01 मई 2011

हाँ,मैं उनको पढ़ा करता हूँ

उस आबशार पे,
उस रस की धार पे, 
बेखुद,बेसाख्ता
टूटे पत्ते सा बहा करता हूँ,
हाँ,मैं उन को पढ़ा करता हूँ.

छूटी हैं मंजिलें,
भूले हैं रास्ते,
उस मोड़ पर खडा हुआ,
आसमान तका करता हूँ,
हाँ,मैं उन को पढ़ा करता हूँ.

वो जो चढाते हैं ,
लफ्जों को मुलम्मा,
उन आईनों को देख,
बेमोल बिका करता हूँ,
हाँ,मैं उन को पढ़ा करता हूँ.

मंदिर की घंटियाँ,
बचपन के कहकहे,
अनंत की आवाज़,
उनके गीतों में सुना करता हूँ,
हाँ,मैं उन को पढ़ा करता हूँ.

रखी हैं संजो कर,
जो तकिये के किनारे,
उन नज्मों को छू आयें,
सपनों से कहा करता हूँ,
हाँ,मैं उन को पढ़ा करता हूँ.

क़फ़स में क्या मज़ा है,
सय्याद क्या जाने,
उन सींखचों के साथ,
बहुत ऊंचा उड़ा करता हूँ,
हाँ,मैं उन को पढ़ा करता हूँ.

दे सारी उम्र मेरी,
उनकी कलम को तू,
ओ मेरे खुदा ताला,
बस इतनी दुआ करता हूँ,
हाँ,मैं उन को पढ़ा करता हूँ.

  




48 टिप्‍पणियां:

  1. विशाल जी ..
    मंदिर की घंटियाँ,
    बचपन के कहकहे,
    अनंत की आवाज़,
    उनके गीतों में सुना करता हूँ,
    हाँ,मैं उन को पढ़ा करता हूँ.

    बहुत सुन्दर ....मंदिर की घंटियाँ सुनाई पड़ी ...सार्थक सृजन

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  2. दे सारी उम्र मेरी,
    उनकी कलम को तू,
    ओ मेरे खुदा ताला,
    बस इतनी दुआ करता हूँ,

    बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
    हमारी ईश्वर से यही प्रार्थना है आपकी कलम भी इसी तरह नई रचना रचती रहे....शुभकामनायें

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  3. क़फ़स में क्या मज़ा है,
    सय्याद क्या जाने,
    उन सींखचों के साथ,
    बहुत ऊंचा उड़ा करता हूँ,

    क्या गज़ब लिखा है .....वाह ....वाह ....वाह....

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  4. छूटी हैं मंजिलें,
    भूले हैं रास्ते,
    उस मोड़ पर खडा हुआ,
    आसमान तका करता हूँ,
    हाँ,मैं उन को पढ़ा करता हूँ.......बहुत खूब

    जवाब देंहटाएं
  5. क़फ़स में क्या मज़ा है,
    सय्याद क्या जाने,
    उन सींखचों के साथ,
    बहुत ऊंचा उड़ा करता हूँ,
    हाँ,मैं उन को पढ़ा करता हूँ.

    गजब की पक्तिया है
    बहुत बहुत शुभकामनाये

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  6. आपकी कविता में है इतनी गहराई
    निकलूं न बाहर जो डुबकी लगाई
    भावों में बह कर इतना ऊँचे उड़े आप
    उड़ने से पहले हमारा पत्ता हुआ साफ़

    अब विशाल जी सोचसमझ कर फिर हाजिर होने की कोशिश करता हूँ ,अभी तो आपने मेरा पत्ता साफ़ ही कर दिया है.मुझे मेरा कुछ अता पता नहीं चल रहा.

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  7. क़फ़स में क्या मज़ा है,
    सय्याद क्या जाने,
    उन सींखचों के साथ,
    बहुत ऊंचा उड़ा करता हूँ,
    हाँ,मैं उन को पढ़ा करता हूँ."

    विशालजी ,क्या बात है --बहुत सुंदर नज्म लिखी है आपने --मानना पड़ेगा ...शुभ कामनाए !

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  8. गजब का प्रवाह है कविता में.. कल को गर्व से कह सकता हूँ मैं कि हां मैं उनको पढ़ा करता हूँ!!!

