17 मई 2011

उस छत पर


(आज एक पुरानी नज़्म दोबारा पोस्ट कर रहा हूँ) 

रात के पिछले पहर के 
टिमटिमाते हुए तारे सा टूट कर 
तेरे शहर की उस गली के 
उस मकां  की छत से रूठकर 

एक आवारा बादल की तरह 
मैं चला आया था कभी
सातों समन्दरों में मिटने की गरज से 
खुद को डुबो आया था कभी 

आज फिर वही आवारा बादल 
तेरे शहर में लौट आया है
अपने दामन में यादों की 
नमी को भर लाया है

दिल करता है तेरे शहर की उस गली में
कुछ पल को ठहर जाऊं मैं
अगर तुम इज़ाज़त दो तो
उस छत पे बरस जाऊं मैं

वो छत जिसकी हवा के पन्नो पर 
तुमने मेरे लिए इक पैगाम लिखा था
वो छत जिसकी मुंडेर पर  तुमने  
इक पत्थर के टुकड़े से मेरा नाम लिखा था

उन धुंधले से हुए शब्दों को 
इक बार भिगो आऊँ मैं
अगर तुम इज़ाज़त दो तो
उस छत पे बरस जाऊं मैं

मेरी दुश्मन तो नहीं है लेकिन 
मेरी रकीब है वो छत 
दुनिया की नज़रों से ओझल है 
पर खुदा के बहुत करीब है वो छत

सर को अपने झुका 
इक सजदा तो कर आऊँ  मैं
अगर तुम इज़ाज़त दो तो
उस छत पे बरस जाऊं मैं

उसी छत पे आज मुझे  
शाम के  हराते अन्धिआरे में
दो परछाईया नज़र आतीं हैं
शायद छत की मुंडेर के 
किसी सूखे से गमले में
फिर कोम्पलें खिली जाती हैं

उन अधखिली सुर्ख कलिओं को
फूल बनने   की दुआ दे आऊँ मैं

अगर तुम इज़ाज़त दो तो
उस छत पे बरस जाऊं मैं


43 टिप्‍पणियां:

  1. मेरी दुश्मन तो नहीं है लेकिन
    मेरी रकीब है वो छत
    दुनिया की नज़रों से ओझल है
    पर खुदा के बहुत करीब है वो छत

    बहुत सुन्दर भाव,अति सुन्दर अभिव्यक्ति
    विशाल भाई आपकी कविता पर कुछ कहने की
    मुझमें नहीं है शक्ति.
    अब खुदा से ही मिलेंगे उस छत के
    करीब आने के लिए.

    जवाब देंहटाएं
  2. अपनी छत पर भी आपके बरसने का इंतजार कर रहा हूँ.आपके विश्लेषण मुझे नहलाते ही नहीं आनंद सागर में गोते लगवा देते हैं.

    जवाब देंहटाएं
  3. `एक आवारा बादल की तरह
    मैं चला आया था कभी

    मैं गया वक्त तो नहीं जो लौट भी न सकूं :)

    जवाब देंहटाएं
  4. मेरी दुश्मन तो नहीं है लेकिन
    मेरी रकीब है वो छत
    दुनिया की नज़रों से ओझल है
    पर खुदा के बहुत करीब है वो छत

    सुन्दर रचना ..
    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  5. उन अधखिली सुर्ख कलिओं को
    फूल बनने की दुआ दे आऊँ मैं
    अगर तुम इज़ाज़त दो तो
    उस छत पे बरस जाऊं मैं

    बरसने के लिए इजाज़त नहीं माँगा करते ..बस बरस जाते हैं ...सुन्दर नज़्म

    जवाब देंहटाएं
  6. उन धुंधले से हुए शब्दों को
    इक बार भिगो आऊँ मैं
    अगर तुम इज़ाज़त दो तो
    उस छत पे बरस जाऊं मैं
    Bahut sunder Rachna....

