03 अक्तूबर 2011

                    गुम


उसने मुझे ढूंढ लिया,
उसने मुझे पा लिया,
मैं गुम था हमेशा से,
गुम ही रहा सदा.



17 टिप्‍पणियां:

  1. मैं गुम था हमेशा से,
    गुम ही रहा सदा.

    गुम की बड़ी लंबी दुम है,विशाल भाई.

    आपकी गुमसुम सी प्रस्तुति बहुत अच्छी लगी.

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  2. राकेश भाई ,
    बहुत काम आती है
    आपकी
    हौसला अफजाई

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  3. शानदार प्रस्तुति ||
    बहुत बहुत बधाई ||

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  4. चार पंक्तियों में सुन्दर संवेदनशील अभिव्यक्ति...

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  5. गुम और गम ....पर लिखी आपकी यह रचना गहरे अर्थ संप्रेषित करती है

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  6. केवल भाई, इस रचना में केवल गुम है गम नहीं.
    गम की दुकां तो बंद कर चुके हैं,विशाल भाई.

    आखिर 'ढूंढ'ही लिया है आपको मैंने
    अब विशाल भाई आपकी गुमनामी से.
    बहुत बहुत धन्यवाद मेरी हौसला अफजाई
    के लिए विशाल भाई.

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  7. सुभानाल्लाह..........एक शेर में इतनी गहराई........दिल जीत लिया..वाह|

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  8. विशाल जी आपकी लिखी ये चार पंक्तियाँ पसंद आई!

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  9. और निकलती है ये सदा
    गुम ही रहूँ उसीमें.... सदा

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  10. .........................
    हमने बारहा ढूँढा, तुमने बारहा पाया।


    विशाल भाई, देर से आया हूँ लेकिन मैं देर करता नहीं देर हो जाती है। समझोगे, हमपेशा हो न:)

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  11. खुद के लिए गुम होते हुवे भी किसी को पा जाना ... लाजवाब ..

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  12. .लगता है पुलिस में रपट लिखवाना पड़ेगा!!!!

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  13. मुझे लगता है आप गुम नहीं हुए हैं ,किसी की याद में खो गये हैं ।

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  14. बहुत बड़ी विडम्बना ... बहुत सुंदर

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मंजिल न दे ,चिराग न दे , हौसला तो दे.
तिनके का ही सही, मगर आसरा तो दे.
मैंने ये कब कहा कि मेरे हक में हो जबाब
लेकिन खामोश क्यों है कोई फैसला तो दे.