17 जनवरी 2011

सबसे लम्बी चिट्ठी


माँ ,
इस दीपावली को भी मैं घर नहीं आ पाऊंगा. 
शोभा और बच्चे शहर में खुश हैं. 
कुछ रुपये भेज रहा हूँ . 
पिताजी से कहना मुझे माफ़ कर दें . 
तुझे सब पता ही है.  

तुम्हारा बेटा . 

17 टिप्‍पणियां:

  1. छोटी की कविता ने सारे राज़ खोल दिए .... बहुत खूब ....

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  2. कम शब्दों में बड़ी बात कह दी आप ने
    बहुत सुंदर !

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  3. इसे कहते हैं.. कम लिखे को ज़्यादा समझना!!हर व्यथाएँ लिखी नहीं जातीं!!

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  4. बहुत खूब ....
    धन्यवाद, मेरे ब्लॉग से जुड़ने के लिए और बहुमूल्य टिपण्णी देने के लिए

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  5. :)
    kya comment kar sakta hai koi ispar...bohot khoob dost :)

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  6. कम शब्दों में बड़ी बात.....

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  7. .

    आज कल के बेटे!

    और ...

    सदियों से वैसी ही होती हैं माएं।

    उन्हें सब है पता...

    .

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  8. गहरी बात कही है आपने कम शब्दों में ही
    धन्यबाद

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  9. एक बेटे की मजबूरी , ममता की व्यथा और जनरेशन गैप सब कुछ बता गई आपकी चिट्ठी. वाकई सबसे लम्बी है . सुंदर कटाक्ष .

    palkonkesapne.blogspot.com पर भी प्रतीक्षित .

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  10. व्यथा
    मजबूरी
    और
    ग्लानि
    अब इस से ज्यादा और किन
    अलफ़ाज़ में कह दी जाए ... ??

    बहुत ही प्रभावशाली प्रस्तुति

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  11. एक छोटी सी कविता आज का सत्य इतनी सटीकता से प्रस्तुत कर गयी..बहुत प्रभावशाली मर्मस्पर्शी प्रस्तुति..

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  12. शब्द कम है लेकिन गहरी बात कह रहे है।

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  13. kuch hi shabdon ki lambee chitthi ... bahut kuch kah gayi ... baht kuch bata gayee ...

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  14. बहुत खूब ..... !
    आप कामयाब हैं ! शुभकामनायें !

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  15. लगता है कई वर्षों से यह सिलसिला चल रहा है कि माँ बेटे को नज़र भर देखने के लिए तरस रही है और लायक बेटा माँ की ममता की कीमत कुछ पैसों से तोल रहा है . एक विडम्बना का सही चित्रण !

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मंजिल न दे ,चिराग न दे , हौसला तो दे.
तिनके का ही सही, मगर आसरा तो दे.
मैंने ये कब कहा कि मेरे हक में हो जबाब
लेकिन खामोश क्यों है कोई फैसला तो दे.