25 सितंबर 2011

अन्धेरा

गयी रात तेरी गली का,
इक चक्कर लगा आये,
अँधेरे के सिवा,कुछ न मिला
हम अन्धेरा उठा लाये,
यादों की गठरिया में ,
उसको किया है कैद,
रहता है डर हमेशा,
कहीं गाँठ खुल न जाए.

23 टिप्‍पणियां:

  1. आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा दिनांक 26-09-2011 को सोमवासरीय चर्चा मंच पर भी होगी। सूचनार्थ

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  2. यादों की गठरिया में गांठ बहुत जबरदस्त लगी है. सुंदर प्रस्तुति. बधाई.

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  3. सुन्दर प्रतीक ... संवेदनशील रचना ...

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  4. गाँठ तो खुल कर रहेगी विशाल भाई.
    हाँ, बंद अँधेरा उजाले में तब्दील हो जाये
    यही तो विशालता होगी.

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  5. ओह, वो चोर आप ही थे! मै भी चिंता में था की मेरी गली का अँधेरा कहा गायब हो गया नामुराद!!!!

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  6. उत्तम प्रयास , प्रभावशाली सृजन को सम्मान ... धन्यवाद /

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  7. यादों की गठरी की गाँठ नहीं खुलेगी,विशाल जी.
    बहुत सुन्दर.

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  8. आपकी इस प्रस्तुति पर
    बहुत-बहुत बधाई ||

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  9. एक एक न एक दिन गांठ तो खुल ही जाती है

    बहुत अच्छा मुक्तक

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  10. सुभानाल्लाह.........हम अँधेरा उठा लाये......वाह साहब वाह |

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  11. बहुत अच्छा मुक्तक...बहुत-बहुत बधाई

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  12. क्या खूब... बहुत बढ़िया....
    सादर...

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  13. वाह ! अंधेरा उठा लाए …
    बहुत ख़ूब !


    आपको सपरिवार
    नवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !

    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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  14. लाजवाब ..शक्ति-स्वरूपा माँ आपमें स्वयं अवस्थित हों .शुभकामनाएं.

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  15. "गयी रात तेरी गली का,
    इक चक्कर लगा आये,
    अँधेरे के सिवा,कुछ न मिला
    हम अन्धेरा उठा लाये,
    यादों की गठरिया में ,
    उसको किया है कैद,
    रहता है डर हमेशा,
    कहीं गाँठ खुल न जाए."

    ला कर तेरे अँधेरे से हमने किये उजाले
    यादों की गठरी खोल के बिखरा दिए है फूल....!!

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  16. वाह पूनम जी,
    आपने तो इस नज़्म का भाव ही बदल दिया.
    बहुत खूब.
    आभार आपका.
    आपके मार्ग दर्शन से इसे दोबारा लिखने की कोशिश कर रहा हूँ.

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  17. अँधेरे के जिन्न को गठरी में क़ैद करने के लिए, किसने कहा था जनाब !
    बढिया प्रस्तुति !

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मंजिल न दे ,चिराग न दे , हौसला तो दे.
तिनके का ही सही, मगर आसरा तो दे.
मैंने ये कब कहा कि मेरे हक में हो जबाब
लेकिन खामोश क्यों है कोई फैसला तो दे.