20 जून 2011

चंद बेवज़न अशआर

                         जब तलक ज़िंदा हैं पत्थर ही खायेंगे
मर अगर गये तो खुदा हो जायेंगे

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खलूस में तो मेरे कोई कमी नहीं
पाँव तले तुम्हारे ही अब वो ज़मीं नहीं

***********

ज़िन्दगी नज्मों से कहाँ चलती है
शायरों को भी भूख लगती है

*************
इक रहनुमा की बात को
मैं दिल से लगा बैठा हूँ
नयी सुबह की उम्मीद में
रातों से जगा बैठा हूँ

*****************
दिन में सूरज की तरह जलता है
रात को चाँद सा पिघलता है
तुझे आईना मैं दिखाऊँ कैसे
तेरा चेहरा रोज़ बदलता है

36 टिप्‍पणियां:

  1. इक रहनुमा की बात को
    मैं दिल से लगा बैठा हूँ
    नयी सुबह की उम्मीद में
    रातों से जगा बैठा हूँ

    bahut khoobsoorat shayari hai .. ..!!

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  2. दिन में सूरज की तरह जलता है
    रात को चाँद सा पिघलता है
    तुझे आईना मैं दिखाऊँ कैसे
    तेरा चेहरा रोज़ बदलता है
    Bahut achi rachna ..!

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  3. एक से बढ़ कर एक...
    जिन्दगी नज्मो से कहा......वाली ज्यादा पसंद आई..
    मर अगर गए तो खुदा हो जायेंगे...........बहुत सुन्दर..

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  4. इक रहनुमा की बात को
    मैं दिल से लगा बैठा हूँ
    नयी सुबह की उम्मीद में
    रातों से जगा बैठा हूँ

    Bhetreen Abhivykti....

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  5. ये अशआर बेवज़न हैं ? मुझे तो समझ में नहीं आया कि किसका वज़न कम है.
    एक से बढ़कर एक.

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  6. सभी एक से बढ़कर एक हैं!
    bahut khoob likhi hain.

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  7. जब तलक ज़िंदा हैं पत्थर ही खायेंगे
    मर अगर गये तो खुदा हो जायेंगे.

    अगर यह बेबजन हैं तो बजनदार अशआर कैसे होंगे.

    मानना पड़ेगा. बहुत असरदार.

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  8. विशाल भाई, इतने वजनदार अशआर हैं, इन्हें बेवजनी क्यों बताते हैं?

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  9. बेहतरीन ... वजनदार , एक से बढ़कर एक

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  10. amitabh bachhan ji ki panktiyan yaad aa gayin ,
    tumne to hamein pooj pooj kar but bana diya
    jo log jumle kaste hain hamein zinda to samajhte hain

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  11. बेनामी21 जून, 2011 09:35

    खुबसूरत शेर......आखिरी वाला सबसे बढ़िया लगा|

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  12. बहुत बडःइया भाव अच्छे हैं एक शेर को कुछ इस तरह बह्र मे लिखने की कोशिश की है
    ज़िन्दगी नज़्मों से भी चलती मगर कब तक चलेगी
    शायरों को भी तो कम्बख्त भूख लगती है कभी तो
    सभी अच्छे अशार इन्हें बहर मे ढाल लीजिये अच्छी गज़ल बन जायेगी।

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  13. " ये इश्क नहीं आसां , बस इतना समझ लीजे ,
    इक आग का दरिया है और डूब के जाना है "

    आपके अशआर ज़मीनी हकीक़त से लबरेज़ हैं , बेवज़न तो हो ही नहीं सकते !
    बधाई , विशाल भाई !

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  14. बेहतरीन ... बहुत ही वजनदार , एक से बढ़कर एक........ जवाब नहीं...

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  15. Vishalji,

    खलूस में तो मेरे कोई कमी नहीं
    पाँव तले तुम्हारे ही अब वो ज़मीं नहीं

    bahut sunder band likhe hain.

    shubhkamnayen

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  16. ज़िन्दगी नज्मों से कहाँ चलती है
    शायरों को भी भूख लगती है


    आपने बहुत सुन्दर शब्दों में अपनी बात कही है। शुभकामनायें।

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  17. बहुत प्‍यारे और वजनदार अशआर हैं जी।

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  18. ज़िन्दगी नज्मों से कहाँ चलती है
    शायरों को भी भूख लगती है
    ,वाह वाह बहुत सुंदर मुबारक हो......

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  19. दिन में सूरज की तरह जलता है
    रात को चाँद सा पिघलता है
    तुझे आईना मैं दिखाऊँ कैसे
    तेरा चेहरा रोज़ बदलता है
    बेहतरीन ... एक से बढ़कर एक !
    बहुत गहन भावों को उकेरती एक सराहनीय रचना| धन्यवाद

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  20. बहुत बढ़िया शेर हैं ,विशाल जी.

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  21. दिन में सूरज की तरह जलता है
    रात को चाँद सा पिघलता है
    तुझे आईना मैं दिखाऊँ कैसे
    तेरा चेहरा रोज़ बदलता है

    यही है आज के इंसान का असली चेहरा…………सुन्दर

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  22. क्या बात है विशाल भाई,
    कमाल का लिख गजब ढा रहें हो
    शायरी का परचम लहरा रहें हो
    बदलते चहरे के रंग दिखला रहें हो,
    हमारे दिल को लिए उड़े जा रहें हो
    आप मर कर नही जी करके ही खुदा बने जा रहें हो.

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  23. आपने बहुत सुन्दर शब्दों में अपनी बात कही है। धन्यवाद|

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  24. उम्दा अशआर विशाल भाई.... आनंद आ गया....
    सादर...

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  25. विशाल भाई! सच्मुच बेवज़न अशार हैं आपके.. क्योंकि शेर का सारा वज़न तो हम अप्ने दिल पर महसूस कर रहे हैं!!कमाल किया भाई!!

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  26. ज़िन्दगी नज्मों से कहाँ चलती है
    शायरों को भी भूख लगती है

    बहुत सुन्दर रचना....

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  27. इक रहनुमा की बात को
    मैं दिल से लगा बैठा हूँ
    नयी सुबह की उम्मीद में
    रातों से जगा बैठा हूँ

    क्या बात है...बहुत खूब..सारे शेर एक से बढ़कर एक हैं ...

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  28. बेहतरीन नज़्म जैसे..जैसे .. सीप से अभी-अभी निकला हो..और नजरें ठहर गयी हो..

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  29. एक से बढ़कर एक मुक्तक...
    हार्दिक बधाई.

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  30. जब तलक ज़िंदा हैं पत्थर ही खायेंगे
    मर अगर गये तो खुदा हो जायेंगे.........
    वाह, क्या बात कही है!!!

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मंजिल न दे ,चिराग न दे , हौसला तो दे.
तिनके का ही सही, मगर आसरा तो दे.
मैंने ये कब कहा कि मेरे हक में हो जबाब
लेकिन खामोश क्यों है कोई फैसला तो दे.