25 मई 2011

एक साधारण आदमी

            वह उस शहर में नया नया आया था.उसका चेहरा साधारण था, सफ़ेद सा.
            अभी थोड़ा ही समय गुजरा था उसे शहर में रहते हुए कि एक दिन उसके घर लाल रंग के चेहरे वाले लोग आये.उन्होंने उसे बोला कि वह अपना चेहरा लाल रंग में रंग ले नहीं तो अंजाम बुरा होगा.
           वह डर गया,साधारण आदमी जो था.वह अपना चेहरा लाल रंग में रंगने जा ही रहा था कि उसके घर हरे रंग के चेहरे वाले लोग आये.और उसे धमकी दे गए कि वह अपना चेहरा सुबह तक हरे रंग से रंग ले नहीं तो उसे देख लिया जाएगा.
           वह बहुत घबरा गया,साधारण आदमी जो था.बहुत परेशान हुआ,शहर छोड़ने की हालत में वह था नहीं.अगर जानता कि यह ऐसा शहर है तो कभी यहाँ आता नहीं.
           बहुत सोचा उसने,बहुत माथा पच्ची की तो उसके दिमाग में एक आईडिया आया.दूसरी सुबह उसने अपना चेहरा दोनों रंगों में रंग लिया,आधा लाल,आधा हरा.
           वह खुश था.
           पर उससे अगली सुबह उसकी लाश शहर के चौराहे पर पडी थी.

29 टिप्‍पणियां:

  1. उफ़ बहुत ही शानदार लघुकथा. अंदर तक झकझोरती है, कचोटती है लेकिन सच्चाई को कौन नकार सकता है. सच्चाई तो सचमुच यही है. पता नहीं हम लाल हरे के चक्करों से कब ऊपर उठेंगे.

    जवाब देंहटाएं
  2. जब हम अपने प्रति स्पष्ट नहीं होते तो हम तरह तरह के रंगों में खुद को रंग देते हैं लेकिन वही हमारे पतन का कारण बनता है ....यह दुनिया एक भ्रम है और जो यहाँ भ्रम में फंसेगा वह कभी भी सही दिशा प्राप्त नहीं कर पायेगा ..और हरे लाल के चक्कर में अपना सब कुछ मिटा देगा ...गहरे अर्थों से परिपूर्ण ...आपका आभार

    जवाब देंहटाएं
  3. साधारण आदमी अपनी पसंद के रंग में भी नहीं रह सकता ...
    दुखद ...
    इसलिए ही शायद रंगहीन होती जा रही आदमी की शक्लें ...
    मार्मिक प्रस्तुति ..

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत मार्मिक लघुकथा के माध्यम से आपने समाज की विसंगतियों को सामने रखा है ...आपका आभार विशाल जी

    जवाब देंहटाएं
  5. विशाल जी ...

    यही हश्र हो रहा है आम आदमी का जो स्वयं का रंग कायम रखने में खुद को कमजोर महसूस करता है ..जरूरत है उस दृढ़ता की जो हमें अपने ही रंग पर कायम रख पाए ... बहुत सटीक दृश्य प्रस्तुत किया है आपने ..हृदय को झकझोरता सत्य ....बधाई

    जवाब देंहटाएं
  6. राम राम विशाल भाई,ऐसे शहर में कौन जाना पसंद करेगा.
    जरा नाम तो बताईये उस शहर का.
    बड़ा खतरनाक है.
    क्या 'दोगला' होने का दंड भुगतना पड़ा?
    इससे तो सफ़ेद ही रहता.पर उसे चैन से कौन बैठने दे रहा था कोई.

    जवाब देंहटाएं
  7. कम से कम दस बार टिपण्णी लिखी,तब आ पाई है.
    ये क्या माजरा है विशाल भाई ?
    कहीं उस शहर की नजर तो नहीं लग रही ?

    जवाब देंहटाएं
  8. भाई! ज़माने के बाद एक आला दर्जे की लघुकथा पढने को मिली. सीधे-सादे पात्र के जरिये यह सन्देश दिया कि सबको खुश नहीं रखा जा सकता और दो नावों की सवारी जानलेवा होती है. बहुत ही स्तरीय रचना. मेरी बधाई स्वीकार करें.

    ---देवेंद्र गौतम

    जवाब देंहटाएं
  9. अपनी पहचान वाकई में भुलाने कि हर संभव कोशिश की जा रही है!