    जवाब देंहटाएं
  7. विशाल भाई, नेकी और पूछ पूछ? बादल भी बरसने से पहले इजाजत लेते हैं क्या? बिंदास जाओ, उस छत पर इंतज़ार हो रहा होगा।


    मासूमियत से भरे सवाल हमेशा अच्छे लगते हैं।

    जवाब देंहटाएं
  8. khoobsurat alfaaz aur dilkash andaaz..
    bahut acchi lagi aapki nazm..
    shukriya..

    जवाब देंहटाएं
  9. वो छत जिसकी हवा के पन्नो पर
    तुमने मेरे लिए इक पैगाम लिखा था
    वो छत जिसकी मुंडेर पर तुने
    इक पत्थर के टुकड़े से मेरा नाम लिखा था... bahut badhiyaa

    जवाब देंहटाएं
  10. अगर तुम इज़ाज़त दो तो
    उस छत पे बरस जाऊं मैं

    विशाल भाई आज कविता पढ़ कर दिल बाग बाग हो गया
    बेहतरीन कविता और सुन्दर अंदाज

    शुभकामनाएँ

    जवाब देंहटाएं
  11. बेनामी18 मई, 2011 09:31

    विशाल जी,

    क्या कहूं.......लफ्ज़ ढूँढने पढ़ रहे है इस पोस्ट की तारीफ के लिए.....बहुत खूब......शानदार ....ये सबसे ज्यादा पसंद आया -

    वो छत जिसकी हवा के पन्नो पर
    तुमने मेरे लिए इक पैगाम लिखा था
    वो छत जिसकी मुंडेर पर तुने
    इक पत्थर के टुकड़े से मेरा नाम लिखा था

    जवाब देंहटाएं
  12. उन अधखिली सुर्ख कलिओं को
    फूल बनने की दुआ दे आऊँ मैं
    अगर तुम इज़ाज़त दो तो
    उस छत पे बरस जाऊं मैं.

    आवारा बादल का सफर और उसकी मासूमियत दिल को छू गयी. बहुत सुंदर रचना.

    जवाब देंहटाएं
  13. बहुत देर तक सोचती रही कि क्या कहूँ....कुछ भावनाओं को व्यक्त करना बड़ा ही मुश्किल होता है और आपने इसे इतनी कोमलता से रचा है कि हर बार पढ़ कर दिल भीग जाता है और फिर भी जाने क्यों चेहरे पर एक मुस्कान सी आ जाती है...

    जवाब देंहटाएं
  14. विशाल जी ,


    सर को अपने झुका
    इक सजदा तो कर आऊँ मैं
    अगर तुम इज़ाज़त दो तो
    उस छत पे बरस जाऊं मैं


    बहुत कोमल और हृदयस्पर्शी भाव हैं...मन को छू गए ..

    जवाब देंहटाएं
  15. बरसिये विशाल जी जोर शोर से बरसिये , सुना नहीं आपने "मेघा रे मेघा रे .... " कबसे रट लगाये हैं वो .

    हृदयस्पर्शी , भावनाओं से ओतप्रोत सशक्त रचना.
    बधाई !

    जवाब देंहटाएं
  16. खूबसूरत नज़्म .......दिल को छू गयी

    जवाब देंहटाएं
  17. विशाल जी,
    बहुत ही अच्छा लिखते हैं आप ? बादल भी हैं वो भी आवारा... बरसने से पहले इजाजत क्या लेना ? बस जाइये और बरस जाइये....... मासूमियत से भरी हर पंक्ति....

    जवाब देंहटाएं
  18. ्बडी भीगी भीगी सी नज़्म है विशाल जी बस डूबे रहने को मन करता है।

    जवाब देंहटाएं
  19. अपनी यादो को ताजा करने के लिए किसी की इजाजत की जरुरत थोड़े होती है | अच्छी रचना |

    जवाब देंहटाएं
  20. वाह! विशाल जी आप बरसते रहें.... बस...
    सुन्दर....

