12 जून 2011

मुहब्बत की दुकां

मैं मुहब्बत बेचता हूँ
अपना सब कुछ बेचता हूँ 

बड़े नाज़ों से इसे सम्भाला है 
खूने जिगर दे कर इसको पाला है

जवां जो हो गयी तो सुर्ख जोड़ा पहना दिया
चाहने वाला न मिला कोई तो दुकां पे सजा दिया

बहुतेरे आते हैं देख जाते हैं
बहुत महंगी है,बता के लौट जाते हैं

चंद कहते हैं हमारे काम की नहीं 
परेशान करेगी आराम की नहीं 

सुनो इक बात तुमको बतला दूं
इस शै की कैफ़ीयत तुम को समझा दूं

बेपर्दा है मुहब्बत ,मगर दिखती भी नहीं है
बिकती भी नहीं है, मिलती भी नहीं है 

बस उम्मीद है इक दिन तुम्ही आओगे 
इस नामुराद को तुम्ही खरीद पाओगे

मोल जो तुम कहोगे वही है
कुछ भी न दोगे तो भी सही है

इस शै को खरीदोगे तो रूंगा मिलेगा मुफ्त
मुहब्बत जो खरीदोगे तो ख़ुदा मिलेगा मुफ्त






19 टिप्‍पणियां:

  1. बस उम्मीद है इक दिन तुम्ही आओगे
    इस नामुराद को तुम्ही खरीद पाओगे

    तेरे होटों की छुअन ने तो जैसे
    कडवे ज़हर भी शीरे का घोल कर दिया
    मैं मिटटी का ज़र्रा था बेकार तूने
    खरीद कर मुझे लिल्ला अनमोल कर दिया

    khoobsurat hai rachna aapkee...

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  2. बेनामी13 जून, 2011 09:25

    सुभानाल्लाह....बहुत ही खुबसूरत अहसास......मुहब्बत की दुकां .....वाह

    बेपर्दा है मुहब्बत ,मगर दिखती भी नहीं है
    बिकती भी नहीं है, मिलती भी नहीं है

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  3. बेपर्दा है मुहब्बत ,मगर दिखती भी नहीं है
    बिकती भी नहीं है, मिलती भी नहीं है आज के युग मे सब कुछ मुफ्त मिलता है मिलावटी और जो खरीदेगा उसमे जरूर मिलावट होगी। सच्ची मुहब्बत से ही खुदा मिलता है लेकिन लोग बिना सच्ची मुहब्बत से उसे ढौऔँढते है। अच्छे भाव।

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  4. very beautiful !!!
    great deep and intense feeling behind this post.

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  5. वाह आखिरी लाइन सारी कविता पर भारी है…………शानदार्।

    आपकी रचना यहां भ्रमण पर है आप भी घूमते हुए आइये स्‍वागत है
    http://tetalaa.blogspot.com/

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  6. मुहब्बत जो खरीदोगे तो ख़ुदा मिलेगा मुफ्त

    बहुत सुन्दर ...

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  7. खूबसूरत एहसास लिए ... लाजवाब रचना है ...

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  8. "मोल जो तुम कहोगे वही है
    कुछ भी न दोगे तो भी सही है

    इस शै को खरीदोगे तो रूंगा मिलेगा मुफ्त
    मुहब्बत जो खरीदोगे तो ख़ुदा मिलेगा मुफ्त "

    वाकई , लाजवाब बन पड़ी है नज़्म.
    "रूंगा " शब्द का प्रयोग अतीत में ले गया !
    बधाई , विशाल जी !

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  9. बस उम्मीद है इक दिन तुम्ही आओगे
    इस नामुराद को तुम्ही खरीद पाओगे

    मोल जो तुम कहोगे वही है
    कुछ भी न दोगे तो भी सही है

    अनमोल... बहुत खूबसूरत अहसास....... सुन्दर रचना..

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  10. बेपर्दा है मुहब्बत ,मगर दिखती भी नहीं है
    बिकती भी नहीं है, मिलती भी नहीं है

    खूबसूरत , सुन्दर रचना..

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  11. बहुत खूबसूरत रचना, बधाई और शुभकामनाएं |

    - विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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  12. इस शै को खरीदोगे तो रूंगा मिलेगा मुफ्त
    मुहब्बत जो खरीदोगे तो ख़ुदा मिलेगा मुफ्त

    बहुत ही सुन्दर पंक्तियां...
    बहुत बेहतरीन रचना...
    बहुत खूब.

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  13. बेहतरीन भावपूर्ण रचना के लिए बधाई।

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  14. विशाल भाई! मोहब्बत की इतनी खूबियाँ गिना दीं आपने.. वो भी दूकान सजाकर!! हम तो आ गए खरीदार बनकर, मगर लौट रहे हैं बेमोल बिक कर!! खरीद लिया भाई आपने!!

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  15. मन पुलकित हो गया है आपके इस दुकान के वाया खुदा से मिलकर...आभार

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  16. vishaal ji, pehle toh maafi chahungi..kaafi dino baad blog par aa saki hun..zindagi ko kuch savaarna baki reh gya tha vahi nipta rahi thi...ab aapki kavita, kya kahun aap har baar itne aasaani se itni behtareen rachnaayein izzad karte hain....mohabbat ki dukan lagati ye kavita bazarvaad se use bachaaye b rakhti hai..aur yahi iski sabse badi khoobi hai.....naayaab...

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  17. मुहब्बत जो खरीदोगे तो ख़ुदा मिलेगा मुफ्त.
    .....कहने का अंदाज़ अनूठा है.

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  18. मुहब्बत और ख़ुदा - एक सिक्के के दो पहलू।
    सुंदर कविता।

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  19. आखिर आपने हमारे पीछे से मोहब्बत को बेच ही डाला
    पर यह क्या मोहब्बत का'होल सेल'कारोबार ही कर डाला
    जितनी बेचीं , उससे ज्यादा खरीद कर डाली
    बराबर में चलती 'दर्द की दुकां'को कर दिया बिलकुल खाली.
    अब तो बस मोहब्बत ही मोहब्बत है,दर्द का कोई नामो निसां ही नहीं.
    मोहब्बत के साथ खुदा भी मुफ्त मिल रहा है यहीं.
    मोहब्बत को ओढ़ कर ही खुदा से मिलेंगें.
    जीवनभर आपको दुआएं देतें रहेंगें.

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मंजिल न दे ,चिराग न दे , हौसला तो दे.
तिनके का ही सही, मगर आसरा तो दे.
मैंने ये कब कहा कि मेरे हक में हो जबाब
लेकिन खामोश क्यों है कोई फैसला तो दे.