28 सितंबर 2011

स्वयंनामा -5

सिफ़र

मनफ़ी और जमा को
अपनी ज़िन्दगी से
कैसे हटाऊँ,
तुम ही बताओ 
कोई फ़ॉर्मूला 
कि मैं फिर से,
सिफ़र हो जाऊं.

लम्हे

मैं वक़्त की शाख से
गिरते हुए
लम्हे समेटता  हूँ,
जो बच जाते हैं साबुत, 
उन्हें करीने से
सजा देता हूँ
जो गिर कर
टूट जाते हैं
उनकी किरचों को उठा कर
सीने से लगा लेता हूँ

आज फिर 

आज फिर सूरज
बिना बताये ही डूब गया
आज फिर अँधेरे
बिना बुलाये ही आ गये
आज फिर पुराना ज़ख्म
छील गयी बहती हवा
आज फिर दर्द ने
दस्तक दी है
आज फिर बिना चाहे ही
पैमाना भर लिया
आज फिर मौत का 
सामान तैयार है. 

22 टिप्‍पणियां:

  1. वाह! सुन्दर प्रस्तुति.
    स्वयंनामा कर यह रंग भी गहन और निराला है.

    आभार,विशाल भाई.

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  2. सभी लाजबाब और गहरे अर्थ संप्रेषित करती हैं ....जिंदगी में सिफर हो जाना ...खुद को पा जाना है लेकिन ऐसा कोई कोई ही कर पाता है ...सुंदर भाव

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  3. तीनों ही लाजवाब है
    गहरी अभिवयक्ति है दर्द की
    शुभकामनाये

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  4. आज फिर आपने दिल की कलम का क़ायल बना दिया विशाल जी.और क्या कहा जाय...

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  5. वाह जनाब, बहुत सुन्दर क्षणिकाएं है ... तीनो ही लाजवाब हैं !

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  6. तीनों ही रचनाएँ लाजवाब है, लेकिन लम्हे के भाव मन को छू गए...

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  7. बहुत ही ख़ूबसूरत...ख़ास तौर से सिफ़र ने दिल छू लिया...

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  8. बहुत खूब विशाल जी ... तीनों का अलग ही अंजाद है ...

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  9. विशाल जी
    अच्छी क्षणिकाएं लिखी हैं …
    वाकई तीनों एक से बढ़कर एक हैं … बधाई !


    आपको सपरिवार
    नवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !

    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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  10. बस विशाल जी!
    यही रंग देखने को तरस रहे थे हम... आज बस दिल खुश हो गया, लगा कोई बिछडा मिल गया हो!!

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  11. तीनो ही बहुत सुन्दर क्षणिकाएं है|
    नवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाएं|

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  12. विशाल जी

    तीनों क्षणिकाएं एक से बढ़कर एक… बधाई !

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  13. सुभानाल्ह...........तीनो ही शानदार हैं.........बहुत पसंद आईं |

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  14. अच्छी क्षणिकाएं सीधे दिल से निकली हुई. सुंदर प्रस्तुति.

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  15. tino kshanikayen bahut hi sunder hain lajavab
    badhai
    rachana

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  16. आज फिर पुराना ज़ख्म
    छील गयी बहती हवा
    सुन्दर अभिव्यक्ति.

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मंजिल न दे ,चिराग न दे , हौसला तो दे.
तिनके का ही सही, मगर आसरा तो दे.
मैंने ये कब कहा कि मेरे हक में हो जबाब
लेकिन खामोश क्यों है कोई फैसला तो दे.