एक सिगरेट
तेरे अतृप्त लबों की तलब
एक पैकेट
मेरी जेब के अन्दर सरकता है
एक मुश्किल
सिर्फ सुलगाने की है
ये कैसी बस्ती है
यहाँ हर बशर
किसी जुगनू का सर पकड़
आग सुलगाने की
असफल सी कोशिश करे
यख़ सर्द मौसम में
कंपकपाने से डरे
सर्दी मारे शरीर की
बेचारा मन जरे
ये सभी सडकें
नपुंसकों के वजूद का
हो गयीं शिकार
सर्दी मारे शरीर पहने
काठ के उल्लुओं को
कैसे चढ़ेगा बुखार
ये सरापी जगह
हमारी चिरंतन तलब की
पूरक बने........
संभव नहीं
चलो कहीं और चलें हम
पत्थर से पत्थर टकरा कर
तेरे अतृप्त लबों की तलब
एक पैकेट
मेरी जेब के अन्दर सरकता है
एक मुश्किल
सिर्फ सुलगाने की है
ये कैसी बस्ती है
यहाँ हर बशर
किसी जुगनू का सर पकड़
आग सुलगाने की
असफल सी कोशिश करे
यख़ सर्द मौसम में
कंपकपाने से डरे
सर्दी मारे शरीर की
बेचारा मन जरे
ये सभी सडकें
नपुंसकों के वजूद का
हो गयीं शिकार
सर्दी मारे शरीर पहने
काठ के उल्लुओं को
कैसे चढ़ेगा बुखार
ये सरापी जगह
हमारी चिरंतन तलब की
पूरक बने........
संभव नहीं
चलो कहीं और चलें हम
पत्थर से पत्थर टकरा कर
कोई चिंगारी निकालें
लबों पर सुलगता हुआ
सिगरेट तो रखें.
लबों पर सुलगता हुआ
सिगरेट तो रखें.
Hamesha ki tarah Sunder rachna.
जवाब देंहटाएंAabhaar
किसी जुगनू का सर पकड़
जवाब देंहटाएंआग सुलगाने की
असफल सी कोशिश....
वाह! शसक्त रचना....
सादर आभार...
sundar wa sashakt rachna...ek alag si soch liye hue ....umda
जवाब देंहटाएंउच्च कोटि की कविता है ...
जवाब देंहटाएंबहुत सशक्त और ..बहुत कुछ कहती हुई ..
badhai.
बेहद खुबसूरत नज़्म पढवाया है आपने | जी शुक्रिया..
जवाब देंहटाएंसुन्दर शब्दावली, सुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंकृपया मेरी नवीन प्रस्तुतियों पर पधारने का निमंत्रण स्वीकार करें.
बेहतरीन कविता. दिल बाग बाग हो गया.
जवाब देंहटाएंसशक्त और प्रभावशाली रचना.....
जवाब देंहटाएंगहन अर्थों को अभिव्यक्त करती सुंदर कविता।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन और लाजबाब ...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ... गहरी बात है इस रचना में ... आज कितने हैं तो पत्थर से पत्थर टकरा कर जलाते हैं ... बहुत ही प्रभावी रचना ..
जवाब देंहटाएंहर एक पंक्ति पर एक अजीब सा एहसास दिल में तैर जाता है.. आखिर तक आते-आते एक ऐसी दुनिया में होने का एहसास जिसका बयान मुमकिन नहीं.. पहले भी कहा है, आज भी कहता हूँ.. अपने समय से आगे के शायर!!
जवाब देंहटाएंबेहद खुबसूरत रचना...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रविष्टि...वाह!
जवाब देंहटाएंचलो कहीं और चलें हम
जवाब देंहटाएंपत्थर से पत्थर टकरा कर
कोई चिंगारी निकालें
लबों पर सुलगता हुआ
सिगरेट तो रखें.
सुभानाल्लाह.........बहुत खूबसूरत लगी पोस्ट|
lovely creation Vishal ji.
जवाब देंहटाएंचलो कहीं और चलें हम
जवाब देंहटाएंपत्थर से पत्थर टकरा कर
कोई चिंगारी निकालें.बहुत बढिया।
सिगरेट को मौजू बना कर - प्रतीक रूप में ही सही - इतनी सुंदर नज़्म लिखी जा सकती है , आज ही मालूम हुआ !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति विशाल जी !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंपर मुझे तो 'सिगरेट' शब्द से अलर्जी सी होती है.
behtarin post
जवाब देंहटाएंविशाल जी , नव वर्ष की शुभकामनाएं.. हर क्षण मंगलमय हो..
जवाब देंहटाएंविशाल जी वर्ष २०११ मेरे लिए शुभ रहा. क्यूंकि आप जैसे प्रेमी
जवाब देंहटाएंऔर सुहृदय मित्र से परिचय हुआ और विचारों का सुन्दर आदान
प्रदान हुआ.
नववर्ष २०१२ भी नित शुभ और मंगलमय हो आपको और आपके परिवार को ,यही दुआ और कामना करता हूँ.
समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंनव वर्ष मंगलमय हो।
किसी जुगनू का सर पकड़
जवाब देंहटाएंआग सुलगाने की
असफल सी कोशिश....
बेहतरीन प्रस्तुति
कभी-कभी कोई पोस्ट डाल दिया करें...समय निकाल कर..सूना लगता है ब्लॉग जगत आपके बिना..
जवाब देंहटाएं