    जवाब देंहटाएं
  10. बेनामी26 मई, 2011 13:26

    इस छोटी किन्तु गहरी रचना के लिए मेरा सलाम आपको.....रंगों के माध्यम से आप बहुत कुछ कह गए हैं.....शानदार...लाजवाब |

    जवाब देंहटाएं
  11. रंग रंग के रंग हैं


    पर सबसे फ़ीका


    लहू का रंग.....

    जवाब देंहटाएं
  12. अगर कहानी की बात करू तो दिल के बेहद करीब। मगर सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि आखिर एक आम नागरिक या इंसान क्यों अपनी जिदंगी नही जी सकता। जहॉ तक मैं समझता हुॅ इसका सबसे बड़ा दोषी आम इंसान ही है। क्योंकि वो स्वार्थी हो गया है। वो अपनी जिदंगी जीने के लिए समझौते करता है। बचपन में मॉ बाप से समझौता, शादी होने के बाद बीवी के साथ समझौता, बुढ़े होने पर बच्चों के साथ समझौता, आफिस में बॉस से समझौता, सफर में यात्रियों से समझौता और वो समझौते करते करते नपुसंक बन जाता है। क्योंकि हमें बचपन से ही सिखाया जाता है कि जहॉ कहीं ऐसी वैसी बात हो वहॉ से बच कर निकल लो। जो बीच में टॉग अड़ाएगा वो बेवकुफ कहलाएगा। आपके पात्र के साथ भी ऐसा ही हुआ। जब मुसीबत आई तो उसने समझौता करने की सोची। यानि के चेहरे को लाल रंग से रगंने की। लेकिन जब बात हरे रंग से रंगने की हुई तो भी उसने आवाज नही उठाई कि हमारी भी जिदंगी के अपने रंग है। हम क्यों रंगे आपके रंग मे। लेकिन फिर भी उसने बीच का रास्ता ही निकाला और अपने चेहरे को दोनो रंगो से रंग लिया फिर भी मारा गया लेकिन जिल्लत की मौत। अगर वो उनकी बात नहीं मानता तो भी शायद मारा जाता मगर मरने के बाद भी उसे शांति महसुस होती। अगर अन्यथा लगे तो क्षमा करियेगा।

    जवाब देंहटाएं
  13. साधारण आदमी तो हमेशा ऐसे ही मरता आया है ।

    जवाब देंहटाएं
  14. लघु कथा के माध्यम से बहुत ही मार्मिक चित्रण। भेद-भाव से भरी इस दुनिया का दुखद ही अंत है।

    जवाब देंहटाएं
  15. Thank God, in some places, the colour is only of clothes, dresses and caps- and not a question of life and death. Deep symbolism in the short story is simply great !
    Who is fit to survive- is the question. !
    Nice presentation.

    जवाब देंहटाएं
  16. जब शुरुआत की तो पता नहीं था कि अंत इतना झकझोर देने वाला होगा...दोनों रंगों में रंगा आदमी चौराहे पर पड़ा अपनी आखिरी साँसें गिन चुका है....बहुत ही मार्मिक सच...

    जवाब देंहटाएं
  17. मार्मिक प्रस्तुति ..

    जवाब देंहटाएं
  18. AJKAL SADHARAN INSAN KO SAMAJ ME ARAM SE JINE NAHI DIYA JATA

    जवाब देंहटाएं
  19. लघु कथा के माध्यम से बहुत ही मार्मिक चित्रण। धन्यवाद|

    जवाब देंहटाएं
  20. स्पष्ट संकेत..गहरा सन्देश.... कमाल कर दिया विशाल जी, सादर...

    जवाब देंहटाएं
  21. ओह दुखद पर सच दर्शाती लघुकथा.

    जवाब देंहटाएं
  22. बहुत 'उफ़!' उफ़!' निकलवा दी है आपने इस पोस्ट से.
    अच्छा किया आपने नई पोस्ट लगा दी है.कम से कम अब उसने मुझे(चाँद) आपके पास भेज दिया है.

    जवाब देंहटाएं
  23. आम आदमी की कहानी है ... धर्म और क्या क्या करवाएगा ..

    जवाब देंहटाएं

मंजिल न दे ,चिराग न दे , हौसला तो दे.
तिनके का ही सही, मगर आसरा तो दे.
मैंने ये कब कहा कि मेरे हक में हो जबाब
लेकिन खामोश क्यों है कोई फैसला तो दे.