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  9. में विशाल जी आप को पढ़ा करता हूँ...उर्दू ज्ञान कमजोर होने के कारन कुछ पंक्तियों का आनंद नहीं ले सका..
    मगर मैं आप को पढ़ा करता हूँ..
    आभार सुन्दर रचना के लिए

    धर्मनिरपेक्षता, और सेकुलर श्वान : आयतित विचारधारा का भारतीय परिवेश में एक विश्लेषण:

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  10. बहुत शानदार।
    हां, हम विशाल जी को पढ़ा करते हैं।

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  11. दे सारी उम्र मेरी,
    उनकी कलम को तू,
    ओ मेरे खुदा ताला,
    बस इतनी दुआ करता हूँ,
    हाँ,मैं उन को पढ़ा करता हूँ.

    पढ़ते रहिये ......और नयी नयी रचनाएँ गढ़ते रहिये ....सोचते रहिये समझते रहिये ...बस उनके ख़यालात में डूबते रहिये ..!

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  12. प्रभाव छोड़ने में कामयाब रचना ! शुभकामनायें आपको !

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  13. मंदिर की घंटियाँ,
    बचपन के कहकहे,
    अनंत की आवाज़,
    उनके गीतों में सुना करता हूँ,
    हाँ,मैं उन को पढ़ा करता हूँ.
    bahut hi achhi

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  14. हर कड़ी ख़ूबसूरत है..और हम आपको पढ़ा करते हैं...

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  15. " तुझे और की तमन्ना, मुझे तेरी आरजू है
    तेरे दिल में ग़म ही ग़म हैं, मेरे दिल में तू ही तू है "

    आप उनको पढते रहें और हम आपको, यही दुआ है !
    आपकी कलम को सलाम !

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  16. • आत्मचिंतन से उपजी मार्मिक कविता है।

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  17. क़फ़स में क्या मज़ा है,
    सय्याद क्या जाने,
    उन सींखचों के साथ,
    बहुत ऊंचा उड़ा करता हूँ,
    हाँ,मैं उन को पढ़ा करता हूँ.

    बहुत खूब! लाज़वाब प्रस्तुति...

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  18. क़फ़स में क्या मज़ा है,
    सय्याद क्या जाने...
    वाह विशाल भाई बहुत खूब...

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  19. वाह वाह गज़ब की नज़्म लिखी है।

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  20. बहुत सुन्दर प्रेरक प्रकरण| धन्यवाद|

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  21. gazab ka pravah behatreen rachana .

    ek aagrah hai urdu shavdo ka hindi word bhee jaroor likh diya kariye.

    mujhe kafas ka arth andaza lagana pada...

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  22. दे सारी उम्र मेरी,
    उनकी कलम को तू,
    ओ मेरे खुदा ताला,
    बस इतनी दुआ करता हूँ,
    हाँ,मैं उन को पढ़ा करता हूँ.

    बहुत सही सन्देश दिया है इस पोस्ट में ...जागरूकता की मिसाल है यह पोस्ट ..आभार

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  23. विशाल जी ..
    बहुत खूब बहुत सुन्दर.... लाज़वाब प्रस्तुति.....सार्थक सृजन

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  24. मंदिर की घंटियाँ,
    बचपन के कहकहे,
    अनंत की आवाज़,
    उनके गीतों में सुना करता हूँ,
    हाँ,मैं उन को पढ़ा करता हूँ....

    भावनाओं को अभिव्यक्त करती सशक्त पंक्तियाँ ।

    .

    जवाब देंहटाएं
  25. दे सारी उम्र मेरी,
    उनकी कलम को तू,
    ओ मेरे खुदा ताला,
    बस इतनी दुआ करता हूँ,
    हाँ,मैं उन को पढ़ा करता हूँ....

    bahut hi paak khyal.

    जवाब देंहटाएं
  26. रखी हैं संजो कर,
    जो तकिये के किनारे,
    उन नज्मों को छू आयें,
    सपनों से कहा करता हूँ,
    bahut achchhi rachna hai . shubhkamnaen

    जवाब देंहटाएं
  27. क़फ़स में क्या मज़ा है,
    सय्याद क्या जाने,
    उन सींखचों के साथ,
    बहुत ऊंचा उड़ा करता हूँ,
    हाँ,मैं उन को पढ़ा करता हूँ.....

    आपको आपकी उडान मुबारक...
    यूं ही पढ़ते रहिये और हमें भी पढ़ाते रहिये !

    जवाब देंहटाएं
  28. बहुत सुन्दर प्रस्तुति. आभार सहित...

