आज ज़रा सी पी है साहिब,
एक गम की खुशी है साहिब,
जब भी हमसे मिली मुहब्बत,
फटे हाल मिली है साहिब,
बस आरज़ू ही आरज़ू है,
काहे की ज़िन्दगी है साहिब,
यूं सफ़ेद था लिबास मेरा,
दागों की दिल्लगी है साहिब,
वो ज़ख्म तो नासूर हुए,
यही चोट नयी है साहिब,
यहाँ उगे हुए हैं कैक्टस ,
ये अपनी ज़मी है साहिब,
उन्हें ज़िन्दगी मुबारक हो,
अपनी तो खुदकुशी है साहिब,
आज ज़रा सी पी है साहिब,
एक गम की खुशी है साहिब,
Waah ... Sara dard panne par utaar diya.
जवाब देंहटाएंBahut sundar
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आज ज़रा सी पी है साहिब,
जवाब देंहटाएंएक गम की खुशी है साहिब,.
गम गलत करने का यह तरीका तो अब पुराना हो गया. कुछ नया ढूँढना चाहिये. बधाई सुंदर कविता के लिये.
यहाँ उगे हुए हैं कैक्टस ,
जवाब देंहटाएंये अपनी ज़मी है साहिब,
छोटी बहर की ख़ूबसूरत ग़ज़ल.......
बस आरज़ू ही आरज़ू है,
जवाब देंहटाएंकाहे की ज़िन्दगी है साहिब,
ज़िन्दगी को नये मायने मिल गए आपके इस शेर से....
विशाल जी गज़ल की तारीफ करूँ या अनुरोध करूँ कि बाहर निकलिए!! फिर से अपनी उन्हीं पुरानी शायरी के साथ!!
जवाब देंहटाएंbahut umda..
जवाब देंहटाएंसी पी ?
जवाब देंहटाएंदाग,जख्म ,नासूर,चोट
कैक्टस ,खुदकुशी,
आह! आह! आह!
यह कैसी पीड़ा है ,विशाल भाई?
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
जवाब देंहटाएंजिसने आज हमारा दिल खुश कर दिया
जवाब देंहटाएंवो और कुछ नहीं आपकी ग़ज़ल है साहिब
यहाँ उगे हुए हैं कैक्टस ,
जवाब देंहटाएंये अपनी ज़मी है साहिब,...
सुभान अल्ला विशाल जी .. दिली दाद कबूल करें इस लाजवाब गज़ल पे ... मज़ा आ गया ...
वाह ......बहुत ही उम्दा
जवाब देंहटाएंजब भी हमसे मिली मुहब्बत,
जवाब देंहटाएंफटे हाल मिली है साहिब,
वाह बेहतरीन शेर है ... पूरी ग़ज़ल सुन्दर है !
तीन क्षणिकाएं ... विभीषण !
" ग़म इस क़दर बढ़े कि घबरा के पी गया "
जवाब देंहटाएंएक अंदाज़ यह भी !
दर्द की ताबीर है ।
जवाब देंहटाएंज़रा सी पी ली है --तभी मयखाने से शोर आ रहा है ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ग़ज़ल है भाई ।
वाह बेहतरीन ग़ज़ल....
जवाब देंहटाएंसादर बधाई...
वाह! क्या बात है
जवाब देंहटाएं"उन्हें ज़िन्दगी मुबारक हो
जवाब देंहटाएंअपनी तो खुदकुशी है साहिब
आज ज़रा सी पी है साहिब
एक गम की खुशी है साहिब"
soul touching...