19 सितंबर 2011

आज ज़रा सी पी है साहिब,

आज ज़रा सी पी है साहिब,
एक गम की खुशी है साहिब,

जब भी हमसे मिली मुहब्बत,
फटे हाल मिली है साहिब,

बस आरज़ू ही आरज़ू है,
काहे की ज़िन्दगी है साहिब,

यूं सफ़ेद था लिबास मेरा,
दागों की दिल्लगी है साहिब,

वो ज़ख्म तो नासूर हुए,
यही चोट नयी है साहिब,

यहाँ उगे हुए हैं कैक्टस ,
ये अपनी ज़मी है साहिब,

उन्हें ज़िन्दगी मुबारक हो,
अपनी तो खुदकुशी है साहिब,

आज ज़रा सी पी है साहिब,
एक गम की खुशी है साहिब,

18 टिप्‍पणियां:

  1. आज ज़रा सी पी है साहिब,
    एक गम की खुशी है साहिब,.

    गम गलत करने का यह तरीका तो अब पुराना हो गया. कुछ नया ढूँढना चाहिये. बधाई सुंदर कविता के लिये.

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  2. यहाँ उगे हुए हैं कैक्टस ,
    ये अपनी ज़मी है साहिब,

    छोटी बहर की ख़ूबसूरत ग़ज़ल.......

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  3. बस आरज़ू ही आरज़ू है,
    काहे की ज़िन्दगी है साहिब,

    ज़िन्दगी को नये मायने मिल गए आपके इस शेर से....

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  4. विशाल जी गज़ल की तारीफ करूँ या अनुरोध करूँ कि बाहर निकलिए!! फिर से अपनी उन्हीं पुरानी शायरी के साथ!!

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  5. सी पी ?

    दाग,जख्म ,नासूर,चोट
    कैक्टस ,खुदकुशी,
    आह! आह! आह!

    यह कैसी पीड़ा है ,विशाल भाई?

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  6. बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||

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  7. जिसने आज हमारा दिल खुश कर दिया
    वो और कुछ नहीं आपकी ग़ज़ल है साहिब

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  8. यहाँ उगे हुए हैं कैक्टस ,
    ये अपनी ज़मी है साहिब,...

    सुभान अल्ला विशाल जी .. दिली दाद कबूल करें इस लाजवाब गज़ल पे ... मज़ा आ गया ...

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  9. जब भी हमसे मिली मुहब्बत,
    फटे हाल मिली है साहिब,

    वाह बेहतरीन शेर है ... पूरी ग़ज़ल सुन्दर है !

    तीन क्षणिकाएं ... विभीषण !

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  10. " ग़म इस क़दर बढ़े कि घबरा के पी गया "
    एक अंदाज़ यह भी !

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  11. ज़रा सी पी ली है --तभी मयखाने से शोर आ रहा है ।

    बहुत सुन्दर ग़ज़ल है भाई ।

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  12. वाह बेहतरीन ग़ज़ल....
    सादर बधाई...

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  13. "उन्हें ज़िन्दगी मुबारक हो
    अपनी तो खुदकुशी है साहिब
    आज ज़रा सी पी है साहिब
    एक गम की खुशी है साहिब"
    soul touching...

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मंजिल न दे ,चिराग न दे , हौसला तो दे.
तिनके का ही सही, मगर आसरा तो दे.
मैंने ये कब कहा कि मेरे हक में हो जबाब
लेकिन खामोश क्यों है कोई फैसला तो दे.