    जवाब देंहटाएं
  29. रखी हैं संजो कर,
    जो तकिये के किनारे,
    उन नज्मों को छू आयें,
    सपनों से कहा करता हूँ,
    बहुत सुन्दर पंक्तियाँ ! शुभकामनायें

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  30. बधाई ,बधाई ,बहुत बहुत बधाई उनको विशाल भाई
    जिन्हें पढ़ करके आपने यह शानदार कविता बनाई
    आप अपना चेहरा हमें दिखाओ न दिखाओ
    पर हमे जरा उनका नाम तो बताओ
    नाम ही सार है,नाम ही सहारा है
    इतना पूछने का हक तो हमारा है
    चलिए हक को छोडिये पर मेरी इतनी सी अर्ज पर गौर फरमाएं विशाल भाई.दिल न तोडियेगा,प्लीज.

    जवाब देंहटाएं
  31. वो जो चढाते हैं ,
    लफ्जों को मुलम्मा,
    उन आईनों को देख,
    बेमोल बिका करता हूँ,
    हाँ,मैं उन को पढ़ा करता हूँ.

    बहुत खूब..

    हर लफ्ज़ हकीकत बयां करता सा है !
    हां...
    इनमें कुछ अपना भी दीखता सा है..!!

    जवाब देंहटाएं
  32. मंदिर की घंटियाँ,
    बचपन के कहकहे,
    अनंत की आवाज़,
    उनके गीतों में सुना करता हूँ,
    हाँ,मैं उन को पढ़ा करता हूँ.

    Bemisal Panktiyan...

    जवाब देंहटाएं
  33. बेनामी04 मई, 2011 09:49

    खूबसूरत.......शानदार........कुछ अलग.......प्रशंसनीय|

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  34. शुक्रिया अदा करे उनको जिन्होंने आपको वो नजर दी है ..पढ़ने के लिए ...चंद शब्द दी है हम तक पहुँचाने के लिए . विशाल जी, विराट की परिधि में प्रवेश निस्संदेह यूँ ही किया जाता है ...हम आपका शुक्रिया अदा करते हैं. वेहद...वेहद ...वेहद...

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  35. रखी हैं संजो कर,
    जो तकिये के किनारे,
    उन नज्मों को छू आयें,
    सपनों से कहा करता हूँ,
    हाँ,मैं उन को पढ़ा करता हूँ...

    चिंतन ... गहरा चिंतन नज़र आ रहा है इस रचना में ... भाव की मुखर अबीव्यक्ति ...

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  36. मंदिर की घंटियाँ,
    बचपन के कहकहे,
    अनंत की आवाज़,
    उनके गीतों में सुना करता हूँ,
    हाँ,मैं उन को पढ़ा करता हूँ.
    zabardast likha hai ,poori hi rachna laazwaab hai .

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  37. vishal bjai namskaar
    bahut hi jabardast rachna hein

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  38. bhai rachna ko padhkar dil bagh bagh ho gaya
    aapka aabhar
    der se aane ke liye mafi chahata hoon bhai

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  39. दे सारी उम्र मेरी,
    उनकी कलम को तू,
    ओ मेरे खुदा ताला,
    बस इतनी दुआ करता हूँ,
    हाँ,मैं उन को पढ़ा करता हूँ.

    वाह, क्या बात है विशाल जी.

    जवाब देंहटाएं
  40. रखी हैं संजो कर,
    जो तकिये के किनारे,
    उन नज्मों को छू आयें,
    सपनों से कहा करता हूँ,
    हाँ,मैं उन को पढ़ा करता हूँ.

    वाह क्या बात है!!...बहुत प्रभावित करती है ये नज़्म..

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  41. क्या बात है

    http://rimjhim2010.blogspot.com/2011/05/happy-mothers-day.html

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  42. unko padhne ki himmat aur dil ab kahan hai logon mein ;bas kuch dost hi hain jo ab bhi padha karte hain.

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  43. Aap bahut achchha likhate hai.Han! main aapko padha karti hu.

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  44. Aap bahut achchha likha karte hain.Han! main aapko padha karti hun.

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  45. हाँ! मैं आपको पढ़ा करती हूँ

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मंजिल न दे ,चिराग न दे , हौसला तो दे.
तिनके का ही सही, मगर आसरा तो दे.
मैंने ये कब कहा कि मेरे हक में हो जबाब
लेकिन खामोश क्यों है कोई फैसला तो दे.