इक कसक अपने दिल में,
बसाए हुए रखिये,
शमा ए नाउम्मीदी,
जलाए हुए रखिये.
ये वो नहीं है दौर,
कि फूलों की बात हो,
बाहों के आस्तीं को,
चढ़ाए हुए रखिये .
गर दूसरे पे गुजरे ,
तो खामोश हो रहें,
आसमां खुदी को सर पे,
उठाये हुए रखिये .
जेबें अगर हो खाली,
छुपाये हुए रखिये,
कालर पे सफ़ेदी को,
सजाये हुए रखिये.
जो मुस्कुरा दिए तो,
दुनिया कहेगी फूल,
जीने को शकले संग,
बनाए हुए रखिये .
ये वो नहीं है दौर,
जवाब देंहटाएंकि फूलों की बात हो,
बाहों के आस्तीं को,
चढ़ाए हुए रखिये .
bahut khoob bina iske hota bhi kuch nahee
i L.I.K.E. it :)
जवाब देंहटाएंRegards,
Sunny Dhanoe
http://wolfariann.blogspot.com/
http://radiopunjab.blogspot.com/
आज के दौर के लिये मुनासिब अपील... जो इसे न अपनाए उसे दुनिया बेवक़ूफ सॉरी फ़ूल कहती है!!
जवाब देंहटाएंविशाल भाई! अच्छा तंज़ किया है समाज पर!!
बहूत सुंदर रचना.......
जवाब देंहटाएंbahut sundar chhotawriters.blogspot.com
जवाब देंहटाएंamazing composition!
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना। शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएं"ये वो नहीं है दौर,
जवाब देंहटाएंकि फूलों की बात हो,
बाहों के आस्तीं को,
चढ़ाए हुए रखिये"
बहुत सुंदर रचना
लाजवाब प्रस्तुति,एक तीखा कटाक्ष
जवाब देंहटाएंRaunakdaar,roshan rachana,jee shukriya
जवाब देंहटाएंये वो नहीं है दौर,
जवाब देंहटाएंकि फूलों की बात हो,
बाहों के आस्तीं को,
चढ़ाए हुए रखिये .
बेहद शानदार लाजवाब गज़ल ...
जेबें अगर हो खाली,
जवाब देंहटाएंछुपाये हुए रखिये,
कालर पे सफ़ेदी को,
सजाये हुए रखिये.
वाह.....वाह....बहुत उम्दा....
कविता में
जवाब देंहटाएंजज़्बात का बोल-बाला है
पढने वालों से बातें भी .... !
जेबें अगर हो खाली,
जवाब देंहटाएंछुपाये हुए रखिये,
कालर पे सफ़ेदी को,
सजाये हुए रखिये.
मध्यमवर्ग की यही कहानी है ..
beautiful sattire.
जवाब देंहटाएंविशाल भाई, "मार सुट्ट्या" :)
ये वो नहीं है दौर,
जवाब देंहटाएंकि फूलों की बात हो,
बाहों के आस्तीं को,
चढ़ाए हुए रखिये .
क्या बात है विशाल भाई कमाल दिया आपने तो। बहुत खुब।
ये वो नहीं है दौर,
जवाब देंहटाएंकि फूलों की बात हो,
बाहों के आस्तीं को,
चढ़ाए हुए रखिये .
वाह क्या बात है
नाउम्मीदी घेरने पर शम्म-ए-उम्मीदी जलाए रखिए॥
जवाब देंहटाएंजेबें अगर हो खाली,
जवाब देंहटाएंछुपाये हुए रखिये,
कालर पे सफ़ेदी को,
सजाये हुए रखिये.
दुनिया की चकाचौंध का यही सच है.
बहुत ही उम्दा पेशकश विशाल जी.
सबसे पहले तो माफी चाहूँगी विशाल जी काफी दिनों से आ नहीं पाई ब्लॉग पर....कुछ अव्यस्त सी व्यस्तताओं ने बाहें फैला रखी थीं उन्हें गले लगाना ज़रूरी था और एक बार गले मिलीं तो जल्दी छोड़ा ही नहीं..समय को ज़िन्दगी से काफी गिले शिकवे थे..दूर करना ज़रूरी था.....अब आपकी रचना - "ये वो नहीं है दौर,
जवाब देंहटाएंकि फूलों की बात हो,
बाहों के आस्तीं को,
चढ़ाए हुए रखिये ."
इन पंक्तियों ने एक गज़ब सी हिम्मत की है सच बोल डालने की और उसे हिम्मत मिली है आपकी पूरी रचना से...आप शब्दों से ऐसी नसीहतें दे जाते हैं जो अपनी हरेक पंक्ति में एक स्टेटमेंट होती हैं.....
वक़्त का तकाज़ा ही कुछ ऐसा है विशाल जी, बताये गए रास्ते से न चल कर उलट चलने में ही भलाई लगती है , पर फिर भी उम्मीद का दामन नहीं छूटता ! आज कल के हालात का सही तज़करा !
जवाब देंहटाएंजेबें अगर हो खाली,
जवाब देंहटाएंछुपाये हुए रखिये,
कालर पे सफ़ेदी को,
सजाये हुए रखिये.
waha waha bahut khub......sach ka aayinaa
आज के समय के हिसाब से आपकी सीख प्रासंगिक है.
जवाब देंहटाएंbahut achhe vishal
जवाब देंहटाएंनाउम्मीदी के इस दौर में उम्मीद पालने का बेहतर वजह दिया है.आपका जबाव नहीं .
जवाब देंहटाएं"इक कसक अपने दिल में,
जवाब देंहटाएंबसाए हुए रखिये,
शमा बस एक उम्मीद की
जलाए हुए रखिये."
सारे शेर ही एक से बढ़ कर एक हैं....
लाजवाब....!
लेकिन फिर भी उम्मीद बाकी है...!!