ
मेरे गीले हाथों की लकीरें
और गहरी हो गयी हैं.
लाजवाब .....!!
इतने कोमल एहसासात को समेटे हैं तीनों कविताएँ कि डर लगता है हाथ लगाने से भी.. कहीं बिखर न जाएँ!!
जवाब देंहटाएंnamaskaar ji....
जवाब देंहटाएंblog pe aane ke liye shukriyaa main to aapka follower ban gaya hoon...
रात के पिछले पहर में उठ कर
अधखिले चाँद के पीछे
तेरा चेहरा ढूंढता हूँ मैं.
seedhe dil se nikli aawaaz hai sir ji...
aafareen....aafareen....aafareen!
सुन्दर कविता
जवाब देंहटाएंआपका शुक्रिया....
बहुत भावपूर्ण
जवाब देंहटाएंतीनो क्षणिकाएं बहुत सुन्दर हैं...चाह खासकर पसंद आई.
जवाब देंहटाएंक्षणिकाएं बहुत सुन्दर हैं, पसंद आई.......
जवाब देंहटाएंपर अधरों तक
जवाब देंहटाएंपहुँचने से पहले
रिस गया बूँद बूँद
वक्त की रेत में
दफ़न हो गया कहीं
देखता हूँ
मेरे गीले हाथों की लकीरें
और गहरी हो गयी हैं.
इस कविता के साथ काव्य की ये भावना और भी निखर गयी...
बधाइयाँ..
'''............
मंजिल न दे ,चिराग न दे , हौसला तो दे.
तिनके का ही सही, मगर आसरा तो दे.
मैंने ये कब कहा की मेरे हक में हो जबाब
लेकिन खामोश क्यों है कोई फैसला तो दे..
खूबसूरत अहसासों को पिरोती हुई सुंदर भावप्रवण रचनाएं. आभार.
जवाब देंहटाएंसादर,
डोरोथी.
रात के पिछले पहर में उठ कर
जवाब देंहटाएंअधखिले चाँद के पीछे
तेरा चेहरा ढूंढता हूँ मैं.
तीनो ही बेहतरीन हैं !
आभार !!
तूने भेजा है गुलाब
जवाब देंहटाएंरंगीन कागज़ में लिपटा हुआ
सुनहरी रिबन में बंधा
पर मैं चाहता हूँ
तू मेरे आँगन में
उगा इक फूल,इक पौधा
चाहे कैक्टस ही क्यों न हो
वाह, सुंदर चाहत।
शायद यही चाहत की इंतिहा है।
आपकी खूबसूरत कविताओं ने मन मोह लिया।
bahut sunder rachnaye par mujhe tisari rachna
जवाब देंहटाएंbahut sunder lagi...
वाह आपकी तो तीनों ही रचनाएं बहुत सुंदर हैं जी.
जवाब देंहटाएंएक से बढ़ कर एक ..पसंद आई..
जवाब देंहटाएंदेखन में छोटे लगैं
जवाब देंहटाएंघाव करैं गम्भीर
वाह वाह
डॉ. दिव्या श्रीवास्तव ने विवाह की वर्षगाँठ के अवसर पर किया पौधारोपण
डॉ. दिव्या श्रीवास्तव जी ने विवाह की वर्षगाँठ के अवसर पर तुलसी एवं गुलाब का रोपण किया है। उनका यह महत्त्वपूर्ण योगदान उनके प्रकृति के प्रति संवेदनशीलता, जागरूकता एवं समर्पण को दर्शाता है। वे एक सक्रिय ब्लॉग लेखिका, एक डॉक्टर, के साथ- साथ प्रकृति-संरक्षण के पुनीत कार्य के प्रति भी समर्पित हैं।
“वृक्षारोपण : एक कदम प्रकृति की ओर” एवं पूरे ब्लॉग परिवार की ओर से दिव्या जी एवं समीर जीको स्वाभिमान, सुख, शान्ति, स्वास्थ्य एवं समृद्धि के पञ्चामृत से पूरित मधुर एवं प्रेममय वैवाहिक जीवन के लिये हार्दिक शुभकामनायें।
आप भी इस पावन कार्य में अपना सहयोग दें।
http://vriksharopan.blogspot.com/2011/02/blog-post.html
तीनों ही रचनाएं बहुत सुंदर हैं.
जवाब देंहटाएंwah. ek se badhkar ek....
जवाब देंहटाएंwonderful TRIO...
जवाब देंहटाएंbahut khoob
Beautiful!
जवाब देंहटाएं"झील में उतर आये
जवाब देंहटाएंचाँद को
अंजलि में भर लिया था मैंने
पर अधरों तक
पहुँचने से पहले
रिस गया बूँद बूँद
वक्त की रेत में
दफ़न हो गया कहीं
देखता हूँ
मेरे गीले हाथों की लकीरें
और गहरी हो गयी हैं."
बहुत खूब....
दिल को छूती हुई....
बहुत उम्दा !
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