    जवाब देंहटाएं
  21. विशाल जी,

    सर को अपने झुका
    इक सजदा तो कर आऊँ मैं
    अगर तुम इज़ाज़त दो तो
    उस छत पे बरस जाऊं मैं

    बहुत ही बढ़िया रचना बहुत ही अच्छा लगा पढ़ कर

    जवाब देंहटाएं
  22. आज फिर वही आवारा बादल
    तेरे शहर में लौट आया है
    अपने दामन में यादों की
    नमी को भर लाया है


    इजाजत क्या लेना है विशाल जी..
    बरस जाइये..फिर आप के नसीब में ये बरसात हो न हो

    जवाब देंहटाएं
  23. बहुत सुंदर रचना| धन्यवाद|

    जवाब देंहटाएं
  24. khoobsoorat !!
    waise awaara baadal kya pooch kar baraste hain ???

    जवाब देंहटाएं
  25. मिटने की भी नियति होती है या इक्क्षा भी कह सकते हैं.कभी तो समंदर भी कम पड़ जाता है लेकिन जहाँ हम समाहित होना चाहते हैं ..कहे न कहे हम उसी के होकर रह जाते हैं ..बहुत अच्छी लगी ..इज़ाज़त हो तो कुछ हम भी बरस जाए... आपकी लेखनी पर..

    जवाब देंहटाएं
  26. उन धुंधले से हुए शब्दों को
    इक बार भिगो आऊँ मैं
    अगर तुम इज़ाज़त दो तो
    उस छत पे बरस जाऊं मैं

    भीगी भीगी सी नज़्म....

    जवाब देंहटाएं
  27. सर को अपने झुका
    इक सजदा तो कर आऊँ मैं
    अगर तुम इज़ाज़त दो तो
    उस छत पे बरस जाऊं मैं

    बस मिल जाये इजाजत...बहुत सुन्दर भाव

    जवाब देंहटाएं
  28. वो छत जिसकी हवा के पन्नो पर
    तुमने मेरे लिए इक पैगाम लिखा था
    वो छत जिसकी मुंडेर पर तुमने
    इक पत्थर के टुकड़े से मेरा नाम लिखा था

    क्या बात है....बहुत ही प्यारी सी रचना....बहुत डूब कर लिखा है...

    जवाब देंहटाएं
  29. चर्चा -मंच पर आपका स्वागत है --आपके बारे मै मेरी क्या भावनाए है --आज ही आकर मुझे आवगत कराए -धन्यवाद !२०-५-११ ..
    http://charchamanch.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं
  30. बहुत ही कोमल भावनाओं में रची-बसी खूबसूरत रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  31. वो छत जिसकी हवा के पन्नो पर
    तुमने मेरे लिए इक पैगाम लिखा था
    वो छत जिसकी मुंडेर पर तुमने
    इक पत्थर के टुकड़े से मेरा नाम लिखा था

    उन धुंधले से हुए शब्दों को
    इक बार भिगो आऊँ मैं....

    बहुत भावभीनी रचना...भावों और शब्दों का सुन्दर संयोजन..मन को छू जाती है..

    जवाब देंहटाएं
  32. उन अधखिली सुर्ख कलिओं को
    फूल बनने की दुआ दे आऊँ मैं

    अगर तुम इज़ाज़त दो तो
    उस छत पे बरस जाऊं मैं.bahut hi anoothi rachanaa.dil ko choo gai .badhaai aapko.

    please visit my blog and leave the comments also.

    जवाब देंहटाएं
  33. वो छत जिसकी हवा के पन्नो पर
    तुमने मेरे लिए इक पैगाम लिखा था
    वो छत जिसकी मुंडेर पर तुमने
    इक पत्थर के टुकड़े से मेरा नाम लिखा था......

    उन अधखिली सुर्ख कलिओं को
    फूल बनने की दुआ दे आऊँ मैं
    अगर तुम इज़ाज़त दो तो
    उस छत पे बरस जाऊं मैं...

    बेहद .....बेहद ....बेहद खूबसूरत नज्म ,
    निःशब्द कर दिया है मुझे....आभार ....

