03 जून 2011

अधूरे सच

तुम्हारे
और मेरे
अधूरे सच
हो सकेंगे
न कभी
पूर्ण
तो प्रिये
क्यों न
स्वीकारें
हम अपने
अधूरे सच
कम से कम
स्वीकृति
के सच को
तो हो जानें दे
पूर्ण

30 टिप्‍पणियां:

  1. कम से कम
    स्वीकृति
    के सच को
    तो हो जानें दे
    पूर्ण

    वाह्…………काश ऐसा भी कोई कर पाये और उसका अहम आगे ना आये ……………स्वीकृति के सच को भी पूर्णता नही मिल पाती है।

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  2. भाव के साथ लिखी कविता पर बधाई .

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  3. adhoora sa hai fasana mera
    apne andar jazb kar lo mujhe
    to poora ho jaun main
    aur shayad tum bhi

    aap bhi aaiye

    abhaar

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  4. कम से कम
    स्वीकृति
    के सच को
    तो हो जानें दे
    पूर्ण

    सच को कहती भावात्मक रचना

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  5. क्यों न
    स्वीकारें
    हम अपने
    अधूरे सच
    कम से कम
    स्वीकृति
    के सच को
    तो हो जानें दे
    पूर्ण
    bahut sunder abhibyakti.badhaai aapko.

    please visit my blog.thanks

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  6. सच तो सच है, अधूरा ही सही, पूरा चांद किसे मिला है :)

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  7. वैसे तो a truth that is half told is not less than a lie, लेकिन कुछ सच अधूरे ही अच्छे होते हैं।
    कम लफ़्ज़ों में बहुत कुछ कह गये विशाल भाई, और वो भी निहायत खूबसूरती से।
    वाह।

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  8. वाह विशाल जी छोटी सी बात में बड़े अर्थ, बधाई

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  9. बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना..

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  10. विशाल जी
    बहुत सुन्दर ...अधूरेपन की स्वीकृति ही ले जाती है हमें पूर्णता की ओर ...बहुत गूढ़ बात कह दी है आपने इस नन्ही सी नज़्म में..दर्शन समाया है पूर्णता को महसूस करने का... बधाई आपको इस चिंतन और उसे शब्द देने के लिए

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  11. मुदिता जी से पूर्णतया सहमत हूँ कि अधूरेपन की स्वीकृति ही ले जाती है हमें पूर्णता की ओर .
    बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति थोड़े शब्दों में. !
    बधाई, विशाल जी !

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  12. शायद इस को ही सहभागिता कहते हैं .....

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  13. आपकी छोटी सी कविता बहुत बड़ी बात कह जाती है.
    क्या 'विशालता' इसी को कहतें हैं ,विशाल भाई ?
    जाने में कुछ देरी हो गई.इसीलिए जाते जाते यही
    टिपण्णी करने का मन किया.बाकी आने के बाद.

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  14. बेहतरीन। यही तो कविता है। छोटी ही सही पर अपने अर्थ में पुरी तरह कामयाब।

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  15. स्वीकृति ही पूर्णता है । बहुत ही अच्छी कविता है ।

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  16. पूर्ण रूपेण सहमत. सुंदर भावपूर्ण रचना.

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  17. पूर्णता में खो जाना,पूर्ण हो जाना..सच जो भी हो ...स्वीकार करना ही एक द्वार खोलना है..संभवतः विस्तृत आसमान का ....जिसमे विचरण कर ही पूर्णता का अनुभव किया जा सकता है..

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  18. कम से कम
    स्वीकृति
    के सच को
    तो हो जानें दे
    पूर्ण

    यह सच भी .....क्या है ...अगर पूरा हो जाए तो ....बहुत गहन भाव का सम्प्रेषण करती रचना .....आपका आभार

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  19. कम शब्दों में बहुत गहरी बात कह दी आपने।
    शुभकामनाएं।

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  20. बेनामी06 जून, 2011 13:56

    कम लफ़्ज़ों में गहरी बात.......बहुत खूबसूरत|

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  21. बहुत मुश्किल है अधूरे सच को स्वीकार करना....

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  22. विशाल जी अच्छी क्षणिका है ....
    कुछ इसी तरह की बेहतरीन क्षणिकाएं हों तो भेज दें सरस्वती-सुमन के लिए ...
    अपने संक्षिप्त परिचय व तस्वीर के साथ .............

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  23. खूबसूरत,भावात्मक रचना

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मंजिल न दे ,चिराग न दे , हौसला तो दे.
तिनके का ही सही, मगर आसरा तो दे.
मैंने ये कब कहा कि मेरे हक में हो जबाब
लेकिन खामोश क्यों है कोई फैसला तो दे.