07 जुलाई 2011

बस !

लम्हे को मिला बस
लम्हे में पला बस
लम्हे में ढला बस 
लम्हे में हुआ बस
न उसका चला बस
न मेरा चला बस
जो उसने कहा बस
तो अपना हुआ बस
हमको न मिला बस
मुहब्बत का सिला बस 
उस से है गिला बस
जिसने ये दिया बस

26 टिप्‍पणियां:

  1. न उसका चला बस
    न मेरा चला बस....

    फिर क्यूँ है ये गिला बस.........
    सुन्दर प्रस्तुति.....

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  2. मुहब्बत का सिला बस
    उस से है गिला बस

    बस पर न चला बस
    क्यूँ इतनी गिला है बस
    अनवरत इंतजार है बस
    थक गई हैं आँखे बस
    क्या मोहब्बत सताना है बस?

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  3. बस और बेबस की यह जद्दोजहद .....!

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  4. वो लम्हा बस ... सुन्दर अभिव्यक्ति

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  5. वाह विशाल जी

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  6. न मेरा चला बस
    जो उसने कहा बस
    तो अपना हुआ बस
    हमको न मिला बस
    मुहब्बत का सिला बस

    आन्तरिक भावों के सहज प्रवाहमय सुन्दर रचना....

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  7. सहज सुन्दर अभिव्यक्ति ....

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  8. माफ़ कीजिये मुझे आपकी ये पोस्ट पसंद नहीं आई.......

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  9. बहुत खूब ........अच्छी प्रस्तुति

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  10. काश कुछ लोग कुछ और मामलों में भी बस कर लेते ,
    -----तो कितना अच्छा होता !

    बेहतरीन प्रस्तुति !

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  11. इस 'बस' ने तो हद कर दी ---जाती ही नहीं ?

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  12. शब्दों से खेलना आप बखुबी जानते है। सुन्दर रचना।

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  13. आपका लम्हे ने रोक लिया मुझे.क्या .... कहूँ?

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मंजिल न दे ,चिराग न दे , हौसला तो दे.
तिनके का ही सही, मगर आसरा तो दे.
मैंने ये कब कहा कि मेरे हक में हो जबाब
लेकिन खामोश क्यों है कोई फैसला तो दे.