    जवाब देंहटाएं
  34. अगर तुम इज़ाज़त दो तो
    उस छत पे बरस जाऊं मैं

    बेहतरीन। आपकी रचना दिल को भिगो गई।

    जवाब देंहटाएं
  35. विशाल भाई हमने तो सोचा था कि अब तक आप खूब बरस चुके होंगें.
    दर्द कि दुकां के पास ही आपकी मोहब्बत की दुकां के भी चर्चे होंगें
    दर्द के दर्शन हुए न हुए पर 'मोहब्बत'के दर्शन तो जरूर होंगे
    देखिये सभी कह रहें हैं कि बरसने के लिए किसी इजाजत की कोई
    जरूरत ही नहीं,फिर बरस बरसा कर 'मोहब्बत की दुकां'खोल दीजियेगा न.

    जवाब देंहटाएं
  36. दिल करता है तेरे शहर की उस गली में
    कुछ पल को ठहर जाऊं मैं
    अगर तुम इज़ाज़त दो तो
    उस छत पे बरस जाऊं मैं
    kabhi yoon bhi dil karta ,komal ahsaas se bandhi rachna

    जवाब देंहटाएं
  37. प्रिय बंधु विशाल जी
    सस्नेहाभिवादन !

    प्रथम तो विलंब से आने के लिए क्षमा …पिछली न पढ़ी हुई पोस्ट्स पर नज़र डालना अभी शेष है …

    प्रस्तुत रचना बहुत पसंद आई
    कोमल प्यार का दिल को छूता एहसास उम्र के गुज़रे सालों तक ले गया …
    वो छत जिसकी हवा के पन्नों पर
    तुमने मेरे लिए इक पैग़ाम लिखा था
    वो छत जिसकी मुंडेर पर तुमने
    इक पत्थर के टुकड़े से मेरा नाम लिखा था


    बहुत सुंदर ! बहुत भावप्रवण !

    और …यहां भी यह अंज़ाम ? …
    उसी छत पे आज मुझे
    शाम के गहराते अंधियारे में
    दो परछाइयां नज़र आतीं हैं
    शायद छत की मुंडेर के
    किसी सूखे से गमले में
    फिर कोम्पलें खिली जाती हैं

    उन अधखिली सुर्ख कलियों को
    फूल बनने की दुआ दे आऊं मैं

    अगर तुम इज़ाज़त दो तो
    उस छत पे बरस जाऊं मैं


    यार ! ये हम लोगों का प्यार देना ही देना जानता है क्या ?!
    काश ! ऐ मुहब्बत तेरे अंज़ाम पॅ रोना ही रोना न आ'कर कभी कहकहे भी लगते …
    अब अभी तो मैं इस मूड से निकलना नहीं चाहूंगा …

    अवसर मिले तो आ जाना इस लिंक पर कभी कभी बुझती नहीं है तिश्नग़ी कुछ रेग़जारों की …

    शुभकामनाओं सहित
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

    जवाब देंहटाएं
  38. आज फिर वही आवारा बादल
    तेरे शहर में लौट आया है
    अपने दामन में यादों की
    नमी को भर लाया है

    दिल करता है तेरे शहर की उस गली में
    कुछ पल को ठहर जाऊं मैं
    अगर तुम इज़ाज़त दो तो
    उस छत पे बरस जाऊं मैं

    baras jaao yaar baras jaao ut chhar par.....

    mazaa aa gaya padhkar...

    "mann karta hai ek baar fir us chhat par jaaun main

    jahaan likha hua khat apne hi hathon faad aaya tha main.."!!!

    जवाब देंहटाएं
  39. वो छत जिसकी हवा के पन्नो पर
    तुमने मेरे लिए इक पैगाम लिखा था
    वो छत जिसकी मुंडेर पर तुमने
    इक पत्थर के टुकड़े से मेरा नाम लिखा था

    उन धुंधले से हुए शब्दों को
    इक बार भिगो आऊँ मैं
    अगर तुम इज़ाज़त दो तो
    उस छत पे बरस जाऊं मैं


    bahut sunder bhaavmayi rachna...

    good wishes

    जवाब देंहटाएं

मंजिल न दे ,चिराग न दे , हौसला तो दे.
तिनके का ही सही, मगर आसरा तो दे.
मैंने ये कब कहा कि मेरे हक में हो जबाब
लेकिन खामोश क्यों है कोई फैसला